लिविंग विल और इसकी प्रकृति : व्यक्ति के साथ-साथ सामाजिक परिप्रेक्ष्य के संदर्भ में इसके क्रियान्वयन में उत्पन्न होने वाली नैतिक दुविधा

प्रश्न: मरणांतक (टर्मिनल) के साथ-साथ मानसिक रोगों के संबंध में बढ़ती जागरुकता ने “लिविंग विल” के विचार को स्वीकृति प्रदान की है। लिविंग विल क्या है? इसे तैयार करने और कार्यान्वित करने के लिए व्यक्ति के साथ-साथ सामाजिक परिप्रेक्ष्य से विचार किए जाने वाले नैतिक मुद्दों की चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • परिचय में लिविंग विल और इसकी प्रकृति को परिभाषित कीजिए।
  • लिविंग विल के लाभों पर प्रकाश डालिए।
  • व्यक्ति के साथ-साथ सामाजिक परिप्रेक्ष्य के संदर्भ में इसके क्रियान्वयन में उत्पन्न होने वाली नैतिक दुविधाओं को स्पष्ट कीजिए।
  • निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

लिविंग विल एक लिखित वक्तव्य होता है जिसमें भविष्य की ऐसी परिस्थितियों में चिकित्सा उपचार के संबंध में किसी व्यक्ति की इच्छाओं का विवरण होता है, जिनमें वह सूचित सहमति व्यक्त करने में सक्षम नहीं होगा। इस प्रकार यह एक अग्रिम स्वास्थ्य देखभाल निर्देश है, जिसमें लोग निष्क्रिय अवस्था, कोमा, मरणांतक (टर्मिनल) बीमारी के साथ मस्तिष्क क्षति जैसी बीमारियों के कारण निर्णय में सक्षम न होने की दशा में स्वयं की मृत्युपर्यंत देखभाल के संबंध में अपनी इच्छाओं को व्यक्त कर सकते हैं। केवल एक स्वस्थ मस्तिष्क वाला वयस्क ही लिविंग विल बना सकता है। इसे स्वेच्छापूर्वक निष्पादित किया जाना चाहिए और यह सूचित सहमति पर आधारित होनी चाहिए। इसे विशिष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए और इसकी भाषा “पूर्ण रूप से स्पष्ट और असंदिग्ध” होनी चाहिए।

  •  मरणांतक (टर्मिनल) के साथ-साथ मानसिक बीमारी के बारे में बढ़ती जागरुकता ने ” लिविंग विल” के विचार को विश्वसनीयता प्रदान की है क्योंकि यह रोगी की स्वायत्तता को प्राथमिकता प्रदान करती है। साथ ही लोगों को अपनी पसंद का उपचार प्राप्त करने की स्वायत्तता भी प्रदान करती है। विल के पीछे निहित तर्क यह है कि रोगी के निकटतम परिजन द्वारा प्रायः मरणांतक बीमार रोगी के उपचार पर अत्यधिक खर्च किया जाता है और ऐसा करने के कई कारण हो सकते हैंलगाव, महत्व, नैतिक दबाव आदि।

हालांकि, समाज में लिविंग विल के विचार को और अधिक स्वीकार्य बनाने से पूर्व विभिन्न नैतिक मुद्दों पर विचार किया जाना चाहिए और इसके पश्चात् ही इसे कार्यान्वित किया जाना चाहिए।

व्यक्तिगत दृष्टिकोण (Individual perspective): 

  •  किसी स्वस्थ व्यक्ति के लिए पर्याप्त रूप से यह कल्पना करना कठिन होता है कि वास्तव में ऐसी परिस्थितियों में उसकी क्या इच्छा होगी जब लिविंग विल प्रभावी होगी।
  • यहाँ तक कि किसी व्यक्ति का दृष्टिकोण भी समय के साथ परिवर्तित हो सकता है और वह लिविंग विल में की गई घोषणाओं पर कायम रहने का इच्छुक रह भी सकता है और नहीं भी।
  • कुछ ही लोग हैं जो लिविंग विल के सभी पक्षों पर गहन शोध कर इसे तर्कसंगत रूप से तैयार करने में सक्षम हो पाते हैं। दूसरों के लिए सूचना की कमी के कारण यह केवल एक निरर्थक अभ्यास होगा।

सामाजिक परिप्रेक्ष्य (Social Perspective):

  • यदि व्यक्ति यह घोषित कर दे कि वह एक सीमा के बाद उपचार नहीं कराना चाहता है तो क्या यह उस व्यक्ति को सर्वोत्तम उपचार प्रदान न करने के लिए परिजनों को नैतिक उत्तरदायित्व से मुक्त कर देगा?
  • इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति यथासंभव लंबे समय तक सपोर्ट सिस्टम के माध्यम से अपने जीवन को बनाये रखना चाहता है तो क्या यह इसे सुनिश्चित करने हेतु परिवार या डॉक्टरों या यहां तक कि राज्य पर विधिक दायित्व आरोपित करता है?
  • चिकित्सा दुविधा: क्या इसका आशय जीवन को सुरक्षित करने के लिए डॉक्टर के दायित्व का त्याग करना है? यदि ऐसा है तो यह किस चरण पर होगा।
  • विधिक/संवैधानिक दुविधा: संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन का अधिकार दिया गया है, जिसमें पूर्व के एक निर्णय के अनुसार मृत्यु का अधिकार सम्मिलित नहीं है। किन्तु लिविंग विल का अग्रिम निर्देश देने वाले व्यक्ति द्वारा इसे स्वैच्छिक रूप से अस्वीकृत किया जा रहा होता है।
  • सार्वजनिक नीति से संबंधित दुविधा: क्या लिविंग विल का तात्पर्य यह है कि राज्य मृत्यु की इच्छा को वैध बनाने के मुद्दे पर रोगी की स्वायत्तता और आत्मनिर्णय को स्वीकार करता है?
  • इसके परिणामस्वरूप वृद्ध लोगों की उपेक्षा हो सकती है।

कॉमन कॉज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (UO) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21(f) के अंतर्गत उल्लिखित प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार तब तक अर्थहीन है जब तक कि यह अपने क्षेत्र में व्यक्तिगत गरिमा को सम्मिलित नहीं करता है। इस प्रकार गरिमायुक्त मृत्यु के अधिकार को भी मौलिक अधिकारों के भाग के रूप में व्याख्यायित किया गया है। हालांकि यह अत्यंत आवश्यक है कि लिविंग विल की विधिक पवित्रता को सुदृढ़ सुरक्षा उपाय प्रदान किये जाएँ। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्देश दिया गया है कि विल का निर्माण पूर्ण रूप से स्वैच्छिक आधार पर होना चाहिए तथा एक चिकित्सा बोर्ड द्वारा इसका प्रमाणीकरण किया जाना चाहिए। इस बोर्ड में वरिष्ठ चिकित्सक शामिल होने चाहिए। बोर्ड का कार्य उपचार की वांछित विधि के क्रियान्वयन या क्रियान्वयन न करने के संबंध में निर्णय लेना होगा।

Read More 

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.