भारत में रक्षा विनिर्माण : ड्राफ्ट डिफेन्स प्रोडक्शन पॉलिसी, 2018 (रक्षा उत्पादन नीति मसौदा, 2018)

प्रश्न: भारत में रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में निजी क्षेत्रक द्वारा अत्यंत गौण भूमिका निभाने के पीछे उत्तरदायी कारणों की चर्चा कीजिए। साथ ही, व्याख्या कीजिए की किस प्रकार ड्राफ्ट डिफेन्स प्रोडक्शन पॉलिसी, 2018 (रक्षा उत्पादन नीति मसौदा, 2018) भारत में रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में निजी क्षेत्रक की भागीदारी बढ़ाना चाहती है।

दृष्टिकोण

  • भारत में रक्षा विनिर्माण के विषय में संक्षेप में लिखिए।
  • निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी हेतु उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिए।
  • निजी क्षेत्रक की भागीदारी को बढ़ावा देने वाली ड्राफ्ट डिफेन्स प्रोडक्शन पॉलिसी, 2018 के प्रावधानों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

भारत के पास विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सशस्त्र सेना है, साथ ही यह हथियारों के अधिग्रहण के शीर्ष व्ययकर्ताओं में से भी एक है। देश की 60% रक्षा संबंधी आवश्यकताओं की आयात और शेष की सार्वजनिक क्षेत्रक के उपक्रमों के माध्यम से पूर्ति की जाती है। परंपरागत रूप से, भारत में निजी क्षेत्रक ने रक्षा विनिर्माण में अत्यंत गौण भूमिका निभाई है।

यहाँ तक कि 2001 में सरकार द्वारा 100% निजी क्षेत्रक भागीदारी को मंजूरी देने के बाद भी निजी क्षेत्रक पर्याप्त ढंग से योगदान देने में विफल रहा, जिसके निम्नलिखित कारण हैं:

  • एक परियोजना की पूर्ति हेतु निजी क्षेत्रक कॉर्पोरेट जगत के पास उच्च प्रौद्योगिकी वाले मूल उपकरणों के विनिर्माता के रूप में आवश्यक तकनीकी अनुभव का अभाव है।
  • निविदाएँ प्रदान करने में सार्वजनिक क्षेत्रक इकाइयों (DPSUs) व ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्डी (OFBs) को वरीयता देना तथा ऑफ़सेट डिस्चार्ज के उच्च गुणक का निष्पादन DRDO द्वारा किये जाने के कारण निजी अभिकर्ताओं को विकास हेतु समान अवसर प्राप्त नहीं होते हैं।
  • निजी क्षेत्रक को निर्यात ऑर्डर के लिए प्रोत्साहन का अभाव है, विनिमय दर भिन्नताओं हेतु मुआवजा नहीं है तथा विभेदीकृत छूट व्यवस्थाओं के कारण कराधान में नुकसान वहन करना पड़ता है।
  • रक्षा मंत्रालय अभी भी निजी अभिकर्ताओं को मुख्य ठेकेदारों के रूप में सम्मिलित करने अथवा विभिन्न खरीद श्रेणियों में उन्हें भारतीय उत्पादन एजेंसी के रूप में नामित करने हेतु एक व्यावहारिक प्रणाली विकसित करने में असमर्थ बना हुआ है।
  • रणनीतिक साझेदारी योजना के तहत यह स्पष्ट नहीं है कि मुख्य ठेकेदार रणनीतिक साझेदार को माना जाएगा या भारतीय उत्पादन एजेंसियों को।
  • अनिश्चित नीतिगत वातावरण, असंगतता तथा रक्षा अनुमोदन में विलंब।
  • रक्षा सार्वजनिक क्षेत्रक के कर्मचारियों के प्रभावशाली संघ द्वारा निजी भागीदारी की दिशा में उठाए गए किसी भी कदम को कड़ा विरोध किया जाता है।

सरकार ने नई डिफेन्स प्रोडक्शन पॉलिसी (रक्षा उत्पादन नीति) तैयार की है, जिसके निम्नलिखित प्रावधान हैं:

  • रक्षा क्षेत्र के प्रमुख निजी अभिकर्ताओं को असेंबली कार्य में सहभागी बनाने के अतिरिक्त उन्हें सिस्टम इंटीग्रेटर की भूमिका निभाने हेतु भी प्रोत्साहित करना तथा विकास भागीदारों, विशेषज्ञता रखने वाले विक्रेताओं तथा आपूर्तिकर्ताओं को सम्मिलित करने वाले एक व्यापक परितंत्र की स्थापना करना।
  • सरकार द्वारा सरकारी समझौतों एवं ऋण/वित्तीयन व्यवस्था के माध्यम से निजी उद्योगों द्वारा घरेलू रूप से निर्मित रक्षा उत्पादों के निर्यात को भी बढ़ावा दिया जाएगा।
  • औद्योगिक लाइसेंस के अधीन वस्तुओं की वर्तमान सूची में छंटाई करते हुए ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस का विस्तार किया जाना।
  • स्वचालित मार्ग के तहत वर्तमान FDI की अधिकतम सीमा को 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करना। निवेश को आकर्षित करने और ऑफ़सेट के तीव्र तथा पारदर्शी निष्पादन की सुविधा के लिए ऑफसेट नीति को सुव्यवस्थित किया जाएगा।
  • दो रक्षा उद्योग गलियारों के विकास के लिए 3,000 करोड़ रुपये तक की वित्तीय सहायता तथा उद्योग द्वारा निर्मित साझा परीक्षण सुविधाओं हेतु प्रत्येक के लिए 100 करोड़ रुपये का प्रावधान है।
  • नीति मसौदे के अंतर्गत स्टार्ट-अप्स की रक्षा सम्बन्धी R&D की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के वित्तपोषण हेतु 1,000 करोड़ रुपये के एक कोष का निर्माण किया गया है।
  • रक्षा क्षेत्र में, विशेषतः स्टार्ट-अप्स के लिए, निजी उद्यम पूंजी को प्रोत्साहित किया जाएगा। रक्षा क्षेत्र में स्टार्ट-अप्स को आवश्यक इन्क्यूबेशन (incubation) तथा अवसंरचना समर्थन प्रदान करने हेतु संपूर्ण देश में डिफेन्स इनोवेशन हब स्थापित करने के लिए इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सेलेंस (iDeX) नामक योजना की परिकल्पना की गयी है।

यह एक उद्योग-अनुकूल नीति है, जिससे अपेक्षित है कि यह निजी भागीदारी में वृद्धि करने के साथ ही भारत में रक्षा विनिर्माण क्षमता में सुधार करेगी।

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