पंजीकरण अधिनियम, 1908 : भूमि स्वत्वाधिकारों की प्रणाली

प्रश्न: भारत में अनिर्णायक भूस्वामित्व स्वत्वाधिकारों के पीछे उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिए। इसके अप्रत्यक्ष प्रभावों की विवेचना कीजिए और भारत में निर्णायक भूमि स्वत्वाधिकारों की प्रणाली की दिशा में आगे बढ़ने के उपायों का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में अनिर्णायक भूस्वामित्व स्वत्वाधिकारों के पीछे उत्तरदायी कारणों का उल्लेख कीजिए।
  • भारत में अनिर्णायक भूस्वामित्व स्वत्वाधिकारों के परिणामों पर चर्चा कीजिए।
  • भारत में निर्णायक भूस्वामित्व स्वत्वाधिकारों प्रणाली की ओर बढ़ने के उपाय सुझाइए।

उत्तर

भारत में अनिर्णायक स्वत्वाधिकारों के कारण भूमि सबसे ज्वलंत विषयों में से एक है, जिसके पीछे निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं:

  • अभिलेखों के पंजीकरण और रखरखाव के लिए एक संग्रहक(silos) के रूप में कार्य करने वाली कई एजेंसियां सर्वेक्षण मानचित्रों, लिखित आंकड़ों और पंजीकरण रिकॉर्ड के मध्य असंगतता उत्पन्न करती हैं।
  • केंद्र और राज्यों दोनों में भूमि, पंजीकरण और अनुबंध को विनियमित करने हेतु कोई एकीकृत वैधानिक तंत्र उपलब्ध नहीं है।
  • पंजीकरण अधिनियम, 1908 : यह भूमि संबंधी दस्तावेजों के पंजीकरण को विनियमित करने एवं लेन-देन सम्बंधी व्यवहारों को पंजीकृत करने हेतु एक प्राथमिक कानून है, लेकिन यह भू-स्वामी को कोई भी स्वत्वाधिकार प्रदान नहीं करता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रकल्पित स्वामित्व (presumptive ownership) की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • उच्च पंजीकरण शुल्क और स्टांप शुल्क भूमि के क्रय-विक्रय की लागत में वृद्धि करते हैं जो व्यक्तियों को इसे पंजीकृत कराने के लिए हतोत्साहित करता है। इसके अतिरिक्त, उत्तराधिकार, सरकार द्वारा अधिग्रहण आदि संबंधी लेनदेन हेतु भूमि का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, इसलिए, अनेक लेनदेन अपंजीकृत रह जाते हैं।
  • भूमि रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण की धीमी गति।

अस्पष्ट भूमि संबंधी स्वत्वाधिकार और रिकॉर्ड प्रायः कानूनी विवादों का कारण बनते हैं, और निम्नलिखित प्रकार से आजीविका के साथ-साथ औद्योगिक, आर्थिक और सामाजिक विकास को प्रतिकूल रूप में प्रभावित करते हैं:

  • कृषि ऋण में व्यवधान : चूंकि कोलैटरल के रूप में विवादित भूमि की गारंटी पर ऋण प्राप्त करना कठिन होता है।
  • स्वामित्व से संबंधित सूचनाओं की पारदर्शिता का अभाव और असममिति(विषमता) के कारण रियल एस्टेट बाजार में अदक्षता।
  • नई अवसंरचना में बड़े पैमाने पर निवेश से व्यापार सुगमता (ease of doing business) प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही है।
  • वहनीय आवास के लिए भूमि में कमी लाता है।
  • नगरपालिका वित्त को प्रतिबंधित करता है: यह संपत्ति कर और भूमि-आधारित वित्तपोषण के माध्यम से स्वयं के राजस्व को बढ़ाने संबंधी योजना का निर्माण करने वाले शहरों की क्षमता को भी सीमित करता है।

निश्चित स्वामित्व(Conclusive titles), राज्य की गारंटी प्राप्त स्वामित्व हैं, जहां राज्य स्वत्वाधिकार को इसकी वैधता(correctness) के लिए अपनी गारंटी प्रदान करता है और किसी भी विवाद के मामले में मुआवजे का प्रावधान करता है। इसके लिए, निम्नलिखित उपायों को अपनाए जाने की आवश्यकता है:

  • वैधानिक सुधार : केंद्र और राज्यों में प्रचलित भूमि कानूनों में संशोधन करना, और एक एकीकृत वैधानिक संरचना का निर्माण करना। उदाहरण स्वरूप राजस्थान द्वारा 2016 में एक कानून पारित किया जिसके तहत शहरी क्षेत्रों में राज्य की गारंटीशुदा भूमि संबंधी स्वामित्व प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
  • रिकॉर्ड आधुनिकीकरण: सभी मौजूदा भूमि रिकॉर्ड की विशुद्धता के साथ-साथ ऋणभार से मुक्त और सुगमतापूर्वक ऑनलाइन उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। यह विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण आधारित होना चाहिए। साथ ही, डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम का त्वरित कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • एकल खिड़की: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग(2nd ARC) ने एकल खिड़की तंत्र के निर्माण के माध्यम से भूमि संबंधी सूचनाओं को एकीकृत करने की सिफारिश की है।
  • पंजीकरण शुल्क न्यूनतम होने के साथ ही पंजीकरण प्रक्रिया सरल होनी चाहिए, ताकि संपत्ति हस्तांतरण के पंजीकरण से लोग हतोत्साहित न हो।
  • भूमि प्रबंधन को सुदृढ़ करने के लिए सभी स्तरों पर अधिकारियों की क्षमता निर्माण करना।

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