भावात्मक प्रज्ञा : प्रतिस्पर्धी परिवेश

प्रश्न: किसी प्रतिस्पर्धी परिवेश में आगे बढ़ने की आकांक्षा रखने वाले एक व्यक्ति के लिए भावात्मक प्रज्ञा एक महत्वपूर्ण मानदंड होती है। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भावात्मक प्रज्ञा के अर्थ को संक्षेप में स्पष्ट करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिए। 
  • प्रतिस्पर्धी परिवेश का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  • किसी प्रतिस्पर्धी परिवेश में आगे बढ़ने की आकांक्षा रखने वाले एक व्यक्ति के लिए भावात्मक प्रज्ञा किस प्रकार एक महत्वपूर्ण मानदंड सिद्ध होती है। चर्चा कीजिए।

उत्तर

भावात्मक प्रज्ञा (EI) किसी व्यक्ति की स्वयं की भावनाओं और साथ ही दूसरों की भावनाओं को पहचानने, उनका उपयोग करने, समझने और प्रबंधित करने की क्षमता को संदर्भित करती है। यह तनाव को दूर करने, प्रभावी ढंग से संवाद करने, दूसरों के साथ सहानुभूति बनाए रखने, चुनौतियों को कम करने, असामाजिक व्यवहार में कमी करने और संघर्ष को समाप्त करने में सहायक सिद्ध होती है। इसके मूल तत्वों में आत्म-जागरुकता, स्व-प्रबंधन, सामाजिक जागरुकता और संबंधों का प्रबंधन शामिल होता है।

किसी प्रतिस्पर्धी परिवेश में, जैसे किसी संगठन में पदानुक्रम में आगे बढ़ने के परिप्रेक्ष्य में, अधिकांश लोगों का बौद्धिक एवं तकनीकी कौशल स्तर और कार्य से संबंधित ज्ञान का स्तर समान होता है। ऐसे में आगे बढ़ने वालों और न बढ़ने वालों को पृथक करने वाला कारक उनके स्वयं के द्वारा, साथियों के साथ सहयोग करके या अपने अधीनस्थों को प्रबंधित करके कार्य करने की उनकी क्षमता होता है।

प्रत्येक पद पर, व्यक्ति द्वारा स्वयं को और दूसरों (साथियों या वरिष्ठों या अधीनस्थों) को प्रबंधित करने की विधि प्रभावशीलता के निर्धारण का मुख्य लक्षण होती है। जैसे-जैसे पदानुक्रम में वृद्धि होती है, वैसे-वैसे प्रतिस्पर्धा बढ़ती जाती है और लोगों का यह प्रभावी प्रबंधन अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए, ‘बौद्धिक स्तर’ की तुलना में ‘भावात्मक स्तर’ घटक की आवश्यकता बढ़ जाती है।

स्कूली छात्रों और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र प्रतिस्पर्धी योग्यता प्रणाली, कठोर शैक्षणिक पाठ्यक्रम और सामाजिक अपेक्षाओं के कारण निरंतर तनावग्रस्त रहते हैं। अनेक अध्ययन दर्शाते हैं कि EI छात्रों के मध्य अकादमिक प्रदर्शन, जोखिमपूर्ण व्यवहार से बचाव और जीवन की सफलता से सशक्त रूप से संबद्ध होती है। साथ ही, यह आत्म-जागरुकता, स्वनियमन, इष्टतम निर्णय लेने, सक्रिय श्रवण आदि में भी सहायता प्रदान करती है।

गोलेमैन के अनुसार, तकनीकी ज्ञान में विशेषज्ञता प्राप्त करने हेतु किसी भी व्यक्ति को औसत-से अधिक बौद्धिकता की आवश्यकता होती है, किन्तु एक बार जब लोग कार्यबल में शामिल हो जाते हैं तो प्रगति करने वाले लोगों के मध्य बौद्धिक स्तर और तकनीकी कौशल स्तर प्रायः समान होते हैं। इस संदर्भ में, प्रतिस्पर्धी परिवेश में आगे बढ़ने के लिए निम्नलिखित कारणों से EI एक महत्वपूर्ण मानदंड सिद्ध हो सकता है:

  • तनाव प्रबंधन: EI तनाव ग्रस्त परिवेश का सामना करने हेतु एक सुदृढ़ मानसिक अभिवृत्ति के विकास में सहायता प्रदान करती है।
  • मूल्यवान कौशल: उच्च EI स्तर वाले व्यक्ति समानुभूतिपूर्ण, सर्व सुलभ, अच्छे श्रोता और बेहतर संचार कौशल युक्त होते हैं। इन कौशलों को प्राप्त करने की इच्छाशक्ति प्रगति में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है।
  • संघर्ष का समाधान: वे सहयोगियों के साथ खुले और ईमानदार संवाद के माध्यम से संघर्ष का समाधान करते हैं।
  • उत्पादकता में वृद्धि: दबाव से निपटने की उनकी क्षमता व्यावसायिक परिणामों में सुधार लाती है। इसके अतिरिक्त, उनकी अनुकूलन क्षमता और निपुणता कार्यस्थल पर सहयोगात्मक परिवेश एवं टीम के प्रदर्शन में सुधार करती है।
  • जटिल परिवेश को निर्देशित करना: वैश्वीकरण के चलते भावात्मक प्रज्ञा पूर्व की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि परिवेश अधिक अंतर-सांस्कृतिक और वैश्विक हो रहा है। परिणामस्वरूप, भावात्मक अन्योन्यक्रिया और भावनाओं को व्यक्त करने की रीति की जटिलता में वृद्धि हो रही है। ऐसे में सांस्कृतिक संवेदनशीलता महत्वपूर्ण पहलू बन जाती है।

इस प्रकार, संगठनों द्वारा El की एक महत्वपूर्ण मानदंड के रूप में पहचान की जा रही है क्योंकि कर्मचारी टर्नओवर की उच्च लागत, व्यापार के रूपांतरण एवं उच्च लाभप्रदता की मांग आदि के कारण EI दक्षताओं से युक्त नेतृत्वकर्ताओं की आवश्यकता होती है।

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