भूस्खलन की घटनाओं के लिए उत्तरदायी कारण

प्रश्न: भारत में भूस्खलन के प्रति सुभेद्य क्षेत्रों को निरूपित कीजिए। साथ ही, भूस्खलन की घटना के पीछे उत्तरदायी कारणों को रेखांकित करते हुए, इसके शमन संबंधी कुछ उपायों का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण:

  • भूस्खलन की घटनाओं को संक्षिप्त में समझाते हुए, इसके प्रति सुभेद्य क्षेत्रों को निरूपित कीजिए। 
  • भूस्खलन की घटनाओं के लिए उत्तरदायी कारणों का उल्लेख कीजिए।
  • भूस्खलन के शमन संबंधी उपायों का सुझाव दीजिए।

उत्तरः

शैल समूह, मलबों या मृदा द्रव्यमान का ढाल से नीचे की ओर संचलन भूस्खलन कहलाता है। भूस्खलन एक प्रकार का “वृहत् क्षरण (mass wasting)” होता है, जो गुरुत्वाकर्षण के प्रत्यक्ष प्रभाव में मृदा और शैलों के अधोगामी ढाल संचलन (downslope movement) को दर्शाता है।

इसकी बारम्बारता और इसको नियंत्रित करने वाले कारकों जैसे- भूविज्ञान, भू-आकृतिक कारक, ढाल, भूमि उपयोग, वनस्पति आवरण और मानवीय गतिविधियों के आधार पर भारत को विभिन्न भूस्खलन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है:

  • अत्यधिक सुभेद्यता वाले क्षेत्र: इस क्षेत्र के अंतर्गत हिमालयी क्षेत्र, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पश्चिमी घाट, नीलगिरी और पूर्वोत्तर क्षेत्र शामिल हैं।
  • अधिक सुभेद्यता वाले क्षेत्र: इस क्षेत्र में अत्यधिक सुभेद्यता वाले क्षेत्र शामिल हैं, किन्तु भूस्खलन को नियंत्रित करने वाले कारकों की गहनता और बारम्बारता में भिन्नता पाई जाती है। असम के मैदानों को छोड़कर सभी हिमालयी राज्य और पूर्वोत्तर क्षेत्रों के राज्य इस क्षेत्र में शामिल हैं।
  • मध्यम से लेकर अधिक सुभेद्यता तक के क्षेत्र: इस क्षेत्र में ट्रांस-हिमालय के लद्दाख और स्पीति (हिमाचल प्रदेश) के कम वृष्टि वाले क्षेत्र, अरावली, पश्चिमी और पूर्वी घाटों के और दक्कन पठार के वृष्टि छाया क्षेत्र शामिल हैं।
  • अन्य क्षेत्र: इसके अतिरिक्त भारत के अन्य क्षेत्र विशेष रूप से राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल (दार्जिलिंग जिले को छोड़कर), असम (कार्बी आंग्लोंग को छोड़कर) और दक्षिणी राज्यों के तटीय क्षेत्र भूस्खलन की दृष्टि से

सुरक्षित हैं। अन्य आपदाओं के विपरीत, जो व्यापक पैमाने पर समष्टिगत अथवा प्रादेशिक कारकों द्वारा नियंत्रित होती हैं, भूस्खलन मुख्य रूप से स्थानीय कारकों द्वारा नियंत्रित होता है। इन कारकों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • हिमालय के संदर्भ में युवा पर्वतीय स्थलाकृति।
  • पश्चिमी घाट और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में तीव्र कगार के साथ उच्च वर्षा।
  • गहन मानवीय गतिविधियां विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों और बांधों का निर्माण करना। 
  • झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में खनन गतिविधियां।
  • उत्तरी हिमालय, पश्चिमी घाट आदि में भूकंप की घटनाएं।
  • पर्वतीय ढलानों पर दोषपूर्ण पद्धतियों का अभ्यास और वनोन्मूलन।

भूस्खलन जिन क्षेत्रों में वे घटित होते हैं, वहां जीवन में अव्यवस्था का कारण बनते हैं। भूस्खलन के कारण नदी मार्गों में परिवर्तन से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है और जान-माल की हानि भी हो सकती है। ये संचार माध्यमों और परिवहन पर प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न करते हैं। इसलिए भूस्खलन के दौरान हुई क्षति को कम करने हेतु क्षेत्र विशिष्ट शमन उपायों की आवश्यकता होती है। कुछ उपायों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • अधिक सुभेद्यता वाले क्षेत्रों में सड़क और बांध बनाने जैसे निर्माण कार्य तथा अन्य विकासात्मक गतिविधियों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। इन क्षेत्रों में कृषि नदी घाटियों और मध्यम ढलान वाले क्षेत्रों तक सीमित होनी चाहिए तथा बड़ी बस्तियों के विकास पर नियंत्रण होना चाहिए।
  • वास्तविक निर्माण कार्यों को आरंभ करने से पूर्व भूमि की स्थिरता सुनिश्चित करके भूस्खलन के खतरे को कम किया जा सकता है। स्थिरता सुनिश्चित करने के उपायों में अपारगम्य झिल्ली (impermeable membrane) से भूमि को कवर करना, सतही जल के स्रोतों के मार्ग को भूस्खलन वाले क्षेत्रों से परिवर्तित करना, भूजल स्रोतों के दोहन को कम करना और सिंचाई को कम करना शामिल हैं।
  • भूस्खलन उपायों के पूरक के रूप में व्यापक स्तर पर वनीकरण कार्यक्रमों को बढ़ावा देने और जल प्रवाह को कम करने के लिए बांधों के निर्माण जैसे कार्य किए जाने चाहिए।
  • झूम कृषि (स्लैश और बर्न / स्थानांतरी कृषि) के नकारात्मक प्रभाव को कम करने हेतु पूर्वोत्तर पहाड़ी राज्यों में सीढ़ीनुमा कृषि (Terrace farming) को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

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