तटीय अपरदन (Coastal Erosion)

एक अध्ययन के अनुसार, पराली-1 द्वीप (बांगारम एटोल का भाग जोकि लक्षद्वीप के समृद्ध जैव विविधता वाले निर्जन द्वीपों में से एक हैं) तटीय अपरदन के कारण लुप्त हो गया है तथा लक्षद्वीप सागर में अवस्थित ऐसे ही अन्य चार द्वीप तेजी से सिकुड़ रहे हैं।

भारत में तटीय अपरदन

  • अन्य सामुद्रिक राष्ट्रों की तरह, भारत के लंबे प्रायद्वीपीय क्षेत्र को भी निरंतर अपरदन का सामना करना पड़ रहा है। प्रायः विकास
    संबंधी गतिविधियां, तटीय गतिशीलता को समझे बिना संपन्न की जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप विशेषकर स्थानीय समुदायों को
    दीर्घकालिक क्षति होती है।
  • MOEF&CC के अनुसार, भारत की 8414 किलोमीटर लंबी तटरेखा का 40% हिस्सा तटीय अपरदन (उच्च, मध्यम या निम्न) की
    समस्या से ग्रस्त है।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES), वार्षिक आधार पर भारतीय तट के साथ-साथ तटीय रेखा में होने वाले परिवर्तनों की निगरानी
    करता है।

हाल की कुछ निष्कर्षों के अनुसार:

  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह सर्वाधिक तटीय अपरदन का सामना करते हैं जिस कारण इसकी लगभग 89 प्रतिशत
    तटरेखा बंगाल की खाड़ी में जलमग्न हो गई है।
  • वहीं दूसरी तरफ तमिलनाडु है, जहाँ पर तटीय क्षेत्र का 62% {वृद्धि (accreation): जल के द्वारा क्रमिक रूप से मृदा
    निक्षेपण, रेत निक्षेपण के रूप में सूखी भूमि के निर्माण} नवीन निर्मित तटरेखा के रूप में है।
  • गोवा में सर्वाधिक 52 प्रतिशत स्थिर तटरेखा विद्यमान है।

तटीय अपरदन के कारण

  • तटीय अपरदन का मुख्य कारण तरंग ऊर्जा है।
  • जलवायु परिवर्तन: बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग और आइस शीट्स एवं महाद्वीपीय ग्लेशियरों के पिघलने से निरंतर समुद्री जल के स्तर में
    वृद्धि हो रही है। इसके परिणामस्वरूप कई प्राकृतिक आपदाएं जैसे सूनामी, तूफानी लहरें, समुद्री जल तथा चक्रवातों के तापीय विस्तार आदि उत्पन्न होती हैं। ये प्राकृतिक संतुलन को बाधित करती हैं और अपरदन में वृद्धि करती हैं।
  • भारत में तटवर्ती क्षेत्र तीव्र समुद्रतटीय बहाव क्षेत्रों के रूप में चिह्नित हैं। इसके परिणामस्वरुप एक वर्ष में अनुमानित 1.5 मिलियन टन रेत दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पूर्व की ओर प्रवाहित होती है।
  • जलग्रहण क्षेत्रों जैसे:- नदियों और बंदरगाहों, मत्स्यन स्थलों पर तथा घाटों (jettis) में बांधों के निर्माण से अपरदन में वृद्धि और नदी के मुहानों से तलछट के प्रवाह में कमी आती है जिससे तटीय अपरदन में वृद्धि होती है।
  • रेत और प्रवालों के खनन और निकर्षण (Dredging) से तट संबंधी गतिविधियाँ कई प्रकार से प्रभावित होती हैं। जैसे:- तटीय
    व्यवस्था में तलछट में कमी लाना तथा जलीय गहराई को रूपांतरित करना, जिससे तरंग अपवर्तन और तटवर्ती प्रवाह परिवर्तित
    होता है।

 

तटीय अपरदन से निपटने के उपाय:

सुरक्षा: तीव्र या दीर्घकालिक अपरदन को रोकने के लिए कठिन व सरल समाधान, दोनों के अंतर्गत कुछ विकल्पों को पहचाना गया है। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • समुद्री तटों पर कुछ हस्तक्षेपों के माध्यम से सेलाइन स्टोन-पैकेजिंग और ब्रेकवाटर जैसी संरचनाओं का निर्माण। इसे पारंपरिक रूप
    से तटीय रक्षा के हिस्से के रूप में माना जाता है।
  • तट के अपरदन की रोकथाम के लिए समुद्र में निम्न दीवारों का निर्माण किया जाता है जिसे ग्रॉयन्स कहा जाता है।
  • जियो-सिंथेटिक ट्यूब नामक एक सरल इंजीनियरिंग तकनीक का उपयोग ओडिशा तट पर किया गया है।
  • वनस्पति: ढलान स्थिरता में सुधार, तलछट को संघटित करने और तटरेखा को कुछ संरक्षण प्रदान करने के लिए वनस्पति महत्वपूर्ण

