मादक पदार्थों की तस्करी (Drug Trafficking)

भारत में मादक पदार्थों के दुष्प्रयोग तथा मादक पदार्थों की तस्करी की स्थिति गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 40 लाख लोग मादक पदार्थों के व्यसनी हैं। सामान्य रूप से प्रयोग किए जाने वाले मादक पदार्थ हैं- गांजा, चरस (हशीश), | अफीम तथा हेरोइन। इनके दुष्प्रयोग तथा | तस्करी के निम्नलिखित कारण हैं।

  • इस क्षेत्र में गोल्डन क्रेसेंट तथा गोल्डन ट्रायंगल की उपस्थिति के कारण भारत मादक पदार्थों की तस्करी और इसके दुष्प्रयोग हेतु अत्यधिक सुभेद्य रहा है।
  •  भारत में स्वापक औषधि एवं मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (Narcotics Drugs and Psychotropic
    Substance Act 1985) लागू है। इस अधिनियम के तहत, ऐसे अपराधों के लिए न्यूनतम 10 वर्ष के कारावास का प्रावधान | है। परन्तु राज्यों द्वारा इसका कार्यान्वयन बेहतर रूप से नहीं किया जा रहा है।
  • भारत ने ‘मादक पदार्थों पर नियंत्रण हेतु संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, म्यांमार, अफगानिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, मॉरिशस, ज़ाम्बिया तथा रुसी परिसंघ के साथ द्विपक्षीय समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए हैं।
  • इसके अतिरिक्त बिटकॉइन जैसी वर्चुअल करेंसी के उदय ने भी मादक पदार्थों के अवैध व्यापारियों तथा तस्करों के लिए वित्तीयन के मार्गों में वृद्धि की है।
  •  देश के भीतर औषधीय सामग्रियों जैसे कौडीन आधारित कफ़सिरप ‘बुप्रेनोफाइन’ तथा दर्दनिवारक दवा ‘प्रोक्सिवोन’ का दुष्प्रयोग।
  • अन्य कारक: विभिन्न एजेंसियों के मध्य अधिकार-क्षेत्र को लेकर संघर्ष, भ्रष्टाचार, आसूचना सम्बन्धी विफलता, मानव संसाधन एवं अवसंरचना का अभाव, मादक पदार्थों का पता लगाने हेतु दिए जाने वाले प्रशिक्षण का निम्न स्तर तथा प्रक्रियात्मक विलम्ब वे अन्य कारक हैं, जो देश में मादक पदार्थों की रोकथाम के प्रयासों की प्रभावशीलता को अवरोधित करते

प्रभाव

  •  सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव: मादक पदार्थों की तस्करी सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिरता तथा सतत विकास को कमजोर करती है।
  •  मानव जीवन की क्षति: मादक पदार्थों की तस्करी और दुष्प्रयोग का परिणाम, विशेष रूप से बहुमूल्य मानव जीवन की क्षति और सम्पूर्ण विश्व के अनेक लोगों के उत्पादक वर्षों की क्षति के रूप में सामने आता है।
  • यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) द्वारा उत्तर-पूर्वी राज्यों के लोगों में HIV/AIDS के निरंतर बढ़ते प्रसार को इसके प्रमुख प्रभावों में से एक के रूप में रेखांकित किया गया है।
  •  राष्ट्रीय सुरक्षा: मादक पदार्थों की तस्करी में विभिन्न आतंकवादी संगठनों तथा सिंडिकेट की संलिप्तता, नार्को-टेररिज्म के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा तथा राज्यों की संप्रभुता हेतु खतरा उत्पन्न करती है।

