भारत में रक्षा उद्योग : आत्म-निर्भरता और स्वदेशीकरण से संबद्ध चुनौतियों

प्रश्न: भारत में रक्षा उद्योग के समक्ष उच्च आत्म-निर्भरता और स्वदेशीकरण से संबद्ध चुनौतियों की विवेचना कीजिए। इसकी गति को तीव्र करने हेतु क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

दृष्टिकोण

  • रक्षा उद्योग के वर्तमान परिदृश्य और भारत में इसके स्वदेशीकरण (आत्म-निर्भरता) की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए उत्तर आरम्भ कीजिए।
  • भारत में रक्षा उद्योग के पूर्ण स्वदेशीकरण को प्राप्त करने में सरकार के समक्ष व्याप्त चुनौतियों की गणना कीजिए।
  • इस सन्दर्भ में उठाए जा सकने वाले कदमों का उल्लेख कीजिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

भारत द्वारा चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी शत्रु राष्ट्रों के साथ अपनी सीमाओं को साझा करने के कारण रक्षा क्षेत्र देश की संप्रभुता को बनाए रखने हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण बना हुआ है। इसके परिणामस्वरूप भारत रक्षा पर व्यय करने वाले विश्व के शीर्ष देशों में से एक बन गया है। इसके अतिरिक्त भारत पिछले दशक में विश्व का शीर्ष हथियार आयातक देश भी रहा है।

भारतीय रक्षा खरीद ने स्वदेशीकरण को एक प्रमुख प्राथमिकता के रूप में निर्धारित किया है, जो वर्तमान में 35% से कम है। ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहल ने रक्षा क्षेत्र पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है। साथ ही यह रक्षा खरीद नीति में प्रगतिशील संशोधन फोकस में क्रमिक बदलाव (अधिक स्वदेशीकरण की ओर) को भी चिन्हित करता है।

किन्तु, इस क्षेत्र में निम्नलिखित चुनौतियां विद्यमान हैं जो भारत में रक्षा उद्योग के पूर्ण स्वदेशीकरण को प्राप्त करने में अवरोध के रूप में कार्य कर रही हैं:

  • अनुसंधान और विकास (R&D): वर्तमान में, भारतीय रक्षा बजट (फ्रांस द्वारा 15% और अमेरिका द्वारा 12% की तुलना में) R&D व्यय के रूप में लगभग 6% भाग आवंटित करता है। इसके अतिरिक्त, रक्षा अनुसंधान संगठन में विद्यमान अवसंरचनात्मक और मानव संसाधन बाधाएं भारत में अनुसंधान सम्बन्धी प्रयासों को अवरुद्ध करती हैं।
  • बौद्धिक संपदा का संरक्षण: बौद्धिक संपदा कानूनों के वैधानिक ढांचे में अपर्याप्तता बनी हुई है। यह अपर्याप्तता प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण और लाइसेंसिंग, विक्रेता एवं खरीदारों के मध्य इस प्रकार के हस्तांतरण को नियंत्रित करने वाली संविदात्मक शर्तों इत्यादि से संबंधित है।
  • रक्षा क्षेत्र FDI हेतु पूर्णतः खुला नहीं है: रक्षा क्षेत्र में केवल 49% (कुछ मामलों में 100%) FDI की अनुमति प्राप्त है, इसलिए यह विदेशी अभिकर्ताओं को संयुक्त उद्यमों में प्रवेश करने से हतोत्साहित करता है।
  • रक्षा अनुसंधान में DRDO को एकाधिकार प्राप्त है: संयुक्त राज्य अमेरिका में, निजी क्षेत्र न केवल रक्षा विनिर्माण में बल्कि अनुसंधान में भी एक सक्रिय भागीदार की भूमिका निभाता है।
  • अन्य मुद्दे: विदेशी सहयोग, कराधान, आयात और निर्यात व्यवस्था आदि से संबंधित विभिन्न मुद्दों ने भी स्वदेशीकरण की प्रक्रिया को प्रभावित किया है।

