परंपरागत युद्ध के लिए भारत को तैयार करने की आवश्यकता पर बल

प्रश्न: जहां परमाणु हथियार और पारंपरिक सैन्य क्षमता अंतिम उपाय का विकल्प बने हुए हैं, वहीं उप-परंपरागत और छद्म युद्ध से निपटने के लिए स्थायी खतरे की प्रकृति को देखते हुए संवर्धित उपायों की आवश्यकता है। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • परंपरागत युद्ध के लिए भारत को तैयार करने की आवश्यकता पर बल देते हुए परिचय दीजिये।
  • उप-परंपरागत युद्ध की प्रकृति पर चर्चा कीजिए और उप-परंपरागत युद्ध के बदलते परिदृश्य का विश्लेषण कीजिए।
  • उप-परंपरागत युद्ध से निपटने के लिए उन्नत उपायों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

परंपरागत रूप से, भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान पारंपरिक और परमाणु प्रतिरोध, दोनों पर निम्नलिखित कारणों हेतु निर्भर रहे है:

  • आक्रामकता को रोकने और शांतिपूर्ण एवं दबाव मुक्त वातावरण सुनिश्चित करने के लिए।
  • पूर्ण युद्ध के मामले में आक्रामणकारी को त्वरित और निर्णायक जीत प्राप्त करने से रोकने के लिए।
  • आक्रामणकारी को दण्डित करने की क्षमता रखने के लिए।

हालांकि, वर्तमान परिदृश्य में युद्ध संबंधी लागतों और परमाणु क्षमताओं के कारण, एक पूर्ण पारंपरिक युद्ध की संभावना सीमित है और इस प्रकार प्रतिरोध के पारंपरिक विकल्प अंतिम उपाय के विकल्प बने रहते हैं। फिर भी, इसका अर्थ यह नहीं है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे कम हो गए हैं, बल्कि सीमा पार से शत्रु राज्य और गैर-राज्य तत्वों (non-state elements) द्वारा विषम हस्तक्षेपों में वृद्धि हुई है।

उप-परंपरागत और छद्म युद्ध में वे सभी सशस्त्र संघर्ष शामिल हैं जो शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के स्तर से ऊपर और युद्ध सीमा से नीचे हैं। इसमें आतंकवाद, विद्रोह, छद्म युद्ध,आतंकवाद और सीमा पर होने वाले संघर्ष शामिल हैं। इसके अतिरिक्त इसमें कुटिलता, सूक्ष्म कार्यवाहियाँ (nuances), धमकी, मनोवैज्ञानिक युद्ध, राजनीतिक हस्तक्षेप, विघटन, धोखाधड़ी आदि भी शामिल हैं। उप-परंपरागत और छद्म युद्ध के उद्देश्यों में युद्ध-शिथिलता को बढ़ाना, नागरिकों के जीवन स्तर में गिरावट, युद्ध की लागत से संबंधित आर्थिक कठिनाई, भय, अवसाद और मनोबल में कमी आदि शामिल है। अंतिम उद्देश्य शत्रु को इतना अधिक अस्थिर करना है कि वह हार स्वीकार कर ले भले ही उसके पास युद्ध जारी रखने की क्षमता हो।

इस प्रकार, उप-परंपरागत और छद्म युद्ध से निपटने के लिए अच्छी तरह से कैलिब्रेटेड उपायों की आवश्यकता होती है जैसे:

  • सुरक्षा बलों को एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए, जिसमें सरकार के विभिन्न संस्थान बिना किसी भी हस्तक्षेप के कार्य कर सके। जनसमर्थन को संगठित करने के लिए उन्हें गैर-प्रतिरोधी, अर्ध-सैन्य और सैन्य गतिविधियों को भी करने में सक्षम होना चाहिए।
  • मानव संसाधन विकास रणनीति तैयार करना। उदाहरण के लिए, साइबर विशेषज्ञ व सुप्रशिक्षित जांच विशेषज्ञ आदि।
  • तस्करी, मनी लॉन्डरिंग इत्यादि पर प्रभावी नियंत्रण लगाकर उनके वित्तीय स्रोतों में कमी करना।
  • सर्जिकल स्ट्राइक, छापे और छोटे हथियार, मोर्टार इत्यादि का उपयोग करके लोकल फायर असॉल्ट।
  • निचले क्षेत्रों से निरंतर फायर असाल्ट के लिए बोफोर्स और अन्य माध्यमिक बंदूकों तथा मल्टी बैरल रॉकेट लांचर का प्रयोग कर एक आर्टिलरी युद्ध के रूप में LOC पर लंबवत और क्षैतिज रूप से आगे बढ़ना, जैसा कि 2003 में पाकिस्तान के विरुद्ध सफलतापूर्वक किया गया था।
  • संवेदनशील सीमाओं में संचार लाइनों को अंतःस्थापित करना। राजनयिक स्तर पर सतत शांति वार्ता।
  • सिक्योरिटी ऑपरेशंस को मुख्य रूप से नागरिक-पुलिस व्यवस्था पर आधारित होना चाहिए और सेना की भूमिका समर्थन प्रदान करने की होनी चाहिए।
  • सूचनाओं के प्रभावी संग्रह, संयोजन, विश्लेषण और आकलन के लिए सुदृढ़ आसूचना तंत्र।

समग्र रूप से, रक्षा प्रतिष्ठानों, अर्धसैनिक बलों, पुलिस और नागरिक प्रशासन की एक समन्वित कार्रवाई उप-परंपरागत युद्ध हेतु एक विश्वसनीय प्रतिरक्षा स्थापित करने में सहयोग कर सकती है।

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