बजट निर्माण की प्रक्रिया से संबंधित मुद्दों की व्याख्या

प्रश्न: वर्तमान बजट निर्माण प्रक्रिया में आमूल परिवर्तन करने की आवश्यकता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि न तो इसका परामर्श का आधार व्यापक है, न ही पर्याप्त पारदर्शी है एवं न ही यह विभिन्न हितधारकों की मांगों का आकलन और आवंटन करने में ही प्रभावी है। परीक्षण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • वर्तमान बजट निर्माण की प्रक्रिया से संबंधित मुद्दों की व्याख्या कीजिए। प्रासंगिक तथ्यों के साथ अपने तर्कों को पुष्ट करने का प्रयास कीजिए।
  • वर्तमान बजट प्रक्रिया को एक ही समय में अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाने के लिए उपयुक्त समाधान बताइए।

उत्तर

हाल ही में, भारत ने 2017 के ओपन बजट सर्वे में 100 में से 48 अंक प्राप्त किये हैं जो वार्षिक बजट प्रक्रिया में पारदर्शिता के निम्न स्तर को दर्शाता है। इसी प्रकार, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया (TI) के अनुसार बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों की तुलना में भारत की बजटीय प्रक्रिया कम पारदर्शी है।

बजट तैयार करने से पूर्व, वित्त मंत्रालय द्वारा विशेषज्ञों और विभिन्न हितधारकों के विचारों को ध्यान में रखा जाता है। इसके साथ ही विशेषज्ञ निकायों सहित किसानों, उद्योगों, शैक्षणिक समुदायों आदि जैसे विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ नियमित बैठकें आयोजित होती हैं। हालांकि, सामान्य जन के विचारों को प्रायः अनसुना कर दिया जाता है और सामान्य नागरिक मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए बजट या विभिन्न निहित हितों की बजट मांगों का एक प्राप्तकर्ता मात्र होता है। बजटीय प्रक्रिया के इस पहलू की पहचान करते हुए, प्रधानमंत्री ने इस संरचना में आवश्यक परिवर्तन की बात कही है ताकि आम लोगों के विचारों को लेकर बजट निर्माण प्रक्रिया को और अधिक “समाज अनुकूल” बनाया जा सके।

मंत्रालयों द्वारा की जाने वाली मांगे एवं वित्त मंत्रालय द्वारा अंतिम आवंटन इसका एक अन्य पक्ष है। संसाधनों की कमी एवं प्रतिस्पर्धी मांगों को देखते हुए, प्रत्येक मंत्रालय अपने आकलनों को बढ़ा कर दिखाता है ताकि उसे अधिक से अधिक संसाधन प्राप्त हो सकें। वित्त मंत्रालय भी इस रणनीति से परिचित है और इस प्रकार, आगामी चर्चाओं में कई बार वैध मांगों को भी दरकिनार कर दिया जाता है अथवा वास्तविक आवश्यकताओं के अनुरूप आवंटन नहीं किया जाता। अतः आकलन और आवंटन की प्रक्रिया में अनेक कमियां व्याप्त हैं।

भारत में मौजूदा बजट निर्माण प्रक्रिया से संबंधित अन्य मुद्दे:

