भारत में सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन : भारतीय समाज पर इन सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों के सकारात्मक प्रभाव
प्रश्न:अपनी सीमाओं के बावजूद, ब्रिटिश काल के दौरान सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों ने भारतीय समाज में कई दूरगामी परिवर्तनों का मार्ग प्रशस्त किया। चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- भारत में सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों का एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करते हुए परिचय दीजिए।
- इन सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों की सीमाओं को रेखांकित कीजिए।
- भारतीय समाज पर इन सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों के सकारात्मक प्रभावों की संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर निष्कर्ष दीजिए।
उत्तर
19वीं सदी के दौरान भारत में महत्वपूर्ण सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन हुए थे। एक वैकल्पिक सांस्कृतिक-वैचारिक प्रणाली का विकास तथा पारंपरिक संस्थाओं का पुनरुत्थान, सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों के दोहरे उद्देश्य के रूप में उभर कर आए।
सुधार आंदोलनों की निम्नलिखित सीमाएं थीं:
- संकुचित सामाजिक आधार: व्यवहार में इन सुधारों ने एक बहुत ही छोटे अल्पसंख्यक वर्ग (शिक्षित एवं शहरी मध्यम वर्ग) को प्रभावित किया, जबकि विशाल जन समूह की आवश्यकताओं को उपेक्षित किया। ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तृत व्यापक निरक्षरता ने इन आंदोलनों (मुख्यत: शहर आधारित) के जनाधार को अत्यंत सीमित कर दिया था।
- रहस्यवाद और छद्म वैज्ञानिक विचार: अतीत की महानता पर पुनर्विचार तथा धर्मग्रंथों की सत्ता में विश्वास करने की सुधारकों की प्रवृति ने रहस्यवाद को नए रूप में प्रोत्साहित किया तथा छद्म वैज्ञानिक विचारों को बढ़ावा दिया।
- इन आंदोलनों की स्थानिक प्रकृति के साथ-साथ एकता तथा एक सुदृढ़ संगठन के अभाव ने इनके प्रभावों को सीमित कर दिया था।
इन सीमाओं के बावजूद इन सुधार आंदोलनों ने भारतीय समाज पर कई दूरगामी प्रभावों का मार्ग प्रशस्त किया, जैसे कि:
- इन सुधार आंदोलनों द्वारा भारतीय राष्ट्रवाद के विकास और राजनीतिक जागरूकता हेतु आधार निर्मित किया गया। उदाहरणार्थ- ब्रह्म समाज, आर्य समाज, राम कृष्ण मिशन और थियोसोफिकल सोसाइटी।
- आत्म-निर्भरता तथा दृढ़ संकल्प की भावना: स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर और रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा प्रारम्भ किए गए सुधारों ने भारतीय लोगों को नव जीवन प्रदान किया एवं उनमें नवीन भावना का विकास किया।
- शिक्षा के क्षेत्र में योगदान: सुधारकों ने शिक्षा के क्षेत्र में अनेक कार्य किए तथा भारतीयों के लिए कई विद्यालय एवं महाविद्यालय स्थापित किए। उदाहरणार्थ- हिन्दू कॉलेज, मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज इत्यादि।
- आधुनिक विचार: इन सुधार आंदोलनों ने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक स्वतंत्रता तथा मौलिक अधिकारों पर बल दिया, जिन्हें बाद में स्वतंत्रता उपरांत भारतीय संविधान में मूल ढांचे के रूप में अपनाया गया।
- जाति व्यवस्था की कठोरता पर आघात: इन सुधार आंदोलनों ने निचली जातियों के कल्याण तथा समाज में उनकी स्थिति में सुधार लाने हेतु कार्य किया।
- समाज में महिलाओं की स्थिति पर प्रभाव: सुधारकों द्वारा सती प्रथा जैसी निंदनीय प्रथाओं के उन्मूलन, महिलाओं की शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह जैसे सुधारों के माध्यम से समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार का प्रयास किया गया।
यद्यपि इन सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों की कुछ सीमाएं थीं परन्तु निश्चित रूप से यह एक निर्विवाद सत्य है कि इन आंदोलनों ने भारतीय समाज की सामाजिक-सांस्कृतिक जागरूकता पर आश्चर्यजनक और चिरस्थायी प्रभाव डाला, जिसने आधुनिक भारत के विकास की आधारशिला रखी।
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भारत में धार्मिक सुधार आंदोलन