भारत के लिए मध्य एशिया का महत्व

प्रश्न: भारत के लिए मध्य एशिया के महत्व पर टिप्पणी करते हुए, हाल के दिनों में संबंधों में हुई प्रगति पर प्रकाश डालिए, साथ ही साथ ऐसे मुद्दों का उल्लेख कीजिए जिन पर संबंधों को और अधिक सुदृढ़ करने हेतु ध्यान दिया जाना अभी भी शेष है।

दृष्टिकोण

  • भारत-मध्य एशिया संबंधों पर संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए परिचय दीजिए।
  • भारत के लिए इस क्षेत्र के महत्व पर चर्चा कीजिए।
  • भारत एवं मध्य एशिया क्षेत्र के संबंधों में हुई प्रगति का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  • उन मुद्दों की चर्चा कीजिए जो दोनों पक्षों के संबंधों को गहन बनाने में अवरोध उत्पन्न करते हैं।

उत्तर

भारत एवं मध्य एशिया द्वारा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों को साझा किया जाता है। हालांकि, भारत द्वारा मध्य एशिया के किसी भी देश के साथ सीमा साझा नहीं की जाती है, परंतु भारत द्वारा इन्हें अपने विस्तारित पड़ोस के भाग के रूप में माना जाता है। इन दोनों क्षेत्रों द्वारा समान वैश्विक एवं क्षेत्रीय चुनौतियों का सामना किया जा रहा है, जो मध्य पारस्परिक लाभप्रद संबंध स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त करती हैं।

मध्य एशियाई क्षेत्र का महत्व:

  • ऊर्जा: यह दोनों देशों के मध्य सहयोग का सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। मध्य एशिया क्षेत्र (CAR) के देशों में हाइड्रोकार्बन एवं खनिज संसाधनों का विपुल भंडार उपलब्ध है। भारत द्वारा विगत एक दशक से TAPI पाइपलाइन के माध्यम से तुर्कमेनिस्तान के गैस भंडारों तक पहुंच स्थापित करने हेतु वार्ता की जा रही है।
  • भू-रणनीतिक महत्व: रूस, चीन एवं पश्चिम एशिया के मध्य तथा अफगानिस्तान के पड़ोस में स्थित होने के कारण मध्य एशिया विश्व के सर्वाधिक महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्रों में से एक है। अतः, भारत की विदेश नीति के परिदृश्य से एक स्थिर और शांतिपूर्ण मध्य एशिया की स्थिति महत्वपूर्ण हो जाती है।
  • व्यापार: चीन के 50 बिलियन डॉलर के व्यापार की तुलना में भारत एवं CAR के मध्य व्यापार लगभग 1 बिलियन डॉलर का ही है। अतः भारत एवं CAR के मध्य व्यापार संबंधों में वृद्धि करने हेतु व्यापक संभावना मौजूद है।
  • निवेश: कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान देशों की अर्थव्यवस्थाएं तेज़ी से विकसित हो रही हैं। साथ ही सूचना एवं प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स एवं पर्यटन जैसे क्षेत्रों में भी निवेश के अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।
  • नागरिक परमाणु सहयोग: यह क्षेत्र विखंडनीय सामग्री के अयस्कों में भी समृद्ध है, जो भारत को नाभिकीय सामग्री के अभाव की पूर्ति करने में सहायता कर सकता है। यह भारत द्वारा कजाकिस्तान एवं उज्बेकिस्तान के साथ हस्ताक्षरित यूरेनियम आपूर्ति समझौते से और भी स्पष्ट होता है।
  • आतंकवाद से निपटना: यद्यपि मध्य एशियाई देशों में उग्रवादी इस्लाम (militant Islam) का अस्तित्व नगण्य है, फिर भी इस क्षेत्र में कुछ छोटे आतंकवादी समूह मौजूद हैं जो चिंता का विषय हैं। भारत और CAR, दोनों ही क्षेत्र अफगानिस्तान की स्थिरता एवं आतंकवाद-रोधी पहलों के पक्षधर हैं।
  • एंटी ड्रग ट्रैफिकिंग: मध्य एशियाई क्षेत्र से अवैध रूप से बड़ी मात्रा में मादक पदार्थों की आवाजाही की जाती है, अत: यह इस क्षेत्र में अस्थिरता का एक और संभावित कारण बना हुआ है। इस प्रकार, क्षेत्रीय स्तर पर विकसित मादक पदार्थों के व्यापार तंत्र से भारतीय बाजार अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो सकते हैं।

