सीमा प्रबंधन (Border Management)
भारत की स्थल सीमा 15,000 किमी लंबी है, जो सात देशों (पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, भूटान और अफगानिस्तान) के साथ साझा होती है। इसके अतिरिक्त, इसकी तट रेखा 7,500 किमी से भी अधिक लंबी है।
देश के कुछ राज्यों के अतिरिक्त अन्य सभी राज्यों में एक या अधिक अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं या समुद्र तटरेखा उपस्थित है और इन्हें सीमा प्रबंधन के दृष्टिकोण से फ्रंटलाइन राज्य के रूप में माना जा सकता है।
गृह मंत्रालय अंतर्राष्ट्रीय भूमि और तटीय सीमाओं के प्रबंधन, सीमा सुरक्षा और सड़क, बाड़ लगाने और सीमाओं पर रोशनी की व्यवस्था जैसी अवसंरचना के निर्माण के लिए उत्तरदायी है। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सीमाओं का समुचित प्रबंधन अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हमारी विस्तृत सीमाओं के विभिन्न भागों में अनेक समस्याएं विद्यमान हैं जिनका समुचित समाधान किया जाना चाहिए। सीमा सुरक्षा के प्रबंधन को प्रभावित करने वाली कुछ सामान्य समस्याओं में निम्नलिखित सम्मिलित हैं:
- हमारी स्थल और समुद्री सीमाओं के उचित सीमांकन का अभाव।
- सभी सीमाओं पर जटिल और भिन्न-भिन्न प्रकार के भूभाग सीमा प्रबंधन में विशेषज्ञता प्राप्त करना कठिन बनाते हैं।
- सुरक्षा से सम्बद्ध विभिन्न एजेंसियों के मध्य समन्वय की कमी।
- सीमा बलों के लिए अवसंरचना का अभाव जिसमें श्रमबल और अवसंरचना, दोनों की कमी शामिल है।
- सीमा क्षेत्रों के स्थानीय लोगों की समस्याओं पर पर्याप्त ध्यान न देना। सुरक्षा बलों और सरकार के विरुद्ध वैमनस्य का भाव उत्पन्न करने के लिए अराजक तत्वों द्वारा इन स्थानीय लोगों का शोषण किया जाता है।
- सुरक्षा बलों पर पर्याप्त ध्यान न देना जैसे मोबाइल कनेक्टिविटी न होने के कारण अलगाव, अपर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं, सेना
की तुलना में पारिश्रमिक और भत्ते में असमानता आदि।
भारत – चीन
सीमा से सम्बद्ध चुनौतियां
- जम्मू-कश्मीर में अक्साई चिन के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश में छुट-पुट आक्रामकता के साथ सीमा विवाद।
- यद्यपि सीमावर्ती व्यापार के लिए केवल तीन निर्दिष्ट क्षेत्र हैं; तथापि इन सीमा-स्थलों के माध्यम से चीन के इलेक्ट्रॉनिक और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की बड़े पैमाने पर तस्करी होती है।
- अत्यधिक ऊंचाई और सघन बसाव के कारण अपर्याप्त अवसंरचना। हालांकि, चीन ने हवाई, सड़क और रेल अवसंरचना के साथ-साथ सीमा के निकट निगरानी क्षमताओं को उन्नत करने के लिए व्यापक स्तर पर प्रयास किए हैं। |
- चीन की सीमा पर एकल PLA कमांडर के विपरीत भारतीय सीमा पर विभिन्न सुरक्षा बल तैनात हैं (उदाहरण के लिए- ITBP, असम राइफल्स, विशेष सीमा बल)।
- जल की साझेदारी का मुद्दा क्योंकि चीन अपनी ओर बाँध का निर्माण कर रहा है जिससे भारत की ओर जल का प्रवाह कम हो रहा है।
सरकार द्वारा आरंभ की गयी पहले
- अवसंरचना का निर्माण: भारत सैन्यदल के आवागमन | का समय कम करने हेतु कुछ महत्वपूर्ण पुलों का निर्माण कर रहा है। उदाहरण, ढोला-सादिया पुल।।
- चीन को नियंत्रित करने के लिए उत्तर-पूर्व में अवसंरचना परियोजनाओं को शीघ्रता से विकसित करने हेतु भारत ने जापान का सहयोग प्राप्त किया है।
