डिजिटल थेराप्यूटिक्स (चिकित्सा शास्त्र) की अवधारणा की व्याख्या : भारत में जीवनशैली से संबंधित रोगों की रोकथाम के संदर्भ में डिजिटल थेराप्यूटिक्स के अवसर एवं चुनौतियां

प्रश्न: डिजिटल थेराप्यूटिक्स (चिकित्सा शास्त्र) से आप क्या समझते है? विशेष रूप से भारत में जीवनशैली से संबंधित रोगों की रोकथाम के संदर्भ में डिजिटल थेराप्यूटिक्स के अवसरों एवं चुनौतियों पर चर्चा कीजिए ?

दृष्टिकोण

  • डिजिटल थेराप्यूटिक्स (चिकित्सा शास्त्र) की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
  • जीवन शैली से संबंधित बीमारियां, जो भारत में एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या बन गयी हैं, को रोकने के संदर्भ में डिजिटल थेरप्यूटिक्स द्वारा प्रस्तावित अवसरों एवं चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

डिजिटल थेराप्यूटिक्स का आशय उपचार या चिकित्सा की एक पद्धति से है। इसके अंतर्गत किसी चिकित्सकीय अथवा मनोवैज्ञानिक स्थिति के उपचार हेतु रोगी के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए इंटरनेट-आधारित स्वास्थ्य तकनीकों का उपयोग किया जाता है।

यह जीवनशैली में परिवर्तन लाने के लिए रोगियों को प्रेरित करने हेतु संज्ञानात्मक व्यवहार उपचार आधारित विधियों का उपयोग करता है। इसका प्रयोग मादक द्रव्यों के अति-उपयोग से लेकर अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी सिंड्रोम तक विभिन्न स्थितियों के उपचार हेतु पारम्परिक औषधियों के पूरक के रूप में अथवा उनके विकल्प के रूप में किया जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में होने वाली कुल मौतों में से 61 फीसदी से अधिक जीवनशैली सम्बन्धी रोगों या गैर-संचारी रोगों (NCDs) के कारण होती हैं। परिणामस्वरुप इस विधि का उपयोग कई स्थितियों को प्रबंधित करने और उनकी रोकथाम के सम्बन्ध में किया जा सकता है जैसे टाइप || डायबिटीज़, कंजेस्टिव हृदयाघात, मोटापा, अवसाद आदि।

डिजिटल थेराप्यूटिक्स के लाभ

  • यह प्रचलित सामान्य उपचार पद्धतियों के पूरक के रूप में भी कार्य कर सकता है तथा उपचार को पूर्णतः प्रतिस्थापित भी कर सकता है।
  • यह भावी चिकित्सा लागत को कम कर सकता है और दवाओं का ‘तृतीय चरण’ अर्थात रासायनिक और प्रोटीन औषधियों का उत्तरवर्ती बन सकता है।
  • यह जीवनशैली से संबंधित रोगों को नियंत्रित करने में अधिक प्रभावी सिद्ध होगा, क्योंकि यह निवारक उपायों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • इसका प्रयोग मनोवैज्ञानिक और तंत्रिका संबंधी विकारों वाले रोगियों के उपचार के लिए भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, अल्जाइमर रोग के उपचार करने हेतु स्मरण चिकित्सा (reminiscence therapy) के साथ संज्ञानात्मक व्यवहार उपचार पद्धति का उपयोग करना।
  • यह एक उभरता हुआ क्षेत्र है जो निवेश पर व्यापक प्रतिफल (रिटन) प्रस्तावित करता है।
  • यह पारंपरिक दवा कंपनियों (जो नैदानिक परीक्षणों के पश्चात अपनी दवाओं के वास्तविक लाभ को सदैव ट्रैक नहीं कर पाती हैं) के साथ बड़ी मात्रा में डेटा साझा कर सकता है। इसके साथ ही यह रोगी के व्यवहार को बेहतर रूप से समझने की अंतर्दृष्टि प्रदान करने के साथ-साथ नई प्रभावकारी दवाओं के आविष्कार करने में सहायता कर सकता है।

डिजिटल थेराप्यूटिक्स के समक्ष चुनौतियां

  •  व्यवहार्य व्यवसाय मॉडल: अभी तक डिजिटल थेराप्यूटिक्स एक सुपरिभाषित व्यावसायिक मॉडल के रूप में स्थापित नहीं हो पाया है।
  • नियामकीय अनुमोदन: इन दवाओं की प्रभावकारिता के लिए यादृच्छिक रूप से किये गए नैदानिक परीक्षणों के माध्यम से प्राप्त डेटा के मूल्यांकन की आवश्यकता होगी। इसके लिए सुदृढ़ शासन मानदंडों की आवश्यकता होगी और लागत में वृद्धि हो सकती है तथा नवाचार की गति बाधित हो सकती है।
  • तीव्र गति से उद्भवः प्रत्येक बर्ष इनके नए संस्करण लॉन्च किये जाते हैं अतः इनका जीवन चक्र अत्यंत छोटा होता है। इस प्रकार इनके विनियमन एवं भुगतान के लिए कुशल फ्रेमवर्क की आवश्यकता उत्पन्न हो जाती है।
  • जागरूकता: कई चिकित्सक और रोगी इस क्षेत्र से अनभिज्ञ हैं।
  • उपभोक्ता द्वारा स्वीकारना: उपभोक्ताओं ने अभी तक डिजिटल अनुप्रयोगों को “भावी औषधि” के रूप में नहीं अपनाया है।

भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था, जिसे विश्व का औषधालय कहा जाता है, द्वारा इस क्षेत्र में नेतृत्वकर्ता की स्थिति प्राप्त की जा सकती है। इस हेतु सरकार को एक सुदृढ़, पारदर्शी और त्वरित विनियामक अनुमोदन तंत्र स्थापित करना चाहिए, जिसमें डिजिटल थेराप्यूटिक्स के क्लीनिकल ट्रायल और सरल प्रमाणीकरण प्रक्रिया हेतु स्पष्ट दिशानिर्देश शामिल हों।

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