भारत द्वारा “कनेक्ट सेंट्रल एशिया पॉलिसी” (2012) नीति का निर्माण किया गया है, जो मध्य एशियाई देशों के साथ भारत की व्यापक साझेदारी की प्रतिबद्धताओं को दोहराती है। वस्तुतः, दोनों क्षेत्रों के मध्य संबंधों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है:

  •  भारत द्वारा ईरान स्थित चाबहार बंदरगाह के पुनरुद्धार का कार्य किया गया है। उल्लेखनीय है कि इसके माध्यम से भारत को मध्य एशिया सहित यूरेशिया से कनेक्टिविटी स्थापित करने में सहायता मिलेगी।
  • अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) को विकसित करना, जो भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया एवं यूरोप के मध्य माल ढुलाई हेतु जहाज, रेल तथा सड़क मार्ग का एक मल्टी-मोडल नेटवर्क है। अश्गाबात समझौते की सदस्यता से भारत मध्य एशिया एवं फारस की खाड़ी के मध्य वस्तुओं के परिवहन को सुविधाजनक बनाने हेतु अंतर्राष्ट्रीय परिवहन तथा पारगमन गलियारे के निर्माण में सहयोग कर सकेगा।
  • भारत की शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की सदस्यता के परिणामस्वरूप इसे यूरेशियाई राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा मामलों में व्यापक भूमिका प्राप्त होगी।
  • हालिया वर्षों में यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन के साथ मुक्त व्यापार समझौते हेतु की गई वार्ता को इस क्षेत्र के साथ साझेदारी को सुदृढ़ करने के भारत के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
  • भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम के तहत, भारत द्वारा मध्य एशियाई देशों के छात्रों को न्यूनतम लागत पर उच्च शिक्षा प्रदान की जाती है।
  • इस क्षेत्र के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने हेतु भारत-मध्य एशिया संवाद 2019 तथा इंडिया-सेंट्रल एशिया ग्रुप ऑफ़ डेवलपमेंट की स्थापना हेतु प्रारंभ की गई पहल।
  • इंडिया-सेंट्रल एशिया बिज़नेस काउंसिल की स्थापना करना, जो कि प्रतिभागी देशों के चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स की परस्पर संलग्नता को बढ़ाएगा।

मुद्देः

  • कनेक्ट एशिया पॉलिसी को क्रियान्वित करने हेतु आवश्यक संस्थागत तंत्र का अभाव।
  • भारत को अभी भी इस क्षेत्र तक प्रत्यक्ष पहंच प्राप्त नहीं है।
  • यह स्थिति इसे अन्य पड़ोसी देशों पर निर्भर बनाती है (विशेषकर व्यापार के लिए)।
  • अफगानिस्तान में अस्थिरता तथा भारत-पाकिस्तान के मध्य अत्यधिक तनावपूर्ण संबंधों ने दोनों पक्षों को परस्पर लाभ प्राप्त करने से वंचित किया है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन एवं रूस सहित प्रमुख शक्तियों की मौजूदगी तथा इस क्षेत्र में बढ़ती रूस-चीन-पाकिस्तान की धुरी ने क्षेत्र में भारत की भूमिका को सीमित कर दिया है।
  • मध्य एशिया सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट (BRI) पहल का एक भाग है।
  • मध्य एशिया के साथ चीन के बढ़ते सैन्य, आर्थिक तथा रक्षा सहयोग ने इस क्षेत्र में भारत की महत्वाकांक्षाओं के समक्ष खतरा उत्पन्न किया है।
  • तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (TAPI) और ईरान-पाकिस्तान-भारत (IPI) पाइपलाइनों पर धीमी प्रगति।

आगे की राह

भारत को अधिक सक्रिय रूप से कार्य करने की आवश्यकता है तथा एक समग्र एवं दीर्घकालिक दृष्टिकोण के परिप्रेक्ष्य में मध्य एशिया के प्रति अपने पृथकतावादी दृष्टिकोण का त्याग करना चाहिए। दोनों पक्षों को समय-समय पर संबंधों को विस्तृत करने हेतु भारत-मध्य एशिया फोरम को स्थापित करने हेतु विचार-विमर्श करना चाहिए तथा साझा हितों वाली परियोजनाओं की पहचान करनी चाहिए। विभिन्न परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए ‘मध्य एशिया कोष’ भी स्थापित किया जा सकता है। INSTC को प्रभावी बनाने के साथ ही चाबहार बंदरगाह को प्राथमिकता के आधार पर विकसित किए जाने की आवश्यकता है। साथ ही साथ इन्हें क्षेत्र में कनेक्टिविटी संबंधी अन्य पहलों के साथ भी जोड़ा जाना चाहिए।

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