भारत द्वारा उठाए गए कदम

  • वैधानिक उपाय: भारत ने स्वापक औषधि एवं मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (Narcotics Drugs and Psychotropic Substances Act, 1985) तथा स्वापक औषधि एवं मनः प्रभावी पदार्थों का अवैध व्यापार निवारण safafana, 1988 (Prevention of Illicit Trafficking of Narcotics Drug and Psychotropic Substances Act, 1988) को लागू किया है। इन अधिनियमों के माध्यम से भारत मादक पदार्थ सम्बन्धी समस्याओं के विभिन्न पहलुओं का समाधान कर रहा है।
  •  अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन: भारत संयुक्त राष्ट्र के तीनों कन्वेंशनों अर्थात् एकल स्वापक औषधि कन्वेंशन, 1961; मनः प्रभावी पदार्थ कन्वेंशन, 1971 तथा स्वापक औषधि एवं मनः प्रभावी पदार्थों की अवैध तस्करी के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, 1988 का हस्ताक्षरकर्ता है। इसके अतिरिक्त भारत ने मादक पदार्थों के बढ़ते खतरे को नियंत्रित करने हेतु यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) द्वारा किए जा रहे वैश्विक प्रयासों का भी समर्थन किया है
  •  अंतर-सरकारी पहलें: भारत क्षेत्र के देशों के साथ द्विपक्षीय समझौतों, नेपाल, थाईलैंड एवं म्यांमार के साथ समझौता ज्ञापन,आतंकवाद का सामना करने हेतु संयुक्त कार्यदल तथा न्यायिक सहयोग जैसी विभिन्न व्यवस्थाओं में शामिल हुआ है।
  • भारत ने राष्ट्रीय स्वापक औषधि एवं मन-प्रभावी पदार्थ नीति (नेशनल पालिसी ऑन नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटांस) का निर्माण किया है, जिसमें आपूर्ति और मांग में कटौती पर समान रूप से जोर दिया गया है।
  • हाल ही में मादक पदार्थों एवं नशीली दवाओं की जब्तियों के मामले में अधिकारियों, गुप्तचरों तथा अन्य व्यक्तियों को प्रदान किये जाने वाले पुरस्कार हेतु नए दिशा-निर्देश भी जारी किए गए थे।
  • गश्ती और निगरानी को सुदृढ़ करते हुए सीमाओं और तटीय क्षेत्रों की भौतिक सुरक्षा को सुनिश्चित करना।
  • मादक पदार्थों और सिंथेटिक ड्रग के दुष्प्रयोग की रोकथाम के प्रयासों में स्वैच्छिक संगठनों के साथ सहयोग ।
  • अन्य पहलें: मादक पदार्थों के दुष्प्रयोग के निवारण के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं तथा व्यक्तियों को राष्ट्रीय पुरस्कार तथा नेशनल ड्रग एब्यूज हेल्पलाइन नंबर की शुरुआत जो मादक पदार्थों के दुष्प्रयोग के पीड़ितों और उनके परिवारों की काउंसलिग में मदद एवं अन्य सहायता प्रदान करेगा।

राष्ट्रीय स्वापक औषधि तथा मन:प्रभावी पदार्थ नीति, 2014

  •  अफीमयुक्त कच्चे माल के परम्परागत आपूर्तिकर्ता के अपने दर्जे को बनाए रखने हेतु भारत को समर्थ बनाने के लिए किसी कंपनी या कॉरपोरेट निकाय द्वारा भारत में पॉपी स्ट्रॉ के कंसन्ट्रेट (CPS) का उत्पादन।
  •  नशे की लत वाले (व्यसनी) लोगों द्वारा पॉपी स्ट्रॉ का उपभोग किये जाने में उत्तरोत्तर कमी करना।
  • अफ़ीम और भांग की अवैध कृषि का पता लगाने हेतु उपग्रह इमेजरी (imageries) का प्रयोग तथा इनकी कृषि का
    निरंतर उन्मूलन, साथ ही इनकी कृषि में संलग्न व्यक्तियों के लिए आजीविका के वैकल्पिक साधनों का विकास करना।
  •  निजी क्षेत्र को अफीम से अल्कलॉयड (alkaloids) के उत्पादन की अनुमति प्रदान करना जो वर्तमान में केवल सरकारी
    ओपियम एवं अल्कलॉयड फैक्ट्रीज (GOAFs) द्वारा उत्पादित किया जाता है।
  •  उपशामक (palliative) देखभाल हेतु मॉर्फीन और अन्य आवश्यक मादक पदार्थों तक पर्याप्त पहुँच।
  •  इंटरनेशनल नारकोटिक्स कण्ट्रोल बोर्ड की अनुशंसाओं की अनुक्रिया में एक समयबद्ध कार्ययोजना तैयार करना।

आगे की राह

  •  मादक पदार्थों के तस्करों पर प्रतिबंध लगाने तथा अपराधियों के आदान-प्रदान हेतु पड़ोसी देशों के घरेलू कानूनों के मध्य सामंजस्य (सिंक्रनाइज़ेशन) तथा समन्वय स्थापित करना। • समुद्री मार्गों के माध्यम से होने वाली मादक पदार्थों की तस्करी के उभरते खतरे से निपटने हेतु साझी रणनीतियों का विकास
    करना।
  • इंटेलिजेंस नेटवर्क का निरंतर सुदृढ़ीकरण और उन्नयन, निगरानी उपकरणों का उन्नयन तथा प्रशिक्षण अकादमी एवं ड्रग लैब्स जैसी आगामी संस्थागत आवश्यकताओं की पूर्ति करना।
  • प्रक्रियात्मक कमियों के निवारण तथा अपराधों के समूहीकरण द्वारा दंडों की जांच हेतु नारकोटिक्स अधिनियम में संशोधन किया जा सकता है।
  • मांग में कमी करना: रणनीतियों में आपूर्ति न्यूनीकरण के साथ-साथ मांग में कमी को भी शामिल किया जाना चाहिए।आपूर्ति न्यूनीकरण के लिए प्रवर्तन गतिविधियाँ जबकि मांग में कमी के लिए पुनर्वास तथा व्यसन मुक्ति उपाय कारगर होंगे।
  • अन्य उपाय: जांच-पड़ताल संबंधी कौशलों का उन्नयन तथा मुकदमों का शीघ्र निपटान; शीघ्रतम संभावित साधनों के द्वारा देशों के मध्य सूचनाओं का अंतर-एजेंसी विनिमय तथा इसके साथ-साथ शीघ्रगामी प्रत्यर्पण कार्यवाहियाँ।

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