भारत में ख़राब भू-अभिलेखों एवं भूमि अधिकारों के सुदृढ़ नहीं होने की समस्या का समाधान
प्रश्न: व्याख्या कीजिए कि भारत में ख़राब भू-अभिलेखों एवं भूमि अधिकारों के सुदृढ़ नहीं होने की समस्या का तत्काल समाधान करना क्यों महत्वपूर्ण है। साथ ही, चर्चा कीजिए कि इस समस्या का समाधान किस प्रकार किया जा सकता है। (150 शब्द)
दृष्टिकोण
- भारत में ख़राब भू-अभिलेखों एवं भूमि अधिकारों के सुदृढ़ नहीं होने की समस्या का समाधान करने की तत्काल आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।
- इस मुद्दे के निवारण के लिए सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- अंत में समस्या के समाधान हेतु कुछ आवश्यक सुझावों की चर्चा कीजिए।
उत्तर
आधुनिक बाजार अर्थव्यवस्था में भूमि अधिकारों की एक सुदृढ़ व्यवस्था की आवश्यकता होती है। हालांकि, ऐसा कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र में भारत की स्थिति अत्यधिक खराब रही है और ख़राब भू-अभिलेखों एवं भूमि अधिकार संबंधी अशक्तता की समस्या का तत्काल समाधान करने की आवश्यकता है, क्योंकि:
- अस्पष्ट भू-अभिलेखों ने भूमि अधिकारों से संबंधित कानूनी विवाद उत्पन्न किए हैं जिससे न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है।
- प्रायः भूमि का उपयोग किसानों द्वारा ऋण प्राप्त करने हेतु प्रतिभूति जमानत के रूप में किया जाता है। विवादित या अस्पष्ट भूमि अधिकार कृषि विकास हेतु पूंजी एवं ऋण की आपूर्ति में व्यवधान उत्पन्न करता है।
- विवादित भूमि अधिकार अचल संपत्ति के लेनदेन में पारदर्शिता के अभाव का कारण बनता है, जिसके परिणामस्वरूप रियल एस्टेट बाजार अक्षम हो जाता है।
- तीव्र शहरीकरण और सभी के लिए आवास जैसी परियोजनाओं के सफल कार्यान्वयन हेतु इस समस्या का तत्काल समाधान करने की आवश्यकता है।
- भारत में भूमि अधिकार विभिन्न दस्तावेजों द्वारा निर्धारित किए जाते हैं, जो कि आनुमानिक प्रकृति के होते हैं एवं इन्हें कानूनी रूप से चुनौती दी जा सकती है।
- प्रमाणित भूमि अधिकार, भूमि की क्षमता में सुधार हेतु निवेश को प्रोत्साहित करती है जिससे भूमि की उत्पादकता में वृद्धि होती है।
सरकार विभिन्न पहलों जैसे कि 2008 में प्रारंभ किए गए राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (National Land Records Modernization Programme: NLRMP) द्वारा कई दशकों से इस समस्या के समाधान हेतु प्रयासरत है। इस योजना का उद्देश्य भूमि सर्वेक्षण पर आधारित रियल टाइम भू-अभिलेखों की एक पारदर्शी एवं एकीकृत प्रणाली का निर्माण करना और सर्वेक्षणों एवं निपटान संबंधी रिकॉर्डों का अद्यतन करना है। इसके अतिरिक्त कई राज्य कागज़ पर अभिलिखित भूअभिलेखों का डिजिटलीकरण करने हेतु निरंतर प्रयासरत हैं जैसे कि कर्नाटक का भूमि प्रोजेक्ट। हालांकि इस दिशा में अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है, जैसे:
- संपत्ति के लेनदेन को पंजीकृत करते समय संपत्ति पंजीकरण की लागत को कम किया जा सकता है, खरीददार को पंजीकरण शुल्क के साथ-साथ स्टाम्प ड्यूटी का भी भुगतान करना पड़ता है जिस कारण लोग पंजीकरण कराने से बचते हैं।
- पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत, संपत्ति का पंजीकरण सभी लेनदेन हेतु अनिवार्य नहीं है, जिससे कई संपत्ति हस्तांतरण पंजीकृत नहीं कराए जाते। इसलिए ये रिकॉर्ड पुराने डाटा को प्रदर्शित करते हैं। अतः इसमें सुधार किया जाना चाहिए।
- अभिलेखों के आधुनिकीकरण की दक्षता एवं गति में वृद्धि तथा उनके डिजिटलीकरण हेतु अत्यधिक कुशल व्यवस्था की स्थापना की आवश्यकता है।
- राज्यों द्वारा शिकायत दर्ज की गई है कि NLRMP से संबंधित स्थितियां इसके तहत उपलब्ध धन के उपयोग को कठिन बनाती हैं। नीति आयोग ने अपने तीन वर्षीय कार्ययोजना में सुझाव दिया है कि योजना में सुधार तथा पर्याप्त वित्त पोषण द्वारा मार्च 2020 तक कम से कम दो-तिहाई राज्यों में अद्यतन डिजिटलीकृत अभिलेखों को तीव्रता के साथ विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है।
इसके अतिरिक्त, भूमि राज्य सूची का विषय है, अतः केंद्र एवं राज्यों दोनों को इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु इस मुद्दे से सम्बंधित रणनीति एवं नीति के संदर्भ में मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।
Read More
- भारतीय कृषि क्षेत्रक में महिलाओं द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका
- भारत में भूमि अधिकारों के लिए एक हितकर कानूनी ढांचे : पट्टे की सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा के बीच प्रत्यक्ष संबंध
- अनुबंध कृषि (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) : भारत में अनुबंध कृषि से संबंधित समस्याओं को हल करने हेतु वर्तमान नियामक संरचना
- MSP की अवधारणा और इसके महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन
- कृषि ऋण माफ़ी : कृषि ऋण माफ़ी की कमियां