  • पारदर्शिता में कमी: वर्तमान में, सरकार द्वारा बजट निर्माण की प्रक्रिया गुप्त तरीके से संपन्न होती है। यहाँ तक कि, मध्यावधि समीक्षाओं को अनुशासित ढंग से संकलित नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए 2016 में किसी मध्यावधि समीक्षा का प्रकाशन नहीं हुआ था।
  • राज्य संबंधित बजट: भारत में राज्यों के बजट अबोधगम्य होते हैं, इस कारण लोक नीतियों के निर्माण में सामान्य नागरिकों की भागीदारी कठिन हो जाती है।
  • टॉप डाउन दृष्टिकोण: त्रिस्तरीय शासन के अंतर्गत स्थापित पंचायतों और नगर पालिकाओं के स्थानीय शासन को बजट निर्माण के किसी भी चरण में शामिल नहीं किया जाता है।
  • अवधि: बजट निर्माण की प्रक्रिया अत्यधिक लंबी है। हालांकि बजट पर चर्चा करने की औसत समयावधि 1950 के दशक के 123 घंटे से घटकर पिछले दशक में 41 घंटे रह गई है।
  • जेंडर बजटिंग: हालाँकि वर्ष 2005 से भारत में जेंडर रिस्पॉन्सिव बजट की प्रक्रिया को अपनाया गया है, परन्तु यह केवल वित्तीय अर्थों तक सीमित है और इसमें लिंग संबंधित डेटा संग्रह और लिंग आधारित परिणामों पर पर्याप्त डाटा नहीं दिया गया है।
  • गैर-भागीदारी: बजट निर्माण की प्रक्रिया के दौरान आम जनता और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श और उनकी भागीदारी का अभाव रहा है।
  • गिलोटिन का निरंतर उपयोग: सार्वजनिक महत्व के विषयों पर चर्चा से बचने के लिए ‘गिलोटिन’ का बजटीय प्रक्रिया में प्रायः दुरूपयोग किया जाता है।
  • विपक्षी दलों की भूमिका: सामान्यतः कोई भी प्रस्ताव बहुमत की सरकार के अनुसार ही पारित किया जाता है और विपक्षी दलों द्वारा किए गए संशोधनों की उपेक्षा की जाती है।
  • राज्यसभा की भूमिका: बजट के पारित होने में राज्यसभा की कोई सक्रिय भूमिका नहीं होती। निम्न सदन द्वारा इसके परामर्श को शायद ही कभी स्वीकृत किया जाता है।
  • सहकारी संघवाद की कमी: संघ की बजट नीतियों को तैयार करते समय राज्य सरकारों की आवश्यकताओं को ध्यान में नहीं रखा जाता है।

इस प्रकार, निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से बजट निर्माण की प्रक्रिया को और अधिक सहभागितापूर्ण और पारदर्शी बनाया जा सकता है:

  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: प्रौद्योगिकी का उपयोग कर बजट निर्माण प्रक्रिया की अवधि को कम करने के साथ-साथ बजट निर्माण प्रक्रिया में नागरिकों की भागीदारी और पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया जा सकता है।
  • बॉटम अप दृष्टिकोण: केन्द्रीय बजटीय आवंटन में जिला और राज्य योजनाओं को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
  • यथार्थ परिणाम आधारित बजट प्रक्रिया: परिणाम आधारित बजट में योजनाओं की प्रभावशीलता पर नागरिकों की प्रतिक्रिया को शामिल करने की आवश्यकता है। बजट निर्माण के चरणों का विवरण सार्वजनिक परीक्षण हेतु पब्लिक डोमेन में रखा जाना चाहिए।
  • विषयगत रिपोर्टों तक सार्वजनिक पहुँच : राजस्व और व्यय से संबंधित निगरानी रखने वाली रिपोर्टों के माध्यम से निर्माताओं, मीडिया और जनता को नियमित सूचना प्रदान की जा सकती है।
  • न्यूनतम कार्य अवधि का निर्धारण: ऐसा किया जाना इसलिए आवश्यक है क्योंकि बजट सत्र के दौरान, निम्न सदन के निरंतर स्थगन से महत्वपूर्ण अनुदान संबंधित मांगों पर होने वाली चर्चाएं बाधित होती हैं।
  • सरलीकृत भाषा: बजट दस्तावेज को सरलीकृत रूप में एवं सभी आधिकारिक भाषाओं में उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
  • सहकारी संघवाद: राज्य सभा को बजट पर मात्र चर्चा करने की शक्ति प्राप्त है। इस संबंध में राज्य सभा को और अधिकार प्रदान किए जाने चाहिए और उनकी अनुशंसाओं को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए।

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