भारत में परिसीमन : भारत में परिसीमन की प्रक्रिया को लेकर होने वाले वाद विवाद
प्रश्न: भारत में परिसीमन की प्रक्रिया को रेखांकित कीजिए। साथ ही, भारत में परिसीमन की प्रक्रिया को लेकर होने वाले वाद विवादों पर भी प्रकाश डालिए।
दृष्टिकोण
- परिसीमिन को संक्षेप में परिभाषित कीजिए।
- भारत में परिसीमन प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए।
- परिसीमन की कवायद से जुड़े मुद्दों की विवेचना कीजिए।
- उचित निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
परिसीमन विधायी निकाय वाले किसी देश या प्रान्त में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा या परिसीमा निर्धारित करने का कार्य या प्रक्रिया है। परिसीमन का कार्य एक उच्च शक्ति निकाय को सौंपा जाता है जिसे परिसीमन आयोग कहा जाता है। भारत में इस प्रकार के चार परिसीमन आयोगों का गठन किया गया है अर्थात 1952, 1963, 1973 और नवीनतम 2002 में। आयोग के आदेशों को कानून की शक्ति प्राप्त है और उन्हें किसी न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती है।
संविधान के अनुच्छेद 82 के अंतर्गत, संसद प्रत्येक जनगणना के पश्चात एक परिसीमन अधिनियम पारित करती है। अधिनियम के लागू होने के पश्चात केन्द्र सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करती है। यह परिसीमन प्रत्येक राज्य और उस राज्य की जनसंख्या को आवंटित सीटों की संख्या के अनुपात में समानता के सिद्धांत पर आधारित है। संविधान के अनुच्छेद 81 के अंतर्गत अभिव्यक्त जनसंख्या शब्द को अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के दौरान प्राप्त उन प्रासंगिक आंकड़ों के रूप में परिभाषित किया गया जो प्रकाशित किये जा चुके हैं।
वर्तमान परिसीमन, 2002 के परिसीमन अधिनियम पर आधारित है, जिसने 2001 की जनगणना के आंकड़ों का सन्दर्भ लिया है और यह 2026 तक यथावत रहेगा, हालाँकि सीटों की कुल संख्या 1971 की जनगणना पर ही आधारित है।
वर्तमान परिसीमन प्रक्रिया कुछ विवादों में घिरी हुई है, जैसे :
- इस प्रक्रिया के लिए जनसंख्या ही प्राथमिक मानदंड है: जनसंख्या नियंत्रण में अग्रणी राज्यों को विधायिका में अपनी सीटों की कमी का सामना करना पड़ा है। इसके विपरीत वे राज्य जिनकी जनसंख्या अधिक है, उनकी सीटों की संख्या भी अधिक है और इस प्रकार वे भारत की राजनीति को नियंत्रित कर रहे हैं तथा आगे भी करते रहेंगे, किन्तु इसके फलस्वरूप वे राज्य हतोत्साहित हो रहे हैं जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण में प्रगति की है।
- शासन पर प्रभाव: राजनीतिक भारांश कम होने के कारण, पूर्वोत्तर के राज्य जिनकी जनसंख्या कम है, नीतियां या योजनाएं बनाने के समय कथित रूप से उनपर कम ध्यान दिया जाता है। नीतियों को यू.पी, बिहार जैसे अधिक जनसंख्या वाले राज्यों पर लक्षित किया जाता है।
- प्रतिनिधित्व संबंधी निहितार्थ: बहुत अधिक सम्भावना है कि अगला परिसीमन 2031 की जनगणना के आधार पर होगा, जिससे संसद में सीटों की संख्या में वृद्धि होगी। उस समय सदन की गरिमा बनाए रखना कठिन हो जाएगा क्योंकि वर्तमान सदस्यों की संख्या के कारण ही काफी अव्यवस्था उत्पन्न हो रही है। सदस्यों की संख्या में अनायास वृद्धि से सदन के अध्यक्ष का कार्य और कठिन एवं दुष्कर हो जाएगा।
बढ़ती जनसंख्या के साथ, जन प्रतिनिधियों के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जनता के प्रत्येक मुद्दे को सम्बोधित करना कठिन हो जाएगा और इस प्रकार जनता में शिकायत की भावना उत्पन्न होगी जो लोकतंत्र की भावना को कमजोर करेगी।
उपर्युक्त चिन्हित मुद्दों को ध्यान में रखते हुए, अगले परिसीमन की कवायद प्रारंभ करने से पहले व्यापक स्तर पर परामर्श की आवश्यकता है। यहाँ तक कि विगत दशकों में चुनाव सुधारों के प्रस्तावों में भी विभिन्न आयोगों ने इन मुद्दों को उचित रूप से सम्बोधित करने की अनुशंसा की है। निकट भविष्य में हमारे राजनेताओं को इन चुनौतियों पर ध्यान देना होगा।
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