स्वदेशी आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण : आत्मनिर्भरता एवं भारतीय पूँजी पर अत्यधिक बल
प्रश्न: अपने अनूठे तरीकों और विषय-वस्तु के साथ-साथ स्वदेशी आन्दोलन ने न केवल बहिष्कार अपितु आत्मनिर्भरता पर भी अत्यधिक बल दिया। चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- स्वदेशी आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- इस आन्दोलन के दौरान प्रयुक्त साधनों पर चर्चा करते हुए वर्णन कीजिये कि किस प्रकार इसने आत्मनिर्भरता एवं भारतीय पूँजी पर अत्यधिक बल दिया।
उत्तर
स्वदेशी आन्दोलन की उत्पत्ति विभाजन-विरोधी आन्दोलन के रूप में हुई। यह ब्रिटिश सरकार द्वारा 1905 में बंगाल विभाजन के निर्णय के विरोध में आरंभ हुआ था। आन्दोलन के दौरान जन सहभागिता हेतु सार्वजनिक बैठकों, जुलूसों के आयोजन के साथ स्वयंसेवक समूहों (या समितियों) की स्थापना की गयी थी। ये समितियां जनसामान्य में राजनीतिक चेतना उत्पन्न करने के लिए विभिन्न अनूठे उपायों का प्रयोग करती थीं जैसे – मैजिक लालटेन व्याख्यान, स्वदेशी गीत, अपने सदस्यों का शारीरिक एवं नैतिक प्रशिक्षण, स्वदेशी शिल्प में प्रशिक्षण आदि।
स्वदेशी आन्दोलन की बहिष्कार पद्धति में निम्नलिखित साधनों को सम्मिलित किया गया था:
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार: इसमें विदेशी कपड़ों का बहिष्कार और उनका सार्वजनिक दहन, विदेश निर्मित नमक एवं चीनी का बहिष्कार, पुजारियों द्वारा ऐसे विवाहों को सम्पन्न करने से मना करना जिनमें विदेशी वस्तुओं का आदान-प्रदान किया जाता हो, धोबियों द्वारा विदेशी वस्त्रों को धोने से मनाही इत्यादि गतिविधियाँ सम्मिलित थीं।
- राष्ट्रीय शिक्षा को प्रोत्साहन: सरकारी नियंत्रणाधीन विद्यालयों एवं महाविद्यालयों के बहिष्कार के परिणामस्वरूप 1906 में बंगाल प्रौद्योगिकी संस्थान तथा साथ ही देश के विभिन्न भागों में अनेक राष्ट्रीय विद्यालयों एवं महाविद्यालयों की स्थापना हुई। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक, वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा की व्यवस्थित प्रणाली को संगठित करने तथा उसे राष्ट्रीय नियंत्रण के अधीन लाने हेतु राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् की स्थापना की गई थी।
इसके साथ ही इस आंदोलन के दौरान आत्मनिर्भरता पर अत्यधिक बल दिया गया था जो निम्नलिखित कार्यों में प्रदर्शित होता है।
- स्थानीय संस्कृति पर बल देना: सभी वर्गों के राष्ट्रवादियों ने भारतीय कृतियों जैसे-रवीन्द्रनाथ टैगोर, सैयद अबू तथा अन्य लेखकों द्वारा रचित गीतों, से प्रेरणा ग्रहण की। अवनींद्र नाथ टैगोर जैसे कलाकारों ने भारतीय कला से विक्टोरियन प्रकृतिवाद के प्रभुत्व को समाप्त किया तथा अजंता, राजपूत एवं मुगल चित्रकला शैलियों से प्रेरणा ग्रहण की।
- विज्ञान: जगदीश चन्द्र बोस, प्रफुल्ल चन्द्र राय तथा अन्य लोगों ने मौलिक अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त किया जिसकी सम्पूर्ण विश्व ने सराहना की थी।
- स्वदेशी को बढ़ावा देना: स्वदेशी के प्रचार-प्रसार हेतु परंपरागत लोकप्रिय त्यौहारों एवं मेलों के भावनात्मक प्रतीक के रूप में प्रयोग के साथ स्वदेशी वस्तुओं की खरीद को प्रोत्साहन दिया गया था।
- भारतीय उद्यम: वृहद् संख्या में पूर्णतः भारतीय उपक्रमों जैसे- बंगाल केमिकल्स, राष्ट्रीय चर्मशोधनशाला, स्वदेशी बैंक आदि की स्थापना की गई। ये उपक्रम व्यासायिक कौशल के स्थान पर देशभक्ति से परिपूर्ण उत्साह पर अधिक बल देते है।
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