भारतीय संविधान की प्रस्तावना
प्रश्न: भारतीय संविधान की प्रस्तावना का वर्णन करते हुए इसकी प्रकृति और विषय क्षेत्र पर टिप्पणी कीजिए।
दृष्टिकोण
- प्रस्तावना के सार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- भारतीय संविधान में इसकी प्रकृति और इसके द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका की चर्चा कीजिए।
- इसके विषय क्षेत्र पर चर्चा कीजिए जिसमें संविधान के विभिन्न लक्ष्यों और उद्देश्यों को शामिल किया गया है।
उत्तर:
हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व- संपन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों कोः
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए
दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हज़ार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
प्रस्तावना की प्रकृति
- प्रस्तावना, संविधान निर्माताओं के उद्देश्यों और हमारे संस्थापकों की आकांक्षाओं की रूपरेखा दर्शाती है। यह भारत की न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में कल्पना करती है अर्थात् एक लोकतांत्रिक समाज जो आर्थिक और सामाजिक न्याय दोनों का प्रयास करता है।
- प्रस्तावना घोषित करती है कि एक स्वतंत्र और संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य होने के नाते भारत में किसी भी विषय पर विधि निर्माण की शक्ति निहित है और यह किसी अन्य राज्य या बाह्य शक्ति के नियंत्रण के अधीन नहीं है। ‘गणराज्य’ शब्द का अर्थ है कि हमारे पास राज्य प्रमुख के रूप में एक निर्वाचित राष्ट्रपति हैं और राष्ट्रपति सहित सभी पद इसके सभी नागरिकों के लिए खुले हुए हैं।
धर्मनिरपेक्ष राज्य के आदर्श को स्थापित कर विभिन्न धर्मों का अबाध रूप से आचरण करते हुए भारत के लोगों की एकता एवं बंधुता को प्राप्त करने का प्रयास किया गया है, जिसका अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों को समान रूप से संरक्षण प्रदान करता है और स्वयं किसी भी धर्म को राज्य के धर्म के रूप में धारण नहीं करता है। साथ ही, प्रस्तावना के अनुसार लोग सर्वोच्च प्राधिकारी हैं और इनसे ही संविधान का निर्माण हुआ है।
प्रस्तावना का विषय क्षेत्र
- ऑस्ट्रेलिया, कनाडा या संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान के विपरीत, भारत के संविधान में एक विस्तृत प्रस्तावना शामिल है। प्रस्तावना कोई शक्ति प्रदान नहीं करती है परंतु यह संविधान को दिशा और उद्देश्य प्रदान करती है। यह भारतीय संविधान की समग्र समझ के लिए मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है।
- यह नागरिक की स्वतंत्रता, समानता और बंधुता की परिकल्पना करती है जिसे सामाजिक न्याय, आर्थिक सशक्तिकरण और राजनीतिक न्याय के साथ सुरक्षित और संरक्षित किया जाना चाहिए।
- यद्यपि प्रस्तावना संविधान का भाग है और न्यायालय में इसका स्वयं प्रवर्तन नहीं होता है, तथापि यह भाषा के अस्पष्ट होने पर संविधान के विधिक निर्वचन में सहायता करती है। इसके अतिरिक्त, उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न वादों में प्रस्तावना का विषय क्षेत्र और उपयोगिता को स्पष्ट किया है, जहां इसने माना है कि प्रस्तावना हमारे संविधान की ‘मूल संरचना’ को परिभाषित करती है और विधायिकाओं की संशोधन की शक्ति के दुरुपयोग पर सीमा आरोपित करती है।
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