- LAC के 100 किलोमीटर के अंदर सैन्य अवसंरचना परियोजनाओं को वन अनुमति से छूट प्रदान की गई।
- सीमा सड़क निर्माण में तीव्रता लाने हेतु, रक्षा मंत्रालय ने सीमा सड़क संगठन (BRO) को प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियां सौंपने का निर्णय लिया है।
भारत-पाक
सीमा से सम्बद्ध चुनौतियां
- सर क्रीक और कश्मीर में सीमा विवाद।
- सिंधु नदी जल बंटवारे का मुद्दा।
- भारत को अस्थिर करने के उद्देश्य से घुसपैठ और सीमा पार आतंकवाद। हाल ही में BSF ने जम्मू के वन क्षेत्र में पांचवीं (2012 से) सीमा पार सुरंग का पता लगाया है।
- रेगिस्तान, दलदल, बर्फ से ढके पर्वत और मैदान सहित विविधतापूर्ण भू-क्षेत्र सीमा सुरक्षा को कठिन बना देते हैं।
- अप्रत्याशित परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के कारण अबसंरचना परियोजनाओं में समय और लागत की अधिकता।
- अन्य मुद्दों में ड्रग तस्करी, नकली मुद्रा, हथियार तस्करी आदि सम्मिलित हैं।
सरकार द्वारा आरंभ की गयी पहले
- पठानकोट आतंकवादी हमले के बाद, गृह मंत्रालय ने व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली (CIBMS) के कार्यान्वयन को अनुमोदन प्रदान किया है। इसका उद्देश्य सामान्य परिस्थितियों के साथ-साथ प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में भी समग्र सुरक्षा प्रदान करने हेतु सीमाओं पर एक एकीकृत सुरक्षा प्रणाली की स्थापना करना है।
- केंद्र ने जम्मू-कश्मीर में भारतीय विशेष बल की इकाई राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) कमांडो को तैनात करने का निर्णय लिया है। इससे जम्मू-कश्मीर पुलिस और अन्य अर्धसैनिक बलों को संदिग्ध भवनों में प्रवेश (room intervention), आतंकवाद-रोधी कौशल, एंटी-हाईजैक ऑपरेशन के निरीक्षण आदि से संबंधित प्रशिक्षण प्रदान कर आतंकवाद-रोधी ऑपरेशनों को अधिक सुदृढ़ किया जा सकेगा।
भारत-नेपाल
सीमा से सम्बद्ध चुनौतियां
- ISI की बढ़ती गतिविधियों जैसे नेपाल सीमा से लड़ाकों और विस्फोटकों के प्रवेश के कारण भारत विरोधी और चरमपंथी गतिविधियों में वृद्धि।
- नेपाल के माओवादियों की संबद्धता भारत में होने के कारण माओवादी विद्रोह फैलने का भय।
- बच कर भाग निकलने की सहूलियत और अवैध गतिविधियां- खुली सीमा होने के कारण भारत और नेपाल के सुरक्षा बलों द्वारा वांछित विद्रोही, आतंकवादी एवं कई खतरनाक अपराधी बच निकलते हैं। ये राष्ट्र-विरोधी तत्व अवैध गतिविधियों जैसे अत्यावश्यक वस्तुओं और नकली भारतीय मुद्रा की तस्करी, हथियारों, ड्रग की तस्करी और मानव दुर्व्यापार में संलिप्त होते हैं।
- अन्य मुद्दे: कई बार विवादित सीमा दोनों पक्षों की भूमि पर अतिक्रमण का कारण बनती है।
सरकार द्वारा आरंभ की गयी पहले
- बेहतर परिचालन दक्षता सुनिश्चित करने के लिए भारत-नेपाल और भारत-भूटान सीमा पर SSB में एक नए खुफिया अनुभाग की स्थापना। |
- सीमा-पार अपराध, तस्करी, आतंकवादी गतिविधियों आदि जैसे साझा चिंता के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए दोनों देशों के जिले के अधिकारियों के स्तर पर सीमा जिला समन्वय समिति की स्थापना।
- भारत सरकार ने नेपाल सीमा के साथ 1377 किलोमीटर की सड़कों के निर्माण को स्वीकृति प्रदान की है।