UNEP ग्लोबल प्रोग्राम ऑफ एक्शन (UNEP/GPA):

  • इसका उद्देश्य समुद्री पर्यावरण का संरक्षण और परिरक्षण करने के लिए राज्यों के कर्तव्यों के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाकर भूमि आधारित गतिविधियों से होने वाले समुद्री पर्यावरण के निम्नीकरण को प्रतिबंधित करना है।
  • इसे वाशिंगटन डिक्लेरेशन ऑन प्रोटेक्शन ऑफ़ मरीन एनवायरनमेंट फ्रॉम लैंड-बेस्ड एक्टिविटीज, 1955 के माध्यम से निर्मित किया गया था।
  • यह स्थलीय, ताजे जल, तटीय और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के मध्य सम्बद्धता को प्रत्यक्षतः संबोधित करने वाली एकमात्र वैश्विक पहल है।
  • GPA सचिवालय ने तीन वैश्विक बहु-हितधारक साझेदारी की स्थापना की है:
  • ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन न्यूट्रिएंट मैनेजमेंट (GPNM), ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन मरीन लिटर (GPML) और ग्लोबल वेस्ट वाटर इनिशिएटिव (GWI)। ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन मरीन लिटर (GPML) जून 2012 में ब्राजील में रियो+20 में आरंभ की गई थी। यह अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों, सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों, अकादमिक, निजी क्षेत्र, सिविल सोसाइटी और व्यक्तियों की एक वैश्विक भागीदारी है। इसके विभिन्न विशिष्ट उद्देश्यों में से एक समुद्री कूड़ा-कर्कट (मरीन लिटर) को कम और प्रबंधित कर मानव स्वास्थ्य और वैश्विक पर्यावरण की रक्षा करना है।

अन्य संबंधित पहले

  • होनोलुलु स्ट्रेटजी- समुद्री मलबे के निवारण और प्रबंधन के लिए एक वैश्विक फ्रेमवर्क।
  • नैरोबी कन्वेंशन– सरकारों, सिविल सोसाइटी और निजी क्षेत्र तथा UNEP के क्षेत्रीय समुद्र कार्यक्रम के भाग के मध्य साझेदारी है। यह स्वच्छ नदियों, तटों और महासागरों के साथ एक समृद्ध पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र की दिशा में कार्य करता है।
  • ब्लू फ्लैग तटीय मानक: यह समुद्र तटों, सतत नौकायन पर्यटन संचालनों और बंदरगाहों के लिए कोपेनहेगन स्थित फाउंडेशन फॉर एनवायरमेंटल एजुकेशन (FEE) द्वारा स्थापित एक पर्यावरण पुरस्कार है। ओडिशा के कोणार्क तट का चंद्रभागा समुद्र तट ब्लू फ्लैग प्रमाणीकरण प्राप्त करने के लिए टैग प्रमाणन प्रक्रिया को पूरा करने वाला एशिया में पहला तट होगा। इसके अतिरिक्त, भारत में ब्लू फ्लैग समुद्र तटों के रूप में 12 अन्य समुद्र तटों को भी विकसित किया जा रहा है।

कोस्टल ग्रीन बेल्ट:

  • सामाजिक वानिकी: इसे सरकारी या निजी क्षेत्र के राजस्व के स्रोत के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए, बल्कि तटीय समुदायों की
    सतत आजीविका विकास का समर्थन करने हेतु इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
  • पारिस्थितिकी विकास: यह संरक्षण गतिविधियों, शैक्षिक और मनोरंजनात्मक अवसरों के लिए लाभप्रद है।
  • भागीदारी योजना, कार्यान्वयन और निगरानी: स्थानीय समुदायों के स्थानिक ज्ञान (indigenous knowledge) को निर्णय
    प्रक्रिया में उपयोग किया जाना चाहिए ताकि वे प्रत्यक्ष रूप से लाभ प्राप्त कर सके।

तटीय विनियमन क्षेत्र(Coastal Regulation Zone)

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना-2018 का प्रारूप जारी किया है।

