धन शोधन की अवधारणा की संक्षिप्त व्याख्या : भारत जैसे विकासशील देशों के लिए एक खतरा

प्रश्न: एक सामाजिक आर्थिक अपराध के रूप में धन शोधन विशेषकर भारत जैसे विकासशील देशों के लिए एक खतरा है। टिप्पणी कीजिए। इस खतरे से निपटने हेतु घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या उपाय किए गए हैं?

दृष्टिकोण

  • धन शोधन की अवधारणा की संक्षिप्त व्याख्या करते हुए उत्तर आरम्भ कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि किस प्रकार एक सामाजिक आर्थिक अपराध के रूप में धन शोधन विशेषकर भारत जैसे विकासशील देशों के लिए एक खतरा है।
  • धन शोधन से निपटने हेतु राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर किए जाने वाले उपायों को सूचीबद्ध कीजिए। संक्षिप्त निष्कर्ष प्रदान कीजिए।

उत्तर

धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) वह विधि है जिसके द्वारा अपराधी अपने अवैध धन के स्रोतों को छुपाते हैं, ताकि कानून प्रवर्तन एजेंसियों के संदेह से बचा जा सके तथा उन साक्ष्यों को समाप्त किया जा सके जिनके आधार पर उन्हें दोषसिद्ध ठहराया जा सकता है। यह कार्य विभिन्न उपायों के माध्यम से किया जाता है जैसे– ट्रेड की इनवॉइसिंग, टैक्स हैवेन, शेल कंपनियों आदि का उपयोग करना। IMF के एक अध्ययन के अनुमान के अनुसार, धन शोधन की मात्रा वैश्विक GDP का लगभग 2-5% है।

सामाजिक-आर्थिक अपराध के रूप में धन शोधन:

  • सामाजिक संरचना को कमज़ोर करता है: धन शोधन आपराधिक गतिविधियों, जैसे- तस्करी, भ्रष्टाचार, मादक पदार्थों का दुर्व्यापार, कर चोरी, इनसाइडर ट्रेडिंग आदि को बढ़ावा प्रदान करता है तथा सामूहिक नैतिक मानकों को विकृत कर समाज की शांति और समृद्धि के समक्ष खतरा उत्पन्न करता है।
  • लोकतंत्र और विधि के शासन को दुर्बल बनाता है: यह आपराधिक तत्वों को क्रय शक्ति और बाजार प्रभुत्व स्थानांतरित करता है। ये तत्व निवेश के माध्यम से अर्थव्यवस्था के वृहद क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित कर सकते हैं अथवा सार्वजनिक अधिकारियों और सरकारों को रिश्वत की पेशकश कर सकते हैं।
  • कल्याणवाद की अवधारणा को कमज़ोर करता है: धन शोधन के लिए कर अपवंचन जैसे कारण संसाधनों के गैर-लक्षित उपयोग को बढ़ावा देते हैं, जिनका उपयोग सरकार द्वारा नागरिकों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन हेतु किया जा सकता है।
  • अर्थव्यवस्था और उसके विकास को प्रभावित करता है: यह राष्ट्र के वित्तीय बाजारों की अखंडता को कमज़ोर करता है जिसके कारण संबद्ध आपराधिक गतिविधियों से बाजार में राजस्व का नुकसान, आर्थिक विरूपण और अस्थिरता आदि स्थितियां उत्पन्न होती हैं। साथ ही जोखिम में वृद्धि भी निवेशकों को निवेश करने से रोकती है।

यह निम्नलिखित कारणों से विशेषकर भारत जैसे विकासशील देशों के लिए एक खतरा है:

