वर्साय की संधि : वर्साय की संधि सुलह पर आधारित शांति समझौता नहीं थी बल्कि जर्मनी पर थोपी गई ‘आदेशित शांति’

प्रश्न: वर्साय की संधि सुलह पर आधारित शांति समझौता नहीं थी, बल्कि जर्मनी पर थोपी गई ‘आदेशित शांति’ थी, जिसने अंततः द्वितीय विश्व युद्ध का मार्ग प्रशस्त किया। परीक्षण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • वर्साय की संधि के संबंध में एक संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • वर्साय की संधि सुलह पर आधारित शांति समझौता नहीं थी बल्कि जर्मनी पर थोपी गई ‘आदेशित शांति‘ थी, चर्चा कीजिए।
  • इस संधि ने किस प्रकार द्वितीय विश्व युद्ध का मार्ग प्रशस्त किया, चर्चा कीजिए।
  • साथ ही, द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ हेतु उत्तरदायी अन्य कारकों की भी विवेचना कीजिए।

उत्तर

1919 की वर्साय की संधि युद्ध में सफल मित्र राष्ट्रों और जर्मनी के बीच हस्ताक्षरित सबसे विवादास्पद शांति संधियों में से एक थी। प्रथम विश्व युद्ध के बाद पराजित शक्तियों के साथ व्यवहार से संबंधित मुद्दों को लेकर मित्रराष्ट्रों के मध्य पहले ही मतभेद थे। इस संधि को जर्मनी पर आरोपित एक आदेशित शांति के रूप में देखा जाता है, क्योंकि जर्मनी के लोगों को वर्साय संधि के दौरान चर्चाओं में सम्मिलित नहीं किया गया था और उनके समक्ष केवल संधि की शर्तों को प्रस्तुत किया गया और इस पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया था।  यद्यपि उन्हें लिखित रूप में संधि की आलोचना करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन उनकी अधिकांश आलोचनाओं को दरकिनार कर दिया गया था।

इसके अतिरिक्त, संधि के प्रावधान जर्मनी के लिए बेहद कड़े थे और उनका पालन करना लगभग असंभव था: 

  • युद्ध क्षतिपूर्ति : जर्मनी को युद्ध का दोषी ठहराया गया था और उसे युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में एक बड़ी धनराशि का भुगतान करने के लिए कहा गया था। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि जर्मनी एक पंगु अर्थव्यवस्था से जूझता रहे तथा ब्रिटेन व फ्रांस के लिए किसी भी प्रकार का जोखिम उत्पन्न करने में सक्षम न रह जाए।
  • राज्य क्षेत्र में कमी : जर्मनी को अल्सॉस-लॉरेन का क्षेत्र फ्रांस को देना पड़ा। इसके कुछ भागों को बेल्जियम, डेनमार्क, पोलैंड और लिथुआनिया को दे दिया गया। इसे चीन, प्रशांत और अफ्रीका में स्थापित अपने बाह्य उपनिवेशों को मित्रराष्ट्रों को सौंपना पड़ा। इसके अतिरिक्त, इसके कई अफ्रीकी उपनिवेशों को ‘मैंडेट’ (शासनाधिकार) नामक नई प्रणाली के तहत राष्ट्र संघ को सौंप दिया गया।
  • राइनलैंड का विसैन्यीकरण : फ्रांस और जर्मनी के बीच के क्षेत्र ‘राइनलैंड’ का विसैन्यीकरण कर दिया गया और इसे मित्र राष्ट्र शक्तियों के नियंत्रण के अधीन कर दिया गया।
  • सार घाटी पर नियंत्रण का समाप्त होना : राष्ट्र संघ के अधिदेश के तहत जर्मनी के कोयला समृद्ध सार घाटी का शासन आगामी 15 वर्षों तक फ्रांस तथा ब्रिटेन द्वारा किया जाना था।
  • निरस्त्रीकरण : जर्मन सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया गया तथा इसे एक लाख सैनिकों तक सीमित कर दिया गया। इसकी नौसेना को छह युद्धपोतों व कुछ छोटे जहाजों तक सीमित कर दिया गया। इसे विमान, टैंक और पनडुब्बी रखने की अनुमति नहीं थी। इसे सेना में अनिवार्य भर्ती की भी अनुमति नहीं दी गई थी।
  • युद्ध अपराध : इस संधि ने युद्ध को भड़काने का सारा दोष पूर्ण रूप से जर्मनी और उसके सहयोगियों पर डाल दिया।
  • जर्मनी पुन: एक शक्तिशाली राज्य न बने, यह सुनिश्चित करने के लिए जर्मनी को ऑस्ट्रिया के साथ संघ बनाने हेतु निषिद्ध कर दिया गया।

इस संधि ने जर्मनी को राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य रूप से कमजोर कर दिया। जर्मनी के लोगों और नेताओं ने अपनी आर्थिक समस्याओं के लिए युद्ध क्षतिपूर्ति को उत्तरदायी ठहराया, ये समस्याएं 1929 की महामंदी के दौरान और अधिक बढ़ गईं। अंतत: इसने युद्ध के अंत में स्थापित सरकार ‘वाइमर गणतंत्र’ को अस्थिर बना दिया।

आगे चलकर, वर्साय संधि के विरुद्ध स्थायी आक्रोश के कारण, नाज़ी पार्टी तथा अन्य कट्टरपंथी दक्षिणपंथी दल 1920 और 30 के दशक के प्रारंभ में समर्थन प्राप्त करने में सफल रहे। उन्होंने यह आश्वासन दिया कि वे इस संधि के कठोर प्रावधानों को समाप्त कर देंगे और जर्मनी को पुन: एक प्रमुख यूरोपीय शक्ति के रूप में स्थापित करेंगे। अंततः एडॉल्फ हिटलर सत्ता में आया, जिसने वर्साय की संधि की कड़ी निंदा की। जर्मनी ने युद्ध क्षतिपूर्तियों के लिए भुगतान करना बंद कर दिया, स्वयं को तीव्रता से सशस्त्र किया, चरम राष्ट्रवाद की ओर अग्रसर हुआ और एक विस्तारवादी विदेश नीति की शुरुआत की। इस प्रकार वर्साय की संधि द्वारा स्थापित शांति व व्यवस्था अस्थिर तथा अल्पकालिक थी और इसने द्वितीय विश्व युद्ध के लिए एक सुदृढ़ आधार का निर्माण किया।

हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध को सक्रिय करने में वर्साय की संधि के अतिरिक्त कई अन्य प्रमुख कारकों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्ट्र संघ की विफलता, जर्मनी की आक्रामक विदेश नीति के बावजूद इसके प्रति ब्रिटेन और फ्रांस की तुष्टीकरण की नीति, USSR तथा जर्मनी के बीच अनाक्रमण समझौते तथा इटली व जापान में फासीवाद के उदय इत्यादि कारकों ने संयुक्त रूप से द्वितीय विश्व युद्ध को भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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