पृष्ठभूमि

  • भारत की 7,500 कि.मी. लम्बी तटरेखा है। यह देश की लगभग 30% जनसंख्या को आश्रय प्रदान करती है।
  • जहां संसाधन संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण में विभिन्न संशोधनों, भारत के तटीय राज्यों में एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (ICZM) कार्यक्रम के क्रियान्वयन,CZM में कॉर्पोरेट क्षेत्रों की अधिक भागीदार के माध्यम से तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) में महत्वपूर्ण प्रगति की गई है, वहीं विभिन्न बाध्यताएं भी विद्यमान हैं, जैसे – अनुपयुक्त वैज्ञानिक आधार एवं दिशा-निर्देश, बेसलाइन संबंधी सूचना का अभाव और कमजोर सामाजिक आधार, परियोजना संबंधी गतिविधियों में अस्पष्टता, अप्रभावी क्रियान्वयन व प्रवर्तन इत्यादि।
  • शैलेश नायक समिति का गठन तटीय विनियमन क्षेत्र 2011 से संबंधित मुद्दों की समीक्षा करने हेतु किया गया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 2015 में प्रस्तुत की थी।

CRZ, 2011 पर शैलेश नायक समिति रिपोर्ट के महत्वपूर्ण बिंदु:

  • समिति ने पाया कि 2011 के विनियमनों ने, विशेष रूप से निर्माण के संदर्भ में, आवास, मलिन बस्ती विकास, जीर्ण संरचनाओं तथा
    अन्य खतरनाक इमारतों के पुनर्विकास को प्रभावित किया है।
  • इसने प्रस्तावित किया कि शक्तियों का हस्तांतरण राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के साथ-साथ स्थानीय निकायों को भी किया जाना चाहिए।
  • इसने सुझाव दिया कि CRZ । और || क्षेत्रों (उच्च ज्वार रेखा से 500 मी. पर स्थित जो क्रमशः विकसित एवं अपेक्षाकृत अबाधित  हैं) को राज्य या केन्द्रीय मंत्रालय के पर्यावरण विभाग के अधीन नहीं रखा जाना चाहिए बल्कि इसे राज्य के शहरी और नियोजन विभागों के नियमों द्वारा निर्देशित होना जाना चाहिए।
  • इसके द्वारा “नो डेवलपमेंट जोन” को “सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों के मौजूदा 200 मी. से केवल 50 मी. तक कम करना प्रस्तावित किया गया है।

प्रारूप के मुख्य तथ्य:

लक्ष्य

  • तटीय क्षेत्रों में मछुआरा समुदाय तथा अन्य स्थानीय समुदायों की आजीविका सुरक्षा के अतिरिक्त तटीय विस्तार और समुद्री क्षेत्रों के
    विशिष्ट पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण करना।
  • वैश्विक तापन के कारण प्राकृतिक आपदाओं के खतरों, समुद्री जलस्तर में वृद्धि आदि को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक सिद्धांतों पर
    आधारित धारणीय विकास को बढ़ावा देना।

तटीय विनियमन क्षेत्र को परिभाषित करना:

  • समुद्री सीमा के साथ स्थलीय भाग की ओर उच्च ज्वार रेखा (HTL) से 500 मी. तक का स्थलीय क्षेत्र।
  • ज्वार प्रभावित जल निकायों सहित स्थल भाग की ओर HTL से 50 मी. या क्रीक की चौड़ाई (जो भी कम हो) के मध्य कास्थलीय,क्षेत्र।
  • अंतर-ज्वारीय क्षेत्र अर्थात् उच्च ज्वार रेखा और निम्न ज्वार रेखा (LTL) के मध्य का स्थलीय क्षेत्र।
  • समुद्र क्षेत्र में निम्न ज्वार रेखा से प्रादेशिक जल सीमा (12 नॉटिकल माइल) के मध्य जलीय और नितल क्षेत्र। ज्वार प्रभावित जल
    निकायों के किनारे पर स्थित LTL तथा समुद्र की ओर स्थित LTL के मध्य का जलीय और नितल क्षेत्र।

CRZ का वर्गीकरण:

CRZ-I क्षेत्र पर्यावरणीय रूप से अत्यंत महत्पूर्ण क्षेत्र होते हैं, जिन्हें निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जाता है

  • CRZ-LA: यह पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों तथा ऐसी भूआकृतिक विशेषताओं का निर्माण करता है जो तट की
    समग्रता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • CRZ-II B: अंतर-ज्वारीय क्षेत्र अर्थात् निम्न ज्वार रेखा तथा उच्च ज्वार रेखा के मध्य का क्षेत्र।

