नियामकों की संवीक्षा तथा संवीक्षा की आवश्यकता का परिचय

प्रश्न: नियामकों की संवीक्षा के लिए उपलब्ध संसदीय प्रणालियों को सूचीबद्ध कीजिए। साथ ही, उन प्रमुख कदमों की चर्चा कीजिए, जिनके माध्यम से नियामकों की संसदीय निगरानी को सुदृढ़ किया जा सकता है।

दृष्टिकोण

  • नियामकों की संवीक्षा तथा संवीक्षा की आवश्यकता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • नियामकों की संवीक्षा के लिए उपलब्ध संसदीय प्रणालियों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • सुझाव दीजिए कि नियामकों की संसदीय निगरानी को कैसे सुदृढ़ किया जा सकता है।
  • सुझाव

उत्तर

नियामकीय स्वतंत्रता, सरकारी अधिकारियों की मनमानी कार्यवाहियों की रोकथाम और साथ ही साथ सरकारी नीतियों से सुसंगत विनियमों के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु नियामकों की संसदीय निगरानी अनिवार्य मानी गई है। भारत में नियामकों की संसदीय संवीक्षा निम्नलिखित साधनों के माध्यम से निष्पादित होती है:

  • प्रश्नकाल: प्रत्येक नियामक एक सरकारी विभाग के प्रशासनिक दायरे के अधीन आता है। प्रश्नकाल के दौरान सांसद मंत्रालयों तथा उनके विभागों से संबंधित नियामकों के कार्यों की संवीक्षा हेतु प्रश्न पूछ सकते हैं।
  • चर्चाएँ: संसद की प्रक्रिया के विभिन्न नियमों (जैसे- आधे घंटे की बहस और लोकसभा में नियम 193 के तहत की जाने वाली चर्चाएं) के तहत संसद बहस हेतु नियामकों की भूमिका पर विचार कर सकती है।
  • विभागों से संबद्ध स्थायी समितियां: संसद में विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों की संख्या 24 है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के सदस्य सम्मिलित होते हैं। ये समितियां मंत्रालय विशिष्ट होती हैं तथा संबंधित विभागों के अंतर्गत आने वाले नियामकों के कार्यों की समीक्षा कर सकती हैं।
  • वित्त समितियां: प्राक्कलन समिति नियामकों के बजटीय अनुमानों की समीक्षा करती है। नियामकों की लेखाओं पर वार्षिक लेखांकन रिपोर्टों को संसद के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तथा लोक लेखा समिति द्वारा उसकी समीक्षा की जाती है। लोक लेखा समिति नियामकों के अधिकारियों से समिति के समक्ष उपस्थित होने की मांग कर सकती है।
  • तदर्थ समितियां: संसद नियामकों की कार्यप्रणालियों का परीक्षण करने वाली तदर्थ समितियों का गठन कर सकती है।

इसके साथ ही नियामकों की संसदीय निगरानी को सुदृढ़ करने हेतु निम्नलिखित प्रमुख कदम उठाए जा सकते हैं:

  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने अनुशंसा की थी कि नियामकों के मूल्यांकन हेतु दिशानिर्देशों का प्रस्ताव रखने हेतु प्रतिष्ठित विशेषज्ञों के एक निकाय का प्रत्येक पांच वर्ष में एक बार गठन किया जाना चाहिए। इसका उद्देश्य आगामी पांच वर्षों हेतु नियामक को जवाबदेह बनाने के लिए सिद्धांतों को अंतिम रूप प्रदान करना होगा।
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने यह भी अनुशंसा की थी कि नियामकों द्वारा संसद के समक्ष प्रस्तुत की जाने वाली वार्षिक रिपोर्टों में पूर्व-सहमत मूल्यांकन मापदंडों पर हुई प्रगति को सम्मिलित किया जाना चाहिए तथा संसदीय समितियों में उन पर चर्चा की जानी चाहिए।
  • नियामकों के साथ समिति की चर्चाओं और वार्षिक रिपोर्ट को लोगों को व्यापक रूप से सुलभ करवाया जाना चाहिए।
  • सांसदों को विशेषज्ञों की सहायता उपलब्ध करवाई जानी चाहिए क्योंकि प्रभावी संवीक्षा उनके कौशल एवं संसाधनों पर निर्भर होती है।
  • समितियों को नियामकों की आवधिक समीक्षा करनी चाहिए क्योंकि नियामकों की तदर्थ संवीक्षा प्रभावी निगरानी हेतु पर्याप्त नहीं है।

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