तटीय रोजगार क्षेत्र (कोस्टल एम्प्लॉयमेंट जोन : CEZs) : भारत में CEZS की चुनौतियों और संभावनाओं पर चर्चा

प्रश्न: तटीय रोजगार क्षेत्र (कोस्टल एम्प्लॉयमेंट जोन : CEZs) निर्यात प्रेरित संवृद्धि को बढ़ावा देने और उत्पादक रोजगारों के सृजन दोनों के सन्दर्भ में अवसर प्रस्तुत करते हैं। इस सन्दर्भ में, भारत में CEZs की विशेषताओं, चुनौतियों और संभावनाओं पर चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • नीति आयोग के हालिया प्रस्ताव का उल्लेख करते हुए, तटीय रोजगार क्षेत्रों (CEZs) की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  • विभिन्न आयामों के सन्दर्भ में भारत में CEZS की चुनौतियों और संभावनाओं पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

नीति आयोग ने निर्यात को बढ़ावा देने तथा उच्च उत्पादकता एवं बेहतर आय वाले रोजगार अवसरों का सृजन करने की चीनी रणनीति की तर्ज पर दो तटीय रोजगार क्षेत्रों (एक पश्चिमी और दूसरा पूर्वी तट पर) के निर्माण हेतु अनुमति प्रदान की।

तटीय रोजगार क्षेत्रों (CEZs) की विशेषताएं: 

  • प्रत्येक CEZ 500 वर्ग किलोमीटर या उससे अधिक के व्यापक भौगोलिक क्षेत्र में विस्तृत अनेक तटीय जिलों का एक संकुल होगा।
  • भूमि रूपांतरण के उदार नियम विभिन्न अंतर-संबंधित आर्थिक गतिविधियों को बड़े पैमाने पर समायोजित करने में सहायता करेंगे। इससे लागतों में कमी आएगी और लाभ के अवसरों का सृजन होगा।
  • ये एक भौगोलिक सीमा प्रदान करेंगे जिसके अंतर्गत बंदरगाहों और तटीय राज्यों के साथ एक समान नीति की सहायता से बंदरगाह आधारित औद्योगिकीकरण का विकास किया जाएगा।
  • CEZs के अंतर्गत उदार श्रम कानूनों एवं अन्य कर सम्बन्धी रियायतों जैसे सीमित अवधि के कर अवकाश आदि को शामिल किए जाने की उम्मीद है। CEZs ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस, विशेष रूप से निर्यात एवं आयात में सुगमता, त्वरित पर्यावरण मंजूरी इत्यादि को सुविधाजनक बनाएँगे।
  • प्रत्येक CEZ, उसमें नियोजित लोगों की आवासीय सुविधाओं को सुनिश्चित करने हेतु शहरी स्थान (अर्बन स्पेस) उपलब्ध कराएगा।

चुनौतियां:

  • राज्यों में भू-खण्डों की अनुपलब्धता तथा अधिग्रहण और क्षतिपूर्ति की बड़ी लागतें ऐसी परियोजनाओं के क्रियान्वयन में देरी का कारण बन सकती हैं।
  • UNCTAD के सर्वेक्षण के अनुसार, ऐसे ‘उत्कृष्टता के द्वीप (islands of excellence)’, अन्य क्षेत्रों को विकास से वंचित कर, एक बड़ा राजनीतिक जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं।
  • परिवहन माध्यमों के उप-इष्टतम संयोजन (सब-ऑप्टीमल ट्रांसपोर्ट मॉडल मिक्स), मानकों की कमी, तटीय और अंतर्देशीय शिपिंग आदि की सीमित पहुँच के कारण CEZs की अनुमानित क्षमताओं को प्राप्त न कर पाने की भी सम्भावना है।
  • वैश्विक मांग में कमी के कारण,CEZs की आपूर्ति दक्षता के पूर्ण रूप से विकसित होने में समय लगेगा।
  • अधिसूचना हेतु अनुपयुक्त भूमि को शामिल करना, आवश्यकता से बहुत अधिक भूमि का आवंटन और अधिसूचित भूमि का लम्बे समय तक उपयोग न किया जाना आदि CEZ भूमि का अधिक लाभदायक व्यावसायिक उद्देश्यों हेतु व्यपवर्तन (डायवर्ज़न) किये जाने का कारण बन सकते हैं।

संभावनाएँ:

  • श्रम गहन क्षेत्रकों जैसे परिधान, फुटवियर, इलेक्ट्रॉनिक और विद्युत उत्पादों आदि पर आधारित निर्यात केन्द्रित तटीय अर्थव्यवस्था उच्च उत्पादकता वाले उन्नत रोजगार उत्पन्न करने में सहायता करेगी।
  • चीन से अनेक फर्मों के बहिर्गमन के कारण भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रवासी फर्मों के निर्यात आधार के रूप में स्थापित होने के लिए बेहतर स्थिति में है।
  • यह प्रौद्योगिकी, पूंजी व कुशल प्रबंधन को लाने वाली और विश्व बाजारों से जोड़ने वाली बड़ी कंपनियों को आकर्षित करेगा।
  • संकुलीकृत अर्थव्यवस्थाओं को समाहित करते हुए यह उनके इर्द-गिर्द एक पारितंत्र निर्मित करेगा जिसमें समूहों में संयोजित लघु और मध्यम उत्पादक फर्मे उभर कर सामने आएँगी तथा उनका विकास होगा।
  • CEZs, योजनाबद्ध औद्योगिक गलियारों जैसे विज़ाग-चेन्नई औद्योगिक कॉरिडोर और दिल्ली-मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर के साथ समन्वय स्थापित करने में सहायक होंगे।
  • स्वीकृति के समय में कमी और शुल्कों के मानकीकरण के साथ, ये क्षेत्र लंबे समय में बंधन मुक्त व्यापार क्षेत्रों के निर्माण के साथ ही प्रतिरोध रहित आयात-निर्यात के संचालन में सहायता करेंगे।

SEZs के अनुभवों से सीख लेकर विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में संसाधनों का अपर्याप्त वितरण करने के बजाय प्रारंभ में ज़ोन्स की संख्या को सीमित रखना व्यावहारिक होगा। इससे यह सुनिश्चित करने में सहायता मिलेगी कि प्रत्येक CEZ के अन्दर कई सेक्टर-स्पेस्फिक ज़ोन्स और क्लस्टर उत्पन्न हो रहे हों ताकि वे बड़े पैमाने पर व्यय में कमी एवं संकुलीकरण का पूर्ण लाभ उठा सकें।

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