भारत में रक्षा उद्योग के पूर्ण स्वदेशीकरण में तीव्रता लाने हेतु निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  • रक्षा समावेशी S&T नीति: अमेरिका और चीन के समान, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (STI) नीति को राष्ट्र की रक्षा रणनीति के सहयोग के साथ विकसित किया जाना चाहिए।
  • “सुरक्षा के लिए अत्यावश्यक (क्रिटिकल-टू-सिक्योरिटी)” प्रौद्योगिकियों की पहचान करना: भारत को केवल उन चुनिंदा क्षेत्रों में वैश्विक नेतृत्व की तलाश करनी चाहिए जो “क्रिटिकल-टू-सिक्योरिटी” हैं। उदाहरणार्थ, इजराइल के लिए “क्रिटिकल-टू-सिक्योरिटी” क्षेत्र में मिसाइल और एंटी-मिसाइल तकनीक शामिल हैं।
  • “कम्युनिटीज़ ऑफ इंटरेस्ट (हित आधारित समुदाय)”: “क्रिटिकल-टू-सिक्योरिटी” प्रौद्योगिकियों के आधार पर अमेरिका की ही तर्ज पर “कम्युनिटीज़ ऑफ इंटरेस्ट” का निर्माण किया जाना चाहिए। एक संचालन समिति (जिसमें संबंधित शीर्ष वैज्ञानिक, इंजीनियर और शिक्षाविद शामिल हों) को प्रौद्योगिकियों को प्राथमिकता देने और एक उत्पाद (जिसे वास्तविक रूप देना संभव हो) की ओर प्रौद्योगिकी के संचालन के लिए योजनाओं और प्रस्तावों को विकसित करने का कार्य उस समिति के सुपुर्द किया जाना चाहिए।
  • R&D निवेश में वृद्धि: भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1% से कम R&D पर व्यय कर रहा है, अतः भारत के लिए जापान (3.3), संयुक्त राज्य अमेरिका (2.9), इजराइल (4.3) आदि देशों की भांति निवेश को बढ़ाना अनिवार्य  है।
  • सिविल-मिलिट्री इंटीग्रेशन (CMI) नीति: अमेरिका और चीन के समान दोहरे उपयोग संबंधी अनुप्रयोगों वाले कार्यक्रम (Dual-use application program) को प्रारम्भ किया जाना चाहिए। इससे प्रतिस्पर्धा में वृद्धि होगी तथा प्रत्येक हितधारक बेहतर कीमत और परिष्करण के लिए निरंतर नवाचार को अपनाने के लिए बाध्य होगा।
  • मानव पूंजी: मानव पूंजी सुदृढ़ R&D आधार निर्मित करने में एक अनिवार्य स्तंभ है। इसलिए इस प्रयास में शैक्षिक संस्थानों की भूमिका को प्राथमिकता प्रदान की जानी चाहिए। विश्वविद्यालयों में DRDO अनुसंधान बोर्डों की सहायता से इस सम्बन्ध में वैकल्पिक पाठ्यक्रम जैसी पहलों का शुभारम्भ किया जा सकता है।
  • डिजाइन सम्बन्धी दृष्टिकोण : भारत को भारतीय रक्षा की आवश्यकताओं के अनुसार अपने R&D प्रयासों में ‘बिल्ड कैपिटलाइज़-इम्प्रोवाइज़’ (निर्माण-पूंजीकरण-उन्नयन) सिद्धांत का अनुपालन करना चाहिए।
  • राष्ट्रीय रक्षा अनुसंधान रिपॉजिटरी (NDRR): यह कदम सरकार को निगरानी रखने में सहायता प्रदान करेगा और प्रौद्योगिकियों के दोहराव (duplication of technologies) के वित्तपोषण को रोकेगा। यह विभिन्न शोधकर्ताओं को उनकी विशेषज्ञता और अनुभवों के आधार पर सहयोग और निर्माण करने में भी सहायक सिद्ध होगा।

पूर्ण स्वदेशीकरण को प्राप्त करना एक बड़ी चुनौती है। इसमें सरकार द्वारा अग्रणी भूमिका निभाने के साथ ही सभी संलग्न हितधारकों द्वारा व्यापक स्तर के निर्णयों और प्रयासों की आवश्यकता होगी।

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