भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के लिए उत्तरदायी सामान्य कारणों और विरोधाभासों का उल्लेख

प्रश्न: भारतीय राष्ट्रवाद का उद्भव तब हुआ जब ब्रिटिश राज के लक्ष्यों और उद्देश्यों तथा भारतीयों के हितों के मध्य के विरोधाभास स्पष्ट और दृष्टिगोचर होने लग गए। इस संदर्भ में, राष्ट्रवाद के विकास में बुद्धिजीवियों द्वारा निर्वाह की गयी भूमिका का सविस्तार वर्णन कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के लिए उत्तरदायी सामान्य कारणों और विरोधाभासों का उल्लेख कीजिए।
  • राष्ट्रवाद के विकास में बुद्धिजीवियों की भूमिका के सन्दर्भ में, उदाहरण सहित चर्चा कीजिए।
  • अंत में, स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रवाद के महत्व का वर्णन कीजिए।

उत्तर

राष्ट्रवाद, लोगों की राष्ट्र के साथ आत्मीयता/एकात्मकता का प्रतीक है जिसका उद्देश्य स्वशासन की प्राप्ति एवं उसे बनाए रखना है। भारतीय राष्ट्रवाद का उद्भव 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में, आंशिक रूप से औपनिवेशिक नीतियों के परिणामस्वरूप एवं आंशिक रूप से औपनिवेशिक नीतियों के विरुद्ध प्रतिक्रियास्वरूप हुआ।

ब्रिटिश प्रशासन एवं आर्थिक नवाचारों के कारण बुद्धिजीवी वर्ग का उद्भव, इसके मुख्य कारकों में से एक था। इस वर्ग द्वारा ज्ञान, विचारों और मूल्यों के समन्वित मंच के माध्यम से, छुपे हुए साम्राज्यवादी उद्देश्यों को प्रकट किया गया। उन्होंने निम्नलिखित तरीकों से राष्ट्रवाद के विकास में योगदान दिया:

आर्थिक शोषण: दादाभाई नौरोजी और रमेश चंद्र दत्त जैसे नरमपंथी नेताओं द्वारा धन निष्कासन सिद्धांतों (Economic drain theories) द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश नीतियों के नकारात्मक प्रभाव का वर्णन किया गया। इस प्रकार बुद्धिजीवी वर्ग ने जन सामान्य को जागरूक किया और राष्ट्रवाद की भावना को प्रेरित किया। 

सामाजिक-धार्मिक सुधार: राजा राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर और ज्योतिबा फुले जैसे समाज सुधारक तर्कवाद, आधुनिक विज्ञान और मानवतावाद से प्रभावित थे। भारतीय समाज के पुनरुद्धार के उद्देश्य से सती प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध सामाजिक-धार्मिक जागरूकता अभियान आरंभ किए गए। इनके परिणामस्वरूप आगामी वर्षों में राष्ट्रीय एकता को विस्तार मिला।

भारतीयों के गौरव को पुनः स्थापित किया: रामकृष्ण गोपाल भंडारकर, राजेन्द्रलाल मित्र जैसे विद्वानों ने राष्ट्रवादी भावनाओं को जागृत किया। इन्होंने औपनिवेशिक मिथकों, जैसे कि- भारतीय एक निम्न नृजाति हैं जो दासता के लिए बाध्य हैं, को समाप्त किया।

प्रेस और साहित्य का योगदान: बुद्धिजीवियों के वर्ग ने भारतीय स्वामित्व वाले अंग्रेज़ी एवं स्थानीय समाचार पत्रों के विकास में अत्यधिक योगदान दिया। इससे स्वशासन, लोकतंत्र, नागरिक अधिकार आदि आधुनिक विचारों के तीव्र प्रसार में सहायता मिली।

साम्राज्यवादी उद्देश्यों को उजागर करना: बुद्धिजीवी वर्ग को शीघ्र ही यह ज्ञात हो गया था कि प्रशासनिक बदलाव, रक्षा व्यय में वृद्धि और आधुनिक परिवहन व संचार का विकास, लोगों के कल्याण के लिए नहीं बल्कि वास्तविक रूप से भारत के औपनिवेशिक शोषण में तीव्रता लाने हेतु किया गया है। उन्होंने प्रेस, सभाओं और विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से इसे उद्घाटित किया जिसके परिणामस्वरूप भेदभावपूर्ण ब्रिटिश नीतियों के विरुद्ध एकजुटता के निर्माण में सहायता मिली।

वैचारिक पृष्ठभूमि और नेतृत्व की भूमिका: बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा जन सामान्य से सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन से मुक्त होने के लिए आधुनिक शिक्षा को अपनाने की प्रगतिशील अपील की गयी। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसे विभिन्न राजनीतिक संगठनों को भी नेतृत्व प्रदान किया जिन्होंने दमनकारी ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोगों को एकजुट किया।

राष्ट्रवाद के प्रसार के दौरान, मध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों ने देश में उभरती हुई नई राजनीतिक अशांति के केंद्र के रूप में कार्य किया। इस नए अल्पसंख्यक वर्ग ने बहुसंख्यक वर्ग में जागरूकता उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जन सामान्य के मध्य भारतीयता की भावना को उत्पन्न करने में सहायता प्रदान की।

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