CRZ-II यह नगरपालिका सीमाओं में या अन्य विधिक रूप से अभिहित मौजूदा शहरी क्षेत्रों में तटरेखा तक या उसके समीप विकसित स्थलीय क्षेत्रों का गठन करता है।

CRZ-III क्षेत्र – ग्रामीण क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अबाधित भूमि और मौजूदा नगरपालिका सीमाओं के मध्य ,किनारे के समीप स्थित क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आती है, इसे दो श्रेणियों में बांटा गया है:

  • CRZ-III A, जिन क्षेत्रों में 2011 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या घनत्व 2,161 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. से अधिक है, उन्हें
    उच्च ज्वार रेखा (HTL) से 50 मी. तक “नो डेवलपमेंट जोंस” (NDZs) के रूप में चिह्नित किया जाएगा।
  • CRZ-III B उन ग्रामीण क्षेत्रों को संदर्भित करता है जहाँ जनसंख्या घनत्व 2,161 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. से कम है। ऐसे क्षेत्रों
    में उच्च ज्वार रेखा से 200 मी. तक का क्षेत्र NDZ होगा।

CRZ-IV, इसके अंतर्गत जलीय क्षेत्र सम्मिलित होता है। इसे भी दो भागों में विभाजित किया गया है।

  • CRZ-VA, समुद्र की ओर निम्न ज्वार रेखा से 12 नॉटिकल माइल के मध्य का जलीय और समुद्र नितल क्षेत्र।
  • CRZ-VB, इसके अंतर्गत ज्वार प्रभावित जल निकाय के किनारे पर स्थित LTL और किनारे के विपरीत दिशा में स्थित LTL
    के मध्य के जलीय क्षेत्र और समुद्री नितल क्षेत्र को शामिल किया गया है।

परियोजनाएं जिन्हें पर्यावरण मंत्रालय के अनुमोदन की आवश्यकता है

  • CRZ-I (पर्यावरणीय रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण) तथा CRZ-IV (जलीय और समुद्र नितल क्षेत्र) में स्थित परियोजनाओं को
    पर्यावरण मंत्रालय के अनुमोदन की आवश्यकता होगी जबकि अन्य पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के तटीय क्षेत्र प्रबंधन
    प्राधिकरणों (CZMAs) द्वारा विचार किया जाएगा।
  • अस्थाई पर्यटन सुविधाएँ- इसे CRZ-III में अनुमति प्रदान की जाएगी यदि राष्ट्रीय या राज्य राजमार्ग किसी NDZ से गुजरते
  • इमारतों को अनुमति तब प्रदान की जाएगी जब वे पर्यावरणीय मानकों, नियमों तथा संविधियों के अनुसार ठोस और तरल
    अपशिष्टों के उचित प्रबंधन और निपटान हेतु व्यवस्थाएं उपलब्ध करवाएंगी।

क्रिटीकल वल्नरेबल कोस्टल एरिया (CvCA)

  • इन क्षेत्रों के प्रबंधन में मछुआरों सहित तटीय समुदायों को भी शामिल किया जाएगा। दृष्टव्य है कि मछुआरे अपनी सतत
    आजीविका के लिए तटीय संसाधनों पर निर्भर रहते हैं।
  • इन क्षेत्रों में पश्चिम बंगाल में सुंदरबन तथा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अधीन पहचाने गए अन्य
    पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र जैसे कि गुजरात में खम्भात की खाड़ी, महाराष्ट्र में मालवण, अचरा-रत्नागिरी, कर्नाटक में
    कारवार और कोंडापुर, केरल में वेम्बनाड, ओडिशा में भितरकनिका सम्मिलित हैं। इन क्षेत्रों को CVCA माना जाएगा।

अंतर्देशीय द्वीप और पश्च जल

मुख्य तटीय भूमि के निकट स्थित सभी द्वीपों तथा तथा मुख्य भूमि पर स्थित सभी पश्च जल द्वीपों को अनुबद्ध करने के लिए एक 20 मी. का नो डेवलपमेंट ज़ोन (NDZ) प्रस्तावित किया गया है।

राज्यों के कर्तव्य

विस्तार और अन्य आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए तटीय मछुआरा समुदायों की दीर्घावधिक आवासीय आवश्यकताओं हेतु विस्तृत योजनाओं का निर्माण करना। साथ ही स्वच्छता, सुरक्षा तथा आपदा तैयारियों सहित आधारभूत सेवाओं की व्यवस्था करना आदि।

राष्ट्रीय सतत तटीय प्रबंधन केंद्र (NCSCM)

