उत्तर प्रदेश में द्विसदनीय व्यवस्था

प्रश्न: उत्तर प्रदेश में द्विसदनीय व्यवस्था पर एक संक्षिप्त नोट लिखें और राज्य स्तर पर द्विसदनीय व्यवस्था के होने के लाभ को बताएं।

उत्तर की संरचनाः

भूमिका:

  • संक्षेप में उत्तर प्रदेश विधायिका की द्विसदनीय व्यवस्था को बताए।

मुख्य भाग:

  • उत्तर प्रदेश में द्विसदनीय व्यवस्था को विस्तार से बताएं।
  • राज्य में द्विसदनीय व्यवस्था होने के लाभ बताएं।

निष्कर्ष:

  • बताएं कि द्विसदनीय व्यवस्था उत्तर प्रदेश में अधिक लोकतांत्रिक और जन केंद्रित शासन सुनिश्चित करता है।

उत्तर

भूमिकाः

उत्तर प्रदेश भारत के सात राज्यों में से एक है जहाँ विधायिका की द्विसदनीय व्यवस्था है। द्विसदनीय व्यवस्था में राज्य विधायिका के अंतर्गत विधानसभा एवं विधान परिषद् गठित होते हैं।

मुख्य भागः

उत्तर प्रदेश में द्विसदनीय व्यवस्था

  • राज्य की विधानसभा में 404 सदस्य हैं, जो 5 साल के लिए चुने जाते हैं। विधान परिषद 100 सदस्यों का एक स्थायी निकाय है जिसके एक-तिहाई सदस्य (33 सदस्य) हर दो वर्ष में सेवानिवृत्त हो जाते हैं। चूंकि उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय संसद में सबसे बड़ी संख्या में संसद सदस्य भेजता है, अतः इसे भारतीय राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण राज्य माना जाता है।
  • प्रदेश की पहली विधानसभा का गठन 8 मार्च 1950 को हुआ था तब से इसका गठन 17 बार हो चुका है। वर्तमान 17वीं विधानसभा का गठन 14 मार्च 2017 को हुआ था।
  • भारत सरकार अधिनियम 1935 के प्रावधान के अन्तर्गत गठित संयुक्त प्रान्त विधान परिषद् में केवल 60 सदस्य थे। नवम्बर 2000 में उत्तराखण्ड के गठन के पश्चात वर्तमान उत्तर प्रदेश विधान परिषद् में 100 सदस्य हैं।
  • उत्तर प्रदेश में विधानसभा और विधान परिषद् के सदन यहाँ के ऐतिहासिक शहर लखनऊ में है जो अपने गौरवशाला अतीत और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है।

राज्य में द्विसदनीय व्यवस्था के लाभ

  • स्थिर शासन- मुख्यतः सदस्यों की निश्चित कार्यावधि एवं उपर्युक्त कार्य प्रणाली के कारण दिसदनीय व्यवस्था शासन को अधिक स्थिरता प्रदान करता है।
  • अधिक प्रतिनिधित्व- वर्तमान के विविधता युक्त समाज में लोगों के भिन्न-भिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए यह द्विसदनीय व्यवस्था अधिक उपयोगी है। वास्तव में द्विसदनीय विधायिका के कारण शासन पर शक्तिशाली अल्पसंख्यकों का नियंत्रण या प्रभाव कम होता है।
  • बेहतर निर्णय लेने की क्षमता- द्विसदनीय विधायिका निर्णय को अधिक गुणवत्तापूर्ण बनाता है क्योंकि दोनों सदनों द्वारा प्रत्येक विषय पर गहन चर्चा होती है। इस प्रकार अंतिम निर्णय लेने से पहले द्विसदनीय व्यवस्था में विचार का अधिक अवसर उपलब्ध होता है।

निष्कर्षः

इस प्रकार द्विसदनीय राज्य को अधिक लोकतांत्रिक और जन केन्द्रित बनाती है, जिससे राजनीति और अधिक गतिशील और कुशल होती है।

 

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