भारत निर्वाचन आयोग : ‘स्वतंत्र एवं निष्पक्ष’ चुनावों में भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की भूमिका

प्रश्न: भारत निर्वाचन आयोग की कार्यपद्धति से जुड़े प्रासंगिक संवैधानिक और सांविधिक प्रावधानों का उल्लेख कीजिए। इस निकाय की स्वायत्तता और प्रभावशीलता को और अधिक सुदृढ़ करने के लिए कौन-से क़दमों को उठाए जाने की आवश्यकता हैं?

दृष्टिकोण:

  • अनुच्छेद 324 का उल्लेख करते हुए ‘स्वतंत्र एवं निष्पक्ष’ चुनावों में भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  • भारत निर्वाचन आयोग और आदर्श आचार संहिता से संबंधित जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के कुछ अन्य प्रावधानों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • भारत निर्वाचन आयोग की स्वतंत्र कार्यपद्धति की सीमाओं को रेखांकित कीजिए और इसकी स्वायत्तता में वृद्धि करने हेतु कुछ उपाय सुझाइए।

उत्तरः

भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India:ECI) एक स्थायी संविधानिक निकाय है। इसे लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव आयोजित कराने का उत्तरदायित्व सौंपा गया है। संविधान (भाग XV) और संसद की विभिन्न विधियाँ इसकी शक्तियों के स्त्रोत हैं जिनका विवरण निम्नलिखित है:

  • अनुच्छेद 324 संसद एवं राज्य विधानमंडलों, राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति पदों के लिए कराए जाने वाले निर्वाचनों के संचालन के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण के साथ-साथ इसकी संरचना एवं सेवा-शर्तों संबंधी प्रावधानों का उल्लेख करता है।
  • अनुच्छेद 356 किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन को एक वर्ष से अधिक विस्तारित करने के लिए भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा (चुनाव को आयोजित करने के संदर्भ में) प्रमाणन का प्रावधान करता है।
  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 भारत निर्वाचन आयोग को निम्नलिखित शक्तियां प्रदान करता है: –
  • राजनीतिक दलों तथा उनके चनाव चिह्नों को पंजीकृत करना।
  • चुनाव कार्यक्रम एवं अन्य संबंधित विवरण की सूचना प्रदान करना।
  • रिश्वत, हिंसा/घृणा को भड़काने जैसे निर्वाचन संबंधी अपरोधों के लिए सदस्यों को अयोग्य घोषित करें।
  • राष्ट्रपति को संसद के सदस्यों को अयोग्य घोषित करने के संबंध में सलाह प्रदान करना।
  •  चुनावों के लिए प्रशासनिक मशीनरी की नियुक्ति और पर्यवेक्षण करना।
  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951- भारत निर्वाचन आयोग को नियमित रूप से मतदाता सूची को तैयार करने तथा संशोधित करने हेतु सक्षम बनाता है।
  • मुख्य निर्वाचन आयुक्त परिसीमन आयोग (अनुच्छेद 82 की आवश्यकताओं के अनुरूप गठित) के पदेन कार्यकारी अधिकारी के रूप में कार्य करता है।

इसके अतिरिक्त ECI सभी उम्मीदवारों को एक समान अवसर प्रदान करने के लिए प्रत्येक चुनाव से पूर्व आचार संहिता को जारी करता है। इसके साथ ही ECI की स्वतंत्र कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करने के लिए मुख्य निर्वाचन आयुक्त को कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान की जाती है और इसे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान रीति से ही पदमुक्त किया जा सकता है। यद्यपि इसकी स्वायत्तता एवं प्रभावशीलता में वृद्धि करने के लिए कुछ अन्य उपाय किए जाने भी आवश्यक हैं :

मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति निश्चित विधियों के अनुसार की जानी चाहिए। वर्तमान व्यवस्था के अनुसार इनकी नियुक्ति कार्यपालिका द्वारा बिना किसी योग्यता को रेखांकित किए और परम्पराओं के आधार पर स्थापित राजनीतिक निष्पक्षता की कीमत पर की जाती है। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने इनकी नियुक्ति के लिए एक कॉलेजियम (जिसमे प्रधानमंत्री, भारत का मुख्य न्यायाधीश तथा विपक्ष का नेता सम्मिलित हो) का सुझाव दिया था।

ECI के सेवानिवृत्त सदस्य को राज्य के अंतर्गत लाभ का पद धारण करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

  • चुनाव आयुक्तों को मुख्य निर्वाचन आयुक्त के समान स्तर पर कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
  • अधिक वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करना क्योंकि वर्तमान में इसका बजट भारत की संचित निधि पर भारित नहीं है (जैसे CAG या UPSC) परंतु संसद द्वारा इस पर मतदान किया जाता है।
  • ‘धनबल’ को चुनावी अपराध के रूप में सम्मिलित करने तथा भ्रामक समाचारों संबंधी समस्या के निवारण हेतु जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) के अंतर्गत इसकी शक्तियों का विस्तार किया जाना चाहिए। वर्तमान में ECI को अनुच्छेद 324 के अंतर्गत असाधारण शक्तियों का उपयोग करना पड़ता है।
  • अधिकारियों की नियुक्ति हेतु कार्मिक प्रशिक्षण विभाग पर निर्भरता को कम करने के लिए स्वतंत्र सचिवालय की स्थापना की जानी चाहिए।

ECI ने निर्वाचित लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है जिसके परिणामस्वरूप भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था वैश्विक स्तर पर एक उत्कृष्ट एवं सफलतम उदाहरण के रूप में स्थापित हुई है। ECI का सशक्तिकरण निर्वाचन प्रक्रिया की शुद्धता एवं पारदर्शिता को बढ़ाएगा।

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