‘मृत क्षेत्र’ (डेड जोन) : इन क्षेत्रों के प्रभाव

प्रश्न: ‘मृत क्षेत्र’ (डेड जोन) क्या हैं? इनके निर्माण के कारणों का उल्लेख कीजिए। ऐसे मृत क्षेत्रों के प्रभाव की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।

दृष्टिकोण

  • ‘मृत क्षेत्रों’ को व्यापक रूप से परिभाषित कीजिए।
  • इनके गठन के कारणों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • इन क्षेत्रों के प्रभाव की चर्चा कीजिए।

उत्तर

मृत क्षेत्र न्यूनतम ऑक्सीजन स्तरों (hypoxic) वाले क्षेत्र होते हैं, जो झीलों और महासागरों जैसे जल निकायों में पाए जाते हैं। इन्हें मृत क्षेत्र कहा जाता है, क्योंकि ऐसे अधिकांश जीव जिन्हें जीवित रहने हेतु ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, वे इन परिस्थितियों में जीवित नहीं रह सकते। साथ ही साथ, शेष ऑक्सीजन एवं पोषक तत्वों की प्राप्ति हेतु जीव एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा आरम्भ कर देते हैं। हाइपोक्सिया (ऑक्सीजन की अत्यल्प मात्रा) सामान्य रूप से एल्गल ब्लूम के उपरान्त घटित होने वाली प्रक्रिया है।

मृत क्षेत्रों के निर्माण के कारण:

सुपोषण (Eutrophication) मृत क्षेत्रों के गठन का प्रमुख कारण है। यह नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों की अतिरिक्त मात्रा के कारण जल निकाय में पोषक तत्वों के संवर्धन की प्रक्रिया है।  जल में पोषक तत्वों के उच्च स्तर के परिणामस्वरूप साइनोबैक्टीरीया की अनियंत्रित रूप से वृद्धि (एल्गल ब्लूम) हो जाती है जो अन्य जीवों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। इससे अधिकांश जीवों की मृत्यु हो जाती है। मृत क्षेत्र के निर्माण के लिए निम्नलिखित कारक ज़िम्मेदार हैं:

  • पशुओं द्वारा प्राप्त खाद तथा उर्वरक मिश्रित कृषि-अपवाह। 
  • सीवेज और औद्योगिक गतिविधियों द्वारा अनुपचारित अपशिष्ट जल।
  • अतिमत्स्यन से प्रभावित समुद्री खाद्य जाल।
  • जीवाश्म ईंधन इत्यादि के दहन के परिणामस्वरूप निर्मुक्त वायुमंडलीय नाइट्रोजन।
  • जनसंख्या वृद्धि और संबद्ध गतिविधियाँ।

प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले मृत क्षेत्रों के निर्माण का कारण ऑक्सीजन युक्त जल का केवल सागर के ऊपरी भाग में पाया जाना है। अतः निचले क्षेत्र ऑक्सीजन की कमी से ग्रसित रहते हैं। उदाहरण के लिए, विश्व में विशालतम मृत क्षेत्र प्राकृतिक रूप से काला सागर के निचले भाग में पाया जाता है। जलवायु परिवर्तन भी मृत क्षेत्रों के निर्माण में सहायता प्रदान करता है ,क्योंकि जल निकायों का बढ़ा हुआ तापमान ऑक्सीजन की घुलनशीलता को कम कर देता है।

मृत क्षेत्रों के प्रभाव:

  • समुद्री जीवन एवं संसाधनों, विशेष रूप से नितलस्थ समुदाय (बेन्थिक कम्युनिटी) की क्षति।
  • मछलियों और मुक्त रूप से तैरने वाले अन्य समुद्री जीवों का बड़े पैमाने पर पलायन।
  • तटीय समुदायों की आर्थिक, पारिस्थितिकीय और आजीविका संबंधी क्षतियाँ।
  • मानब रोगग्रस्तता, उदाहरण के लिए शेल फिश की विषाक्तता के कारण बीमारी।

हालांकि मृत क्षेत्र व्युत्क्रमणीय होते हैं अर्थात इन्हे पुनः सामान्य किया जा सकता है। सुपोषण को कम करने या नियंत्रित किए जाने के उपायों के माध्यम से इन्हे पुनः परिवर्तित किया जा सकता है। अतः इनके प्रसार की रोकथाम हेतु औद्योगिक एवं अपशिष्ट जल नियंत्रण जैसे सामूहिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।

Read More

 

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.