- रोजगार के अवसरों की कमी के कारण होने वाली मानव तस्करी को रोकने के लिए नेपाल को विकास सहायता प्रदान करना।
भारत-भूटान
सीमा से सम्बद्ध चुनौतियां
- सीमा विवाद जैसे कि हाल में उठा डोकलाम मुद्दा जिसकी चिकन नेक से निकटता खतरे को बढ़ाती
- उग्रवाद- बोडो, ULFA आदि विभिन्न समूह शरण के लिए भूटान में छिप जाते हैं। हालांकि भूटान की सेना द्वारा उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाती है।
- भूटानी भांग (कैनाविस), शराब और वन उत्पादों जैसी वस्तुओं की तस्करी
- लोगों और वाहनों के मुक्त आवागमन के परिणामस्वरूप पश्चिम बंगाल में गोरखालैंड आंदोलन जैसे मुद्दों को बढ़ावा मिलता है।
- एक देश से दूसरे में प्रवासन से जनसांख्यिकी के परिवर्तन का भय उत्पन्न होता है। प्रवासियों पर निर्वनीकरण, शिकार और वन्यजीव तस्करी जैसे आरोप भी लगाये जाते हैं।
सरकार द्वारा आरंभ की गयी पहले
- द्विपक्षीय सहयोग – सीमा प्रबंधन और सुरक्षा पर भारत-भूटान समूह के रूप में सचिव स्तर पर एक द्विपक्षीय तंत्र अस्तित्व में है। यह खुली सीमा का लाभ उठाने का प्रयास करने वाले समूहों से दोनों देशों के समक्ष उत्पन्न होने वाले संभावित खतरे का आकलन कर रहा है।
- भूटान को विद्रोहियों का शरण स्थल बनने से रोकने के लिए भूटानी सेना के साथ सहयोग।
- 1000 अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती के साथ डोकलाम के निकट भूटान सीमा के साथ सिक्किम में नई सीमा पोस्टों की स्थापना।
- केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भूटान और म्यांमार सीमा से 16 किमी की हवाई दूरी के भीतर तथा नेपाल सीमा से 15 किलोमीटर की हवाई दूरी के भीतर प्रमुख सीमा अवसंरचना परियोजनाओं के लिए सामान्य अनुमोदन’ प्रदान किया है। इससे प्रायः अनुमोदन की धीमी गति के कारण प्रभावित होने वाले अवसंरचनात्मक विकास को गति प्रदान की जा सकेगी।
भारत-म्यांमार
सीमा से सम्बद्ध चुनौतियां
- मुक्त आवागमन व्यवस्था (FMR): उग्रवादियों द्वारा म्यांमार से आवागमन तथा प्रशिक्षण एवं हथियार प्राप्त करने के लिए के लिए FMR का दुरुपयोग किया जाता है।
- स्वर्ण त्रिभुज (golden triangle) के निकट होने के कारण मादक पदार्थों की तस्करी
- कमजोर सीमाएं क्योंकि कड़ी निगरानी सुनिश्चित करने के लिए सीमा के साथ बाड़ या सीमा चौकियों एवं सड़कों के रूप में व्यावहारिक रूप से कोई भौतिक अवरोध नहीं है।
- मोरेह और जोखावतर, जोकि सामान्य व्यापार और सीमा व्यापार के लिए दो निर्दिष्ट बिंदु हैं, में निम्नस्तरीय अवसंरचनात्मक सुविधाएं।
सरकार द्वारा आरंभ की गयी पहले
- कैबिनेट ने हाल ही में थाईलैंड और म्यांमार सहित सार्क देशों के साथ भारत की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए 13 नए इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट (ICPs) स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है। ICP वैध व्यापार और वाणिज्य की सुविधा प्रदान करने के साथ-साथ अवैध तत्वों को रोकने में सक्षम है।
भारत-बांग्लादेश
सीमा से सम्बद्ध चुनौतियां
- जल विवाद: तीस्ता नदी जल का बँटवारा, बराक नदी पर भारत द्वारा वाँध का निर्माण आदि।