  • विकासशील देश शिथिल नियामक और कानूनी परिवेश, पारदर्शिता के अभाव, कमज़ोर कॉर्पोरेट प्रशासन तथा सुभेद्य वित्तीय प्रणाली के साथ-साथ अनवरत नागरिक और राजनीतिक अशांति (विकासशील देशों की एक सामान्य विशेषता) के कारण धन शोधन के मामलों के प्रति अधिक सुभेद्य होते हैं।
  • निर्धनता जैसी सामाजिक बुराई भी जनसंख्या को धन शोधन की गतिविधियों हेतु अतिसंवेदनशील बनाती है।
  • इसके अतिरिक्त, समृद्ध संसाधनों के गैर-लक्षित उपयोग के द्वारा नष्ट होने वाली उत्पादकता को सुनिश्चित करने के लिए सरकार पर अत्यधिक बोझ होता है।
  • अवैध प्रवाह इन घरेलू संसाधनों को जुटाने की पहल की सफलता की संभावना को कम करता है।

चूंकि धन शोधन न केवल एक कानून प्रवर्तन संबंधित समस्या है, बल्कि एक गंभीर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा खतरा भी है, इसलिए दोनों स्तरों पर इस सम्बन्ध में विभिन्न प्रकार की कार्रवाइयां की गयी हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर

  • वैधानिक उपाय: हमारी अर्थव्यवस्था के संरक्षण के साथ-साथ काला धन अधिनियम, 2015, बेनामी लेनदेन अधिनियम, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम आदि जैसे अधिनियमों में वित्तीय संस्थानों को सहायता प्रदान करने हेतु धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (2012 में संशोधित) जैसे धन शोधन रोधी कानूनों (anti-money laundering laws) को लागू करना।
  • वित्तीय आसूचना इकाई, प्रवर्तन निदेशालय आदि जैसी विभिन्न नियामकीय और प्रवर्तन एजेंसियों की स्थापना करना।
  • पारदर्शिता मानदंड: RBI ने सख्त KYC मानदंडों को प्रस्तुत किया है और इसे मोबाइल वॉलेट आदि के लिए भी लागू किया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समझौते: भारत सरकार ने दोहरे कराधान बचाव समझौतों (DTAAS) पर हस्ताक्षर किया है, ताकि धन शोधन से संबंधित सूचनाओं के आदान-प्रदान के साथ-साथ कर अपवंचन और काले धन के सृजन से बचाव के लिए अग्रिम मूल्य निर्धारण समझौते किए जाएं।
  • सेबी द्वारा सख्त निगरानी: पार्टिसिपेटरी नोट्स जारी करने वाले विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) को मासिक रिपोर्टिंग के सख्त मानदंडों का अनुपालन करने की आवश्यकता है।

वैश्विक स्तर पर

  •  फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स द्वारा उन देशों को ब्लैकलिस्ट करना, जिन्हें यह धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) और आतंकवादी वित्तपोषण (टेरर फंडिंग) के विरुद्ध वैश्विक संघर्ष में असहयोगी मानती हैं।
  • OECD पहल के भाग के रूप में अनेक देशों द्वारा वित्तीय सूचना को स्वचलित आधार पर आदान-प्रदान करना
  • बेस इरोज़न एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग (BEPS) पहल के तहत देशों ने आवश्यक उपाय करने पर सहमति व्यक्त की है, जिससे राजस्व, लाभ, हानि, विक्रय, भुगतान किए गए करों आदि पर रिपोर्टिंग के लिए वृहद बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) की आवश्यकता होती है।
  • स्वापक एवं मनः प्रभावी (ड्रग्स और साइकोट्रोपिक) पदार्थों की अवैध तस्करी के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (जिसे विएना कन्वेंशन भी कहा जाता है) के अनुसार राज्यों द्वारा धन शोधन को दांडिक अपराध के रूप में निर्धारित करने की आवश्यकता है।

धन शोधन के खतरे से निपटने हेतु, प्लास्टिक मनी का शुभारंभ, आरंभ में ही अपराध का पता लगाने हेतु अपराध के सूक्ष्म परीक्षण के प्रति लोगों को जागरूक बनाना जैसे अन्य उपाय देश के सामाजिक-आर्थिक विकास पर इसके प्रतिकूल प्रभाव को कम करने हेतु अपनाए जा सकते हैं।

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