समुद्र तट पर ज्वार रेखाओं का निर्धारण करने हेतु राष्ट्रीय सतत तटीय प्रबंधन केंद्र (NCSCM) को प्राधिकृत किया गया है, जबकि पूर्व में सात विभिन्न एजेंसियां ऐसा करने हेतु प्राधिकृत थीं।

जोखिम रेखा (Hazard line)

जोखिम रेखा (Hazard line) को CRZ विनियमन व्यवस्था से पृथक कर दिया गया है तथा इसका प्रयोग आपदा प्रबंधन और अनुकूलक एवं शमन उपायों के नियोजन हेतु एक उपकरण के रूप में किया जाएगा।

  • फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI) या फ्लोर एरिया रेश्यो: इसे मानदंडों के अनुरूप निर्माण परियोजनाओं के लिए छूट (defreeze)
    देने और FSI को अनुमति प्रदान करने हेतु प्रस्तावित किया गया है।
  • खनन: खनन क्षेत्र से संबंधित प्रतिष्ठित राष्ट्रीय संस्थाओं की अनुशंसाओं के आधार पर उच्च ज्वार रेखा (HTL) से पर्याप्त ऊँचाई
    वाले क्षेत्रों में कठोर पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के अधीन चूनापत्थर के विनियमित खनन को अनुमति प्रदान की गई है।

CRZ के अंतर्गत प्रतिबंधित गतिविधियाँ

  • नए उद्योगों की स्थापना, मौजूदा उद्योगों का विस्तार, परिचालन या प्रक्रियाएं।
  • तेल का निर्माण या संचालन, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की अधिसूचना के अंतर्गत निर्दिष्ट खतरनाक पदार्थों
    का भंडारण या निपटान।
  • नई मत्स्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना। भूमि-सुधार, सागरीय जल के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित या विक्षुब्ध करना।
  • उद्योगों, शहरों या कस्बों और अन्य मानवीय बस्तियों से अनुपचारित अपशिष्ट या बहिःस्राव का निस्सरण।
  • निर्माण मलबे, औद्योगिक ठोस अपशिष्ट, भूमि भराव के उद्देश्य हेतु फ्लाई ऐश सहित शहर या कस्बे के अपशिष्ट का निपटान।
  • उच्च अपरदन वाले तटीय किनारे पर बंदरगाह और पत्तन परियोजनाएं।
  • रेत, चट्टानों तथा अन्य अधःस्तर पदार्थों का खनन।
  • रेत के सक्रिय टीलों की ड्रेसिंग या उनमें परिवर्तन करना।
  • जलीय तंत्र और समुद्री जीवन की सुरक्षा हेतु तटीय जल में प्लास्टिक का निपटान प्रतिबंधित होगा

संबंधित शब्दावली

  • उच्च ज्वार रेखा को तटीय भूमि पर स्थित एक रेखा के रूप में परिभाषित किया गया है जहां पर वृहद् ज्वार के दौरान उच्चतम जल
    रेखा तक पहुँचती है।
  • तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना पर्यावरणीय, आर्थिक, मानवीय स्वास्थ्य और संबंधित गतिविधियों के संतुलन हेतु तटीय क्षेत्रों के प्रबंधन को शामिल करती है।

चिंताएं

  • पर्यावरणविदों के अनुसार नए विनियम बिना किसी पारदर्शी सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया के निर्मित किए गए हैं। इसके अतिरिक्त प्रस्तावित संशोधन अनेक संरक्षित क्षेत्रों में वाणिज्यीकरण को प्रोत्साहित करेंगे तथा यह पर्यावरण और तटीय समुदायों हेतु विनाशकारी सिद्ध हो सकते हैं।
  • नेशनल फिशवर्कर्स फोरम (NFF) के अनुसार यह प्रारूप राष्ट्रीय सतत तटीय प्रबंधन केंद्र के अनुरूप उच्च ज्वार रेखा के दोषपूर्ण सीमांकन पर आधारित है। साथ ही यह मछुआरा समुदायों के प्रचलित भूमि उपयोगों तथा परम्परागत भूमि अधिकारों को प्रभावित करेगा।
  • इसमें CRZ-III के अंदर नो डेवलपमेंट जोन को 200 मी. से 50 मी. तक घटाया गया है जो सभी विकासात्मक गतिविधियों को दूर रखने तथा स्थल और समुद्र की अंतःक्रिया हेतु एक बफर जोन का निर्माण कर तटीय संरक्षण रणनीति के संबंध में वैज्ञानिकों के तर्को की अवहेलना करता है।

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