- अवैध प्रवासन: 1971 के स्वतंत्रता के युद्ध, जिसके कारण बांग्लादेश राज्य का सृजन हुआ, के पश्चात् लाखों बांग्लादेशी प्रवासी (जिनमें से अधिकांश अवैध थे) भारत आये।
- नदीय क्षेत्रों की उपस्थिति, स्थानीय जनसंख्या द्वारा विरोध, भूमि अधिग्रहण में विलंब जैसे मुद्दों के कारण सीमा पर अपर्याप्त बाड़।
- जामदानी साड़ी, चावल, नमक जैसी वस्तुओं के साथ-साथ मवेशियों की तस्करी।
सरकार द्वारा आरंभ की गयी पहले
- सरकार ने भारत-बांग्लादेश सीमावर्ती राज्यों के साथ सीमा संरक्षण ग्रिड (BPG) की स्थापना की घोषणा की है। इसमें भौतिक अवरोध, गैर-भौतिक अवरोध, निगरानी प्रणाली, खुफिया एजेंसियां, राज्य पुलिस, BSF शामिल हैं। यह समग्र सीमा सुरक्षा में राज्यों के लिए अधिक सहायता सुनिश्चित करने हेतु राज्यों को भी भूमिका प्रदान की जाएगी।
- पुतखली और दौलतपुर पर BGB (सीमा गार्ड बांग्लादेश) सीमा चौकी तथा गुनरमठ और कल्याणी पर BSF सीमा चौकी के मध्य 8.3 किमी का अपराध मुक्त क्षेत्र स्थापित किया गया है। इस पहल का उद्देश्य उन सीमावर्ती स्थानों का चयन करना है। जो अवैध, असामाजिक एवं आपराधिक गतिविधियों से मुक्त हैं।
- कड़ी निगरानी हेतु क्लोज्ड-सर्किट कैमरे, सर्चलाइट्स, थर्मल इमेजिंग डिवाइस और ड्रोन जैसे सीमा निगरानी उपकरणों का प्रतिष्ठापन।
- BSF और BGB सीमा क्षेत्र में अपराध की रोकथाम के संबंध में स्थानीय लोगों के मध्य जागरूकता भी उत्पन्न कर रहे हैं।
भविष्य में निम्नलिखित कदमों को उठाए जाने की आवश्यकता है
- विवादों का समाधान- सरकार को पड़ोसी देशों के साथ लंबित सीमा विवादों का समाधान करना चाहिए, क्योंकि बाद में ये
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन जाते हैं। - सुरक्षा बलों का अन्य कार्यों हेतु उपयोग नहीं- सीमा-सुरक्षा बलों को उनके मुख्य कार्य से हटाकर अन्य आंतरिक सुरक्षा सम्बन्धी कार्यों के लिए तैनात नहीं किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए- ITBP, विशेष रूप से भारत-चीन सीमा के लिए प्रशिक्षित एक बल है, उसका उपयोग नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नहीं किया जाना चाहिए।
- सेना की भागीदारी – यह अनुभव किया गया है कि जम्मू-कश्मीर में LoC और भारत-तिब्बत सीमा पर LAC जैसी अस्थिर और विवादित सीमाओं का उत्तरदायित्व भारतीय सेना का होना चाहिए जबकि BSF को सभी शांत सीमाओं के लिए उत्तरदायी होना चाहिए।
- सीमाओं को प्रभावी रूप से प्रबंधित करने के लिए एक-बल-एक-सीमा के सिद्धांत का अनुपालन करना चाहिए, क्योंकि विभाजित उत्तरदायित्व के चलते प्रभावी नियंत्रण स्थापित करना संभव नहीं है।
- अवसंरचना का विकास- सीमा के साथ अवसंरचना का त्वरित विकास, विशेषकर, सीमावर्ती जनसंख्या को अवैध गतिविधियों से दूर करने के लिए।
- उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग – निगरानी प्रौद्योगिकी, विशेष रूप से उपग्रह और एरियल इमेजरी में उन्नति, LAC पर निरंतर सतर्कता बनाए रखने में सहायता कर सकती है और यह सैनिकों की प्रत्यक्ष तैनाती में कमी लाना संभव बनाती है।
- हवाई निगरानी – बड़ी संख्या में हेलीकॉप्टर इकाइयों की उपलब्धता हवाई निगरानी की गुणवत्ता में वृद्धि करेगी और आवश्यकता पड़ने पर सैनिकों की अति शीघ्रता से रक्षात्मक मोर्चे पर पहुँचने की क्षमता बढ़ जाएगी।
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