केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission: CVC)

केंद्रीय सतर्कता आयोग की स्थापना 1964 में केंद्र सरकार द्वारा पारित एक प्रस्ताव के माध्यम से केंद्र सरकार की संस्थाओं में भ्रष्टाचार को रोकने हेतु एक शीर्ष संस्था के रूप में की गयी थी। तत्पश्चात, 2003 में संसद द्वारा पारित एक विधि द्वारा CVC को सांविधिक दर्जा प्रदान किया गया।

संगठन

  •  CVC एक बहु-सदस्यीय निकाय है जो केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त (अध्यक्ष) और दो से अनाधिक सतर्कता आयुक्तों से मिलकर बना हैं।
  •  इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित एक तीन सदस्यीय समिति की सिफारिश पर की जाती है जिसमें अन्य सदस्य के रूप में केंद्रीय गृह मंत्री और लोकसभा में विपक्ष का नेता शामिल होते हैं।
  •  इनका कार्यकाल 4 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, तक होता है।

केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के कार्य निम्नलिखित हैं

  • केन्द्रीय सरकार द्वारा भेजे गए किसी संदर्भ पर जांच करना अथवा जांच या अन्वेषण करवाना जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि  एक लोक सेवक ने भ्रष्टाचार रोकथाम के तहत अपराध किया है।
  • भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम, 1988 के अंतर्गत किए गए अपराधों की जांच में संलग्न विशेष दिल्ली पुलिस बल (CBI) की कार्यप्रणाली का अधीक्षण करना।
  • भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम, 1988 के तहत अभियोजन चलाने हेतु संबंधित प्राधिकरणों को दिए गए लंबित आवेदनों की प्रगति की समीक्षा करना।
  • केंद्र सरकार के मंत्रालयों और इसके प्राधिकरणों के सतर्कता प्रशासन का अधीक्षण करना।
  • ग्रुप A,B, C और D के अधिकारियों और कर्मचारियों के संबंध में लोकपाल द्वारा संदर्भित शिकायतों की आरंभिक जांच करना।
  • केंद्र सरकार को केन्द्रीय सेवाओं और अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्यों से संबंधित सतर्कता और अनुशासनात्मक मामलों को नियंत्रित करने संबंधी नियमों एवं विनियमों के निर्माण के समय CVC से परामर्श करने की आवश्यकता है।

चुनौतियां

  •  मुख्य सतर्कता अधिकारी की नियुक्ति पारदर्शी और स्पष्ट नहीं है, क्योंकि चयन के संबंध में समिति के सदस्यों के मध्य सर्वसम्मति की कोई सांविधिक बाध्यता नहीं है।
  • Cvc केवल एक सलाहकारी निकाय है। भ्रष्टाचार के मामलों में केंद्रीय सरकारी विभाग, CVC की सलाह को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र हैं।
  • प्राप्त होने वाली शिकायतों की संख्या की तुलना में CVC के पास पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हैं।
  • आयोग को सक्षम प्राधिकरण के रूप में लोक अधिकारियों द्वारा किए गए अपराधों हेतु आपराधिक अभियोजन की स्वीकृति प्रदान करने की शक्ति प्राप्त नहीं है।
  • भ्रष्टाचार विरोधी तंत्र के प्रति लोगों में निराशा: जब इसे शिकायत प्राप्त होती है, तो CVC उपयुक्त एजेंसियों से जाँच रिपोर्ट की मांग करता है, अधिकांश मामलों में यह पाया गया है कि रिपोर्ट तैयार करने और आयोग को प्रस्तुत करने में अत्यधिक विलम्ब हो जाता है।
  • आयोग की सलाह की अस्वीकृति या आयोग से परामर्श न करनाः मुख्य सतर्कता अधिकारियों (CVO) द्वारा प्रस्तुत जांच रिपोर्ट के मामले में, इनमें से लगभग आधे मामलों को बिना किसी कार्रवाई के ही बंद कर दिया जाता है। यह सतर्कता प्रक्रिया को विकृत करता है और सतर्कता प्रशासन की निष्पक्षता को कमजोर बनाता है।
  • आयोग की सलाह से विचलन होना: CVC की वार्षिक रिपोर्ट यह निर्दिष्ट करती है कि वर्ष 2017 के दौरान, विभिन्न मंत्रालयों द्वारा आयोग की सलाह से कुछ महत्वपूर्ण विचलन पाया गया था।
  •  लंबित मामले: CVC ने यह पाया है कि CvO के पास कई शिकायतें दीर्घकाल से लंबित हैं। मुख्य सतर्कता अधिकारियों को आयोग द्वारा जांच के लिए भेजी गई शिकायतों पर तीन महीने के भीतर जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है।
  •  हालांकि CVC को CBI पर पर्यवेक्षी शक्तियां प्राप्त हैं, फिर भी CBI से किसी भी फाइल की मांग करने या CBI को किसी विशेष मामले की जांच करने हेतु निर्देशित करने की शक्ति प्राप्त नहीं है।
  • केन्द्रीय सतर्कता आयोग में लंबे समय से लंबित रिक्तियां।
  • अज्ञात और छद्म शिकायतें CVC की दक्षता को प्रभावित कर रही हैं।
  • हालांकि अधिनियम इसे निर्दिष्ट नहीं करता है फिर भी इन पदों के लिए चुने गए व्यक्तियों में त्रुटिहीन सत्यनिष्ठा की आशा की जाती है लेकिन कई अवसरों पर इससे समझौता किया जा रहा है।

आगे की राह

  • यह अनुशंसा की गयी है कि CVC को CvOs के चयन के लिए ऐसे वैज्ञानिक मानदंड विकसित करने चाहिए जो Cv0 के लिए आवश्यक योग्यता के अनुरूप हों।
  • भ्रष्टाचार के खतरों और नकारात्मक परिणामों के संबंध में लोगों को संवेदनशील बनाना चाहिए।
  • यह अनुशंसा की गयी है कि CVC को अपनी अग्र सक्रिय भूमिका को तीव्र और विस्तृत करना चाहिए तथा इससे अत्यधिक गहनता और कवरेज प्राप्त करना चाहिए।
  • CVC को कंपनियों को गलत, दुर्भावनापूर्ण, असंतोषजनक और निराधार शिकायतों, जिनके कारण किसी रणनीतिक निर्णय में विलंब हो सकता है, के सभी मामलों में IPC और CrPC की संबंधित धाराओं के तहत कार्यवाही आरंभ करने के लिए सख्त दिशानिर्देश देना चाहिए।

यह अनुशंसा की जाती है कि CVOs को लंबे समय तक और लगातार प्रशिक्षित किया जाता है और प्रबंधन लेखा परीक्षा, निर्णय निर्माण प्रक्रिया आदि के संबंध में पर्याप्त जानकारी प्रदान की जाती है।

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