‘रणनीतिक स्वायत्तता’ और इसके महत्व : गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) एवम भारत की समकालीन विदेश नीति

प्रश्न: रणनीतिक स्वायत्तता क्या है ? हाल के घटनाक्रमों के संदर्भ में भारत की समकालीन विदेश नीति में ऐसी नीति के तत्वों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ और इसके महत्व को परिभाषित कीजिए।
  • किस प्रकार गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) भारत द्वारा समर्थित ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ का प्रथम रूप था। संक्षेप में स्पष्ट कीजिए। संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, चीन, रूस, ईरान जैसे विभिन्न देशों के समूह के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा कीजिए।
  • इनका उपयोग इस पर बल देने के लिए कीजिए कि भारत रणनीतिक स्वायत्तता के उद्देश्य को कैसे प्राप्त कर सकता है।
  • इस प्रकार की नीति के तहत निहित व्यावहारिकता को सूचीबद्ध कीजिए और इसके संभावित लाभों का वर्णन कीजिए।
  • इस प्रकार की नीति होने के संभावित नकारात्मक पक्षों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

रणनीतिक स्वायत्तता राज्यों के रणनीतिक हितों (सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, विदेशी मामलों आदि) के संदर्भ में विदेशी मामलों में स्वतंत्र दृष्टिकोण एवं कार्यप्रणाली की क्षमता होती है, ऐसे राज्य अन्य राज्यों और समूहों के दबाव से अपेक्षाकृत मुक्त होते हैं। स्वतंत्रता के पश्चात् से ही ये सिद्धांत भारत की विदेश नीति के साथ समायोजित रहें हैं। गुट निरपेक्ष आंदोलन ने शीतयुद्ध युग के दौरान शक्ति गुटों को अस्वीकार कर दिया था तथा NAM की स्थापना और उदारीकरण के पश्चात् भारत ने किसी एक शक्ति पर निर्भर होने के विपरीत “बहुपक्षीय संरेखण (मल्टी- एलाइन्मेट)” की नीति का पालन किया है।

21वीं शताब्दी में, इस प्रकार की नीति में अपने स्वतंत्र दृष्टिकोण को बनाए रखते हुए साझा लक्ष्यों के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों पर विविध राष्ट्रों के साथ जुड़ाव भी शामिल होता है।

  •  भारत-USA ने लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) पर हस्ताक्षर किए हैं और ‘2 + 2’ वार्ता की शुरुआत की है तथा भारत-प्रशांत क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखने हेतु क्वाड (भारत-जापान-यूएसए-ऑस्ट्रेलिया) को नया रूप प्रदान किया है। इसके साथ ही भारत, चीन और रूस के नेतृत्व वाले SCO का सदस्य बना है, जिसका प्राथमिक उद्देश्य मध्य एशिया (संयुक्त राज्य अमेरिका का मुकाबला करने हेतु) में सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
  • भारत, ब्रिक्स और द्विपक्षीय जुड़ाव के माध्यम से चीन के साथ अपने संबंधों को सुदृढ़ कर रहा है। हालांकि, भारत ने BRI (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव) शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया था क्योंकि भारत ने इसे अपनी क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन माना।
  • पश्चिम एशिया में भारत, सऊदी अरब, ईरान और इज़राइल के साथ एक त्रि-पक्षीय नीति का अनुसरण कर रहा है।\

उत्तरोत्तर बढ़ते बहु-ध्रुवीय विश्व में इस प्रकार के दृष्टिकोण का महत्व बढ़ रहा है। यह दर्शाता है कि वैश्विक व्यवस्था (खुले समुद्र में नेविगेशन की स्वतंत्रता, संप्रभुता का परस्पर सम्मान, आतंकवाद एवं साइबर युद्ध के विरुद्ध कार्रवाई) की सुरक्षा के बारे में मुखर होने के साथ भारत अन्य राष्ट्रों के साथ संबंधों को सुदृढ़ कर सकता है। भारत किसी राष्ट्र के साथ एक मुद्दे पर सहमत, जबकि अन्य मुद्दों पर असहमत हो सकता है। इसे हाल ही में प्रधानमंत्री के शांगरी-ला भाषण में भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

हालांकि, रणनीतिक स्वायत्तता एक महत्वकांक्षा है; अधिकांश राष्ट्रों के पास इसको व्यवहार में लाने की आवश्यक शक्ति की संभावना बहुत कम है। आंतरिक विरोधाभास वाले समूहों में भारत के नेतृत्व की आलोचना की गई है, उदाहरण के लिए ब्रिक्स में लोकतांत्रिक भारत और ब्राजील के साथ रूस और चीन जैसे सत्तावादी राष्ट्रों का एक साथ होना। वैश्विक शक्ति आयामों (dynamics) में व्यवधान के कारण, विश्व असमंजस में है। इसका अर्थ है कि रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए और अधिक अथक प्रयास करना होगा क्योंकि विभिन्न संबंध अलग-अलग दिशाओं की ओर आगे बढ़ते हैं।

वैश्विक, आर्थिक एवं तकनीकी शक्ति और विकासशील विश्व के नेतृत्वकर्ता के रूप में भारत के उभार ने इसकी एवं साथ ही इसके समान विचार रखने वाले राष्ट्रों की रणनीतिक स्वायत्तता को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाने में सहायता की है। हालांकि, भारत को रक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में स्वयं की स्वदेशी क्षमता को विकसित करने की आवश्यकता है। वहीं एक ऐसी लोकतांत्रिक और नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की दिशा में भी कार्य करना है, जिसमें सभी छोटे एवं बड़े राष्ट्र समान और संप्रभु रूप से भागीदार हो।

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