भारत में संधारणीय रेत खनन

प्रश्न: भारत में संधारणीय रेत खनन के महत्व को स्पष्ट कीजिए। इस संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • रेत खनन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • भारत में संधारणीय रेत खनन के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  • इस संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिए।

उत्तरः

रेत और बजरी दोनों को एग्रीगेट्स (aggregates) रूप में जाना जाता है, यह जल के पश्चात् पृथ्वी पर दूसरा सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाला कच्चा माल है। भारत में अविवेकपूर्ण रेत खनन से न केवल पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को क्षति पहुंची है, बल्कि अर्थव्यवस्था के समक्ष भी खतरा उत्पन्न हो गया है। इसलिए संधारणीय रेत खनन (sustainable sand mining: SSM) की अनुशंसा की गई है।

संधारणीय रेत खनन में बेहतर वैज्ञानिक आकलन का उपयोग किया जाता है तथा इसमें सर्वोत्तम पद्धतियों, निर्माण प्रौद्योगिकी और संसाधनों के संधारणीय उपयोग को अपनाया जाता है।

संधारणीय रेत खनन का महत्व: 

  • नदी संतुलन का संरक्षण: नदियों और समुद्री तटों से 10% से 15% रेत का निष्कर्षण किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रायः नदीय और तटीय अपरदन होता है। SSM यह सुनिश्चित करता है कि नदी जल प्रवाह, बाढ़ विनियमन और समुद्री धाराओं जैसी जल विज्ञान संबंधी (हाइड्रोलॉजिकल) गतिविधियां अवरोधित न हो।
  • जैव विविधता क्षति को रोकना: यह नदी/महासागर पारिस्थितिक तंत्रों पर पारिस्थितिक प्रभावों तथा मत्स्य पालन और पर्यटन जैसे क्षेत्रों पर आर्थिक प्रभावों में कमी लाएगा।
  • जल आपूर्ति बनाए रखना: यह जल स्तर के पुनर्भरण और भूजल प्रदूषण में कमी को सुनिश्चित करेगा।
  • संसाधन की पुनःपूर्ति सुनिश्चित करना: वर्तमान में रेत निष्कर्षण दर प्राकृतिक पुनःपूर्ति (replenishment) दर से अधिक है। अतः संधारणीय रेत खनन इस असंतुलन को कम करेगा।
  • अवसंरचनात्मक क्षति को प्रतिबंधित करना: इससे पुलों, नदी तटबंधों और तटीय अवसंरचनाओं की क्षति को रोका जा सकेगा।
  • बेहतर नियोजन: यह अनावश्यक निर्माण कार्य को कम करेगा और एग्रीगेट्स (aggregates) की उपयोग दक्षता में वृद्धि करेगा, खनन के लिए उचित वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करेगा, वैकल्पिक डिजाइन और निर्माण विधियों आदि को अपनाएगा।
  • स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों में कमी: संधारणीय रेत खनन अवैज्ञानिक एवं अनियमित रेत खनन तथा इसके परिवहन से उत्पन्न होने वाले धूल-कोहरे और वायु की गुणवत्ता में होने वाली गिरावट में कमी लाएगा।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • संधारणीय रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश, 2016 (Sustainable Sand Mining Management Guidelines, 2016): पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा रेत खनन के विनियमन से संबंधित मुद्दों के समाधान हेतु इन दिशानिर्देशों को जारी किया गया है।
  • खनन निगरानी प्रणाली (Mining Surveillance System: MSS): भारतीय खान ब्यूरो (IBM) के माध्यम से खान मंत्रालय ने अवैध खनन की जांच करने हेतु अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करके MSS को विकसित किया है।
  • माइनिंग टेनेमेंट सिस्टम (Mining Tenement System: MTS): यह स्वचालन (ऑटोमेशन) के माध्यम से देश भर में उत्पादित सभी खनिजों के राष्ट्रीय पैमाने पर एन्ड टू एन्ड लेखांकन की सुविधा प्रदान करेगा।
  • रेत के लिए विकल्पों का विकास: भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा रेत के लिए विकल्प विकसित किए गए हैं जैसे कि स्लैग; जो कि इस्पात उद्योग से निकलने वाला अवशिष्ट है, फ्लाई ऐश, चूर्णित पकी हुई ईंटें (crushed over-burnt bricks) आदि।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: इसमें निक्षेपित रेत की मात्रा की जांच करने हेतु प्रत्येक नदी का इसरो द्वारा उपग्रह मानचित्रण, CCTV कैमरों की स्थापना, रेत परिवहन के वाहनों पर ट्रैकिंग डिवाइस आदि को शामिल किया गया है।
  • पर्यावरण प्रभाव आकलन में संशोधन: इसने लघु स्तर की रेत खदानों के लिए पर्यावरणीय प्रभाव स्वीकृति (environmental impact clearance) को अनिवार्य बना दिया है। साथ ही खानों के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने और स्वीकृति प्रदान करने हेतु दो निकायों के गठन का भी प्रावधान किया गया है।
  • शिकायत प्रकोष्ठ की स्थापना: जिले में अवैध रेत खनन से संबंधित शिकायतों को दर्ज करने हेतु लोगों के लिए कलेक्ट्रेट नियंत्रण कक्ष में एक चौबीस घंटे का शिकायत प्रकोष्ठ (round-the-clock complaint cell) स्थापित किया गया है।
  • प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना (PMKKKY): इसे जिला खनिज फाउंडेशन (DMF) के तहत एकत्रित धन द्वारा कार्यान्वित किया जाता है और इसका उपयोग खनन प्रभावित क्षेत्रों के कल्याण एवं विकास के लिए किया जाता है।

वर्तमान में, भारत में रेत खनन के विस्तार और गंभीरता के संबंध में कोई डेटा उपलब्ध नहीं है। जल संसाधनों पर इसके प्रभाव की जांच करने हेतु एक अखिल भारतीय अध्ययन की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, वैकल्पिक सामग्री जैसे विनिर्मित रेत और कृत्रिम रेत के उत्पादन में निवेश किए जाने की आवश्यकता है।

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