पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त होने वाले सौर विकिरण : इसके लिए उत्तरदायी विभिन्न भौगोलिक कारक
प्रश्न: पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाले सौर विकिरण की मात्रा और ऊर्जा में स्थान एवं समय के अनुसार व्यापक भिन्नता होती है। इसके लिए उत्तरदायी विभिन्न भौगोलिक कारण कौन से हैं? साथ ही सविस्तार वर्णन कीजिए कि पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर जीवन को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
दृष्टिकोण
- पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त होने वाले सौर विकिरण की अलग-अलग मात्रा पर प्रकाश डालिए।
- इसके लिए उत्तरदायी विभिन्न भौगोलिक कारकों की सूची प्रस्तुत कीजिए।
- व्याख्या कीजिए कि कैसे पराबैंगनी (UV) विकिरण पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करता है।
उत्तर
पृथ्वी की सतह तक पहुंचने वाली सौर विकिरण की मात्रा एवं ऊर्जा में भौगोलिक, स्थानिक और समय के साथ व्यापक भिन्नता पाई जाती है। सतह पर प्राप्त होने वाला सूर्यातप उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में लगभग 320 वाट प्रति वर्गमीटर से ध्रुवों पर 70 वाट प्रति वर्गमीटर तक अंतर पाया जाता है। इस विभिन्नता के लिए उत्तरदायी कारक हैं:
- सूर्य किरणों का नति कोण: बड़ा कोण होने का आशय है कि सूर्य की किरणें लगभग ऊर्ध्वाधर चमकेंगी, इस प्रकार प्राप्त होने वाला विकिरण अधिक संकेंद्रित होगा और तीव्रता/गहनता भी अधिक होगी।
- पृथ्वी की भू-आभ आकृति: यह एक स्थान विशेष पर सूर्य के चमकने की अवधि का निर्धारण करता है। उदाहरण के लिए, अन्य स्थानों की तुलना में भूमध्य रेखा को अधिक विकिरण की प्राप्ति होती है।
- वायुमंडल की पारदर्शिता: मेघ आवरण की मात्रा व इसकी मोटाई, धूल एवं जलवाष्प सौर विकिरण के परावर्तन, अवशोषण और पारेषण को प्रभावित करते हैं। उप-उष्णकटिबंधीय मरुस्थलीय क्षेत्र अधिकतम सूर्यातप प्राप्त करते हैं, क्योंकि वहाँ मेघों की संख्या सबसे कम होती हैं।
- ढाल की स्थिति : ढाल की दिशा एवं इसका कोण स्थानीय स्तर पर प्राप्त होने वाले सौर विकिरण की मात्रा को नियंत्रित करते हैं। सूर्य की ओर उन्मुख ढाल को अधिक सौर विकिरण की प्राप्ति होती है।
- तुंगता (Altitude): वायुमंडलीय दबाव के कारण वायुमण्डल की निचली परतें सम्पीड़ित होने के साथ-साथ पृथ्वी की सतह के निकट अवस्थित होती हैं, इस कारण ये उच्च स्तरीय परतों की तुलना में अधिक गर्म हो जाती हैं। इस प्रकार, जैसे- जैसे हम ऊपर की ओर जाते हैं, तापमान क्रमशः कम होने लगता है।
पृथ्वी पर विद्यमान जीवन पर UV विकिरण का प्रभाव –
पृथ्वी की सतह पर आने वाली पराबैंगनी (UV) विकिरण की तरंग दैर्ध्य 290 से 400 am के मध्य होती है। तरंग दैर्ध्य जितनी लघु होगी UV विकिरण से होने वाली हानि की संभावना उतनी ही अधिक होगी। दीर्घ तरंगदैर्ध्य वाली विकिरण को UV-A के नाम से जाना जाता है जो त्वचा द्वारा विटामिन D के निर्माण में सहायक एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
लघु तरंग दैर्ध्य वाली UV विकिरण अर्थात UV-B के निम्नलिखित प्रभाव हैं:
- यह DNA को क्षति पहुँचाती है, त्वचा कैंसर उत्पन्न कर सकती है तथा हीज़ सिम्प्लेक्स वायरस के प्रति शरीर की रोग प्रतिरोधक अनुक्रिया में अवरोध उत्पन्न कर सकती है। UV-B के अधिक सम्पर्क में रहने से मानवों और पशुओं दोनों में मोतियाबिंद, नो ब्लाइंडनेस और अन्य बीमारियां हो सकती हैं।
- UV-B के अधिक सम्पर्क से कई फसल पौधों की प्रजातियों के आकार, उत्पादकता और गुणवत्ता में कमी आ जाती है।
- यह जीवमंडल में पोषक तत्वों एवं ऊर्जा का संचलन करने वाले जीवों को प्रभावित कर जैव भू-रासायनिक चक्रों में परिवर्तन कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, फायटो प्लैंकटन की घटती जनसंख्या विश्व के कार्बन चक्र को व्यापक रूप से प्रभावित करेगी।
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