4G प्रौद्योगिकी की पांचवी पीढ़ी (5G) की वायरलेस दूरसंचार तकनीक की तुलना

प्रश्न: 4G प्रौद्योगिकी की पांचवी पीढ़ी (5G) की वायरलेस दूरसंचार तकनीक की तुलना कीजिए और उनके मध्य बताइए। 5G के अखिल भारतीय क्रियान्वयन हेतु किन चुनौतियों से निपटने की आवश्यकता है?

दृष्टिकोण

  • 4G और 5G प्रौद्योगिकी का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • गति, बैंडविड्थ आदि जैसे विभिन्न मापदंडों के आधार पर 4G और 5G प्रौद्योगिकियों का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
  • 5G के परिनियोजन में भारत के समक्ष व्याप्त चुनौतियों की चर्चा कीजिए।

उत्तर

4G और 5G प्रौद्योगिकी वायरलेस सेलुलर कनेक्टिविटी की अलग-अलग पीढ़ियां हैं। ध्यातव्य है कि 5G अगली पीढ़ी की सेलुलर प्रौद्योगिकी है जो अल्ट्रा लो लेटेंसी (अत्यंत निम्न विलंबता) के साथ तीव्र और अधिक विश्वसनीय संचार सुविधा प्रदान करेगी। निम्नलिखित मापदंडों के आधार पर वायरलेस सेलुलर कनेक्टिविटी की इन क्रमिक पीढ़ियों के मध्य तुलना की जा सकती है:

  • बैंडविड्थ: 4G के लिए प्रयोग किए जाने वाले 6 गीगाहर्ट्ज से नीचे के बैंड की तुलना में 5G प्रौद्योगिकी 30 गीगाहर्ट्ज से 300 गीगाहर्ट्ज के मध्य की आवृत्तियों पर ब्राडकास्ट करने में सक्षम होगी। अतः 5G प्रौद्योगिकी अधिक डेटा को प्रसारित कर सकती है।
  • गति: अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) द्वारा दिए गए विनिर्देशों के अनुसार, 5G की अधिकतम गति 20Gbps होगी, जबकि 4G के परिप्रेक्ष्य में यह उच्चतम गति 100Mbps अथवा अधिक स्थिर अनुप्रयोगों के लिए 1Gbps है।
  • डिवाइस हैंडलिंग क्षमता: 5G प्रौद्योगिकी प्रति वर्ग मीटर अतिरिक्त 1,000 उपकरणों को सुपर-फास्ट डेटा स्पी प्रदान करने में सक्षम बनाएगी जिससे अधिक संख्या में लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकेगी।
  • विलंबता (लेटेंसी): नेटवर्क प्रौद्योगिकी में लेटेसी शब्द का उपयोग एक बिंदु (node) से दूसरे बिंदु तक पहुंचने वाले सिग्नल पैकेट की विलंबता का मापन करने हेतु किया जाता है। 4G नेटवर्क की लेटेंसी 200 से 100 मिलीसेकंड तक की रेंज में होती है जबकि 5G के लिए इसकी रेंज केवल 1 से 3 मिलीसेकंड तक होती है।
  • विश्वसनीयता: 5G प्रौद्योगिकी विभिन्न भौगोलिक स्थानों में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के लिए तीव्र और अधिक लचीली पहुंच हेतु व्यापक कनेक्टिविटी प्रदान करने में सक्षम होगी।

5G सेवाओं को अखिल भारतीय स्तर पर आरम्भ करने के समक्ष विद्यमान चुनौतियां

  • उच्च स्पेक्ट्रम लागत: 5G सेवाओं के लिए प्रस्तावित स्पेक्ट्रम बैंड हेतु आरक्षित कीमत अन्य देशों की तुलना में उच्च स्तर पर नियत की गई है। साथ ही, दूरसंचार क्षेत्र में अधिक राजस्व और लाभप्रदता सृजित करने हेतु दबाव के साथ-साथ 5G के सन्दर्भ में स्पष्ट व्यापारिक समझ की कमी भारत में 5G लॉन्च में विलम्ब का कारण बन सकती है।
  • एक नियामक ढांचे का अभाव: 5G लांच करने के लिए ऑपरेटरों एवं सम्बंधित इकोसिस्टम की, उत्पादों और सेवाओं को तैयार करने में, सहायता करने हेतु प्रभावी नीति की आवश्यकता होगी। इसके अतिरिक्त समय पर ग्रामीण भारत तक पहुँच स्थापित करने हेतु बैकहॉल और नेटवर्क समाधानों को सक्षम बनाने की आवश्यकता है।
  • बैकहॉल सम्बंधित मुद्दा: बैकहॉल एक ऐसा नेटवर्क है जो सेल साइटों को केंद्रीय एक्सचेंज से जोड़ता है। वर्तमान में, भारत में 80% से अधिक सेल साइटें माइक्रोवेव बैकहॉल के माध्यम से संबद्ध हैं जिसके समक्ष बैंडविड्थ से सम्बंधित विभिन्न समस्याएँ विद्यमान है। दूसरी ओर फाइबर के माध्यम से जुड़ी हुई साइटों की संख्या केवल 20% है जो असीमित क्षमता और कम विलंबता युक्त सेवाएं देने में सक्षम हैं।
  • अंतर-परिचालनीयता से सम्बंधित मुद्दे: विभिन्न उत्पादों, प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों के मध्य अंतर-परिचालनीयता का समर्थन करने वाले मानकों को विकसित करना आवश्यक है क्योंकि यह भारत में 5G के समक्ष एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
  • कुशल पेशेवरों का अभाव: कुशल पेशेवरों का अभाव विद्यमान है जो समस्त देश में 5G प्रौद्योगिकी के लाभ को प्रसारित कर सकते हैं।
  • लोगों की अनिच्छा: 5G विकिरणों द्वारा उत्पन्न संभावित स्वास्थ्य खतरों से संबंधित अफवाहें इसके व्यापक अंगीकरण में और अधिक विलम्ब कर सकती हैं। सरकार को 2020 तक भारत में 5G के लॉन्च के लक्ष्य को प्राप्त करने और इसके समयबद्ध परिनियोजन के माध्यम से 2035 तक लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर के संचयी आर्थिक प्रभाव का लाभ प्राप्त करने के लिए इन चुनौतियों के समाधान हेतु प्रयास करना चाहिए।

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