कार्बन अभिग्रहण और भण्डारण : संभावित लाभ और चुनौतियां

प्रश्न: कार्बन अभिग्रहण और भण्डारण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। इसके संभावित लाभों का उल्लेख कीजिए तथा भारत में इसके व्यापक पैमाने पर परिनियोजन में आने वाली उन चुनौतियों की विवेचना कीजिए जिन्हें दूर किए जाने की आवश्यकता है।

दृष्टिकोण

  • व्याख्या कीजिए कि कार्बन अभिग्रहण (कार्बन कैप्चर) और भण्डारण (स्टोरेज) क्या है और संक्षेप में इसकी प्रक्रिया की भी व्याख्या कीजिए।
  • इसके संभावित लाभों पर प्रकाश डालिए।
  • उन चुनौतियों पर चर्चा कीजिए, जिनका इसको लागू करने में भारत को सामना करना पड़ेगा।
  • संक्षिप्त निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

कार्बन अभिग्रहण और भण्डारण (CCS) जीवाश्म ईंधन विद्युत संयंत्रों जैसे बड़े बिंदु स्रोतों से अपशिष्ट कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का अभिग्रहण करने, उसे भण्डारण स्थल तक पहुंचाने और इस प्रकार निक्षेपित करने (सामान्यतः भूमिगत भूगर्भीय संरचनाओं में) की प्रक्रिया है कि वह वायुमंडल में पुनः प्रवेश न कर पाए। CCS की प्रक्रिया नीचे दिए गए चित्र में समझाई गई  है:

ग्लोबल कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS) संस्थान के अनुसार, भारत उन 24 विकासशील देशों में से एक है जो वर्तमान में CCS गतिविधियों, जैसे- क्षमता विकास, योजना निर्माण और पूर्व-निवेश एवं परियोजना विकास में संलग्न हैं।

संभावित लाभ

  • वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को रोकना: अधिकांश देशों ने वैश्विक GHG उत्सर्जन में गहन कटौती की आवश्यकता को मान्यता दी है, जिसका उद्देश्य वैश्विक औसत तापमान को पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए प्रयास करना है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को शामिल करना: उत्सर्जन अधिग्रहण से अत्यधिक हीट वेव्स, सूखा, गंभीर तूफानों, समुद्र के स्तर में वृद्धि और अन्य उल्लेखनीय जलवायु परिवर्तन प्रभावों की घटनाओं को कम करने में मदद मिलेगी।
  • ऊर्जा की मांग को पूरा करना: CCs के माध्यम से उत्सर्जन को कम करने से जनसंख्या और आय के स्तर में वृद्धि के कारण बढ़ती ऊर्जा की मांग को जीवाश्म ईंधनों के माध्यम से पूर्ण करने हेतु कुछ छूट प्राप्त होगी।

इसके अतिरिक्त, अभिगृहीत की गई CO2 के वाणिज्यिक और औद्योगिक उपयोग हैं, विशेष रूप से समाप्त हो रहे तेल क्षेत्रों से एनहांस्ड ऑयल रिकवरी (EOR) हेतु। इसमें तेल के गुणों को बदलने और निष्कर्षण को आसान बनाने की क्षमता होती है।

इसको लागू करने में भारत के लिए चुनौतियां

  • आर्थिक मुद्दे: CCS को ऊर्जा के बाहरी इनपुट की आवश्यकता होती है और CCS के लिए एक नया संयंत्र चलाने हेतु विद्युत के अतिरिक्त उपयोग का एक अतिरिक्त बोझ आर्थिक दृष्टिकोण से व्यवहार्य नहीं है।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: कई पर्यावरणीय चिंताएँ CCS से सम्बद्ध हैं, जैसे: 
  • प्रत्यक्ष CO2 रिसाव से संभावित भूजल संदूषण।
  • कॉर्बन डाइ ऑक्साइड की वृहत् मात्रा को भूमिगत रूप से इंजेक्ट करने और परिणामी दबाव के निर्माण के कारण भूकंपीय जोखिम की संभावना।
  • सतह पर मंद रूप से, लंबे समय तक या अचानक CO2 के वृहत् उत्सर्जन से सम्बद्ध जलवायु जोखिम।
  • नियामक मुद्दे: भारत में CCS को अपनाने के संबंध में किसी भी नीतिगत ढाँचे का अभाव प्रौद्योगिकी में विश्वास को बाधित करने वाले सार्वजनिक मुद्दों और सुरक्षा के मुद्दों पर चिंता उत्पन्न करता है।
  • स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: भूगर्भीय CO2 भंडारण स्थलों का आकलन करना और उनका अनुरक्षण करना एक लंबी प्रक्रिया है। साथ ही CO2 को वहां संगृहीत करने से पूर्व स्थल का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है। परिचालन संबंधी समस्याओं और CO2 के सतह पर रिसाव होने (जिसमें उच्च सांद्रता होने पर यह दम घोंटू के रूप में कार्य कर सकती है) से मानव स्वास्थ्य को खतरा है।
  • तकनीकी चुनौती: यद्यपि कार्बन कैप्चर और सीक्वेस्ट्रेशन टेक्नोलॉजी चेन के प्रत्येक तत्व को विकसित और बड़े पैमाने पर सिद्ध किया गया है, तथापि एकीकृत परिनियोजन के लिए महत्वपूर्ण अंतरालों को अभी भी पूर्ण करना शेष है।

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक ऐसी व्यापक नीति की आवश्यकता है जो इसको लागू करने में निवेश को प्रोत्साहित करे, CCS संयंत्रों के लिए प्रदर्शन मानकों को स्थापित करे और भूमि अधिग्रहण से संबंधित विभिन्न कानूनी मुद्दों को संबोधित करे।

इसके अलावा, कैप्चर की लागत को कम करने, गहरे खारे जलाशयों में इंजेक्ट की गई CO2 के व्यवहार की बेहतर समझ प्राप्त करने, निगरानी और सत्यापन प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने और CCS संयंत्र के विभिन्न घटकों को एकीकृत करने के लिए सरकारी सहायता की आवश्यकता होती है। अंत में, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि ये परियोजनाएं सुरक्षा के उच्चतम मानकों को पूरा करें ताकि जनता का विश्वास हासिल किया जा सके। ऐसा किए जाने पर ही CCS रणनीति उत्सर्जन को कम करने और निकट भविष्य में वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगी।

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