WTO आधारित ट्रिप्स (TRIPS) समझौते : भारत/विकासशील देशों के संदर्भ में ट्रिप्स-प्लस प्रावधानों के संभावित परिणामों की चर्चा
प्रश्न: विकसित देशों द्वारा WTO आधारित ट्रिप्स (TRIPS) समझौते से बाहर अनुशंसित किए जा रहे ट्रिप्स-प्लस प्रावधानों से आप क्या समझते हैं? क्या आपके विचार से भारत को कुछ लचीलापन दिखाना चाहिए एवं अपनी IPR व्यवस्था में कुछ ट्रिप्स-प्लस प्रावधानों का समावेश करना चाहिए?
दृष्टिकोण
- ट्रिप्स समझौते से इसके अंतरों का उल्लेख करते हुए ट्रिप्स-प्लस का वर्णन कीजिए।
- भारत/विकासशील देशों के संदर्भ में ट्रिप्स-प्लस प्रावधानों के संभावित परिणामों की चर्चा कीजिए।
- तर्क प्रस्तुत कीजिए कि भारत को अपनी नीतियों में ट्रिप्स-प्लस को अपनाना चाहिए या नहीं।
- आगे की राह प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष दीजिए।
उत्तर
वर्तमान विश्व में बौद्धिक संपदा सुरक्षा से संबंधित मानकों का निर्धारण बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार संबंधी पहलुओं पर समझौते ( एग्रीमेंट ऑन ट्रेड रिलेटेड आस्पेक्ट्स ऑफ़ इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स या TRIPS) द्वारा किया जाता है। इसे आधार बनाते हुए, ट्रिप्स-प्लस के प्रावधानों में पेटेंट कानूनों की सुरक्षा हेतु ट्रिप्स समझौते की तुलना में और अधिक कठोर एवं सख्त IPR कानून/मानकों को संदर्भित किया गया है। इसके अंतर्गत अमूर्त परिसंपत्ति की एक विस्तृत श्रृंखला हेतु सुरक्षा का विस्तार किया गया है तथा साथ ही TRIPS व्यवस्था में विद्यमान नम्य प्रावधानों में कमी लायी गयी है।
चूंकि अधिकांश अत्याधुनिक/भावी नवीन प्रौद्योगिकियों पर विकसित देशों का ही अधिकार है, अतः वे ट्रिप्स-प्लस प्रावधानों का समर्थन करते हैं। इसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- पेटेंट प्रवर्तन को सख्त बनाना और अनिवार्य लाइसेंस पर प्रतिबंध।
- डिजिटल अधिकार प्रबंधन प्रणाली को सुदृढ़ बनाने हेतु धोखाधड़ी विरोधी कानून।
- ब्रॉडकास्टर्स/वेबकास्टर्स के लिए सुदृढ़ अधिकार।
ट्रिप्स प्लस प्रावधानों की आवश्यकता को निम्नलिखित आधारों पर न्यायोचित ठहराया जा सकता है:
- बेहतर अनुसंधान और विकास हेतु अनुकूल परिवेश का निर्माण, क्योंकि उच्च सुरक्षा और अनुसंधान एवं विकास के मध्य सकारात्मक सहसंबंध होता है।
- व्यापार समझौतों से संबंधित सुदृढ़ IPR, एक अनुकूल व्यवसाय परिवेश का निर्माण कर विकासशील देशों को लाभान्वित करता है, जो आगे विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को प्रोत्साहित करता है।
- भावी विशिष्ट विकास आवश्यकताओं के लिए पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण।
- IPR प्रवर्तन हेतु अंतरराष्ट्रीय मानकों की स्थापना के उद्देश्य के लिए धोखाधड़ी विरोधी और नकली व्यापार विरोधी कानूनों का कठोर प्रवर्तन।
हालांकि, ट्रिप्स समझौते से आगे बढ़ने का विरोध करने के लिए भारत जैसे विकासशील देशों के पास मजबूत तर्क हैं। वस्तुतः एक सुदृढ़ ट्रिप्स-प्लस के निम्नलिखित परिणाम होंगे:
- दवाइयों, कृषि आगतों आदि की कीमतों में वृद्धि होगी और इस प्रकार सामाजिक विकास प्रभावित होगा।
- जेनेरिक दवा अभिकर्ताओं के मध्य एकाधिकार को प्रोत्साहन मिलने से प्रतिस्पर्धा में कमी आयेगी, जो औद्योगिक संवृद्धि और निर्यात को प्रभावित करेगी।
- उत्पादों की सुरक्षा, गुणवत्ता और प्रभावोत्पादकता से समझौता। चूंकि आंकड़ों की अनन्यता (data exclusivity) से,संबंधित प्रावधान जेनेरिक निर्माताओं द्वारा आंकड़ों के उपयोग के समक्ष बाधा उत्पन्न करेगा।
- वहनीय कीमतों पर प्रौद्योगिकी तक सार्वजनिक पहुँच संबंधी बाधाएं।
- आपातकालीन परिस्थितियों, अविश्वास के निवारण के उपायों और सार्वजनिक गैर-वाणिज्यिक उपयोग से संबंधित मामलों के लिए अनिवार्य लाइसेंस के आवेदन को प्रतिबंधित करना।
TRIPS प्रावधानों से आगे बढ़ना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर IP सुरक्षा पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है और इसके परिणामस्वरूप व्यापार का स्वरुप विकृत हो सकता है। इसके अतिरिक्त, अपने घरेलू विनिर्माण और फार्मा-निर्यात की सुरक्षा हेतु भारत ने अभी तक TRIPS प्रावधानों को तक ही सीमित रहने का प्रयास किया है।
वर्तमान में, आंकड़ों की अनन्यता और अन्य ट्रिप्स प्लस प्रावधानों को प्राय: विकसित और विकासशील देशों के मध्य मुक्त व्यापार समझौते के भाग के रूप में सम्मिलित किया जा रहा है। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए, सबसे सर्वोत्तम शमन रणनीति अधिकार आधारित दृष्टिकोण के आधार पर बहुपक्षवाद और नेटवर्किंग के संयोजन में निहित है। इस संदर्भ में, भारत को द्विआयामी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। एक तरफ, इसे देश-विशिष्ट और संदर्भ-संवेदी दृष्टिकोण के साथ WTO-एजेंडे के अंतर्गत ट्रिप्स समझौते की समीक्षा हेतु सर्वसम्मति बनानी चाहिए। वहीं दूसरी ओर, इसे IPR व्यवस्था के दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य के साथ घरेलू अभिकर्ताओ से संबंधित मानकों (केवल वे मानक जिन्हें कठोर बनाया जा रहा है) को अद्यतन करना चाहिए।
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