धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

प्रश्न: धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार को समानता और व्यक्तिगत गरिमा के अधिकार को नकारने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।संवैधानिक प्रावधानों और हाल की न्यायिक घोषणाओं के आलोक में चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भूमिका में धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
  • हाल ही के उन निर्णयों का उल्लेख कीजिए जो संविधान के अन्य मूल अधिकारों एवं धार्मिक अधिकारों के मध्य संतुलन स्थापित करते हैं।
  • उनके प्रभावों का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर

भारत का संविधान के अनुच्छेद 25 को उद्देशिका के साथ पढ़े जाने पर यह सभी नागरिकों को समान रूप से अन्तःकरण की स्वतंत्रता व किसी धर्म को मानने, उसका आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। हालांकि, इसी अनुच्छेद में इस स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार के अन्य प्रावधानों के अधीन किया गया है।

इसी प्रकार अनुच्छेद 26-28 धार्मिक मामलों से संबंधित है। अनुच्छेद 26 कुछ शर्तों के अधीन धार्मिक संप्रदायों को उनके धार्मिक मामलों के प्रबंधन की प्रकृति को निर्धारित करने की अनुमति प्रदान करता है। संप्रदाय माने जाने हेतु उन्हें इन तीन मानदंडों को पूरा करना होता है- उनका विश्वास तंत्र उनकी आध्यात्मिक तुष्टि के अनुकूल हो, उनका एक सामान्य संगठन हो एवं उनका एक विशिष्ट नाम हो। अनुच्छेद 15 भी धर्म के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव का निषेध करता है।

इस प्रकार धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 15 में दिए समानता एवं गैर-विभेदकारी अधिकारों के साथ संतुलन में होना चाहिए। अनुच्छेद 21 के साथ पढ़े जाने पर इन अनुच्छेदों का उद्देश्य और भी स्पष्ट हो जाता है।

इस सन्दर्भ में, हाल के दिनों के विभिन्न न्यायिक निर्णयों ने इस तर्क को और अधिक बल दिया है:

  • मुंबई उच्च न्यायालय के एक निर्णय द्वारा शनि शिंगणापुर मंदिर और हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को हटा दिया गया।
  • इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय के 4:1 निर्णय द्वारा सबरीमाला मंदिर के दरवाजे सभी आयुवर्गों की महिलाओं के लिए खोल दिए गए। ध्यातव्य है कि एक निश्चित आयुवर्ग की महिलाओं का इस मंदिर में प्रवेश अभी तक प्रतिबंधित था।
  • उच्चतम न्यायालय द्वारा तीन तलाक को विभिन्न समुदायों की महिलाओं के बीच भेदभावकारी होने और समानता के अधिकार का उल्लंघन करने के आधार पर अमान्य घोषित कर दिया गया।
  • उच्चतम न्यायालय द्वारा यह भी निर्णय दिया गया कि मुस्लिम महिलाओं को विधिक रूप से बच्चों को गोद लेने का अधिकार है, यद्यपि उनका पर्सनल लॉ उन्हें इस प्रकार के अधिकार की अनुमति प्रदान नहीं करता है।

इन निर्णयों में उच्चतम न्यायालय द्वारा महिलाओं का पक्ष लिया गया है और लैंगिक न्याय (जेंडर जस्टिस) को सशक्त बनाया गया है। इसके अतिरिक्त मॉब लिंचिंग और गौकशी के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि मूलवंश, जाति, वर्ग अथवा धर्म से निरपेक्ष होकर सभी व्यक्तियों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं की सुरक्षा राज्य का सकारात्मक दायित्व है।

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