‘उदार’ और ‘रूढ़िवादी’ : व्यक्ति पर लेबल अथवा अभिवृत्ति की लेबलिंग
प्रश्न: लोगों पर सरलता से उदार या रूढ़िवादी होने का लेबल लगाना इस बात की अनदेखी करना है कि किसी व्यक्ति के भिन्न-भिन्न मुद्दों पर अलग-अलग विचार हो सकते हैं। सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
दृष्टिकोण
- ‘उदार’ और ‘रूढ़िवादी’ शब्दों की अपनी समझ के साथ व्याख्या करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।
- व्याख्या कीजिए कि किसी व्यक्ति पर लेबल लगाना किसी विशेष उद्देश्य/वस्तु के प्रति विचार अथवा अभिवृत्ति की लेबलिंग करने से किस प्रकार भिन्न है।
- विभिन्न उदाहरणों के साथ पुष्टि कीजिए।
उत्तर
विभिन्न लोगों के अनेक मुद्दों पर भिन्न एवं पृथक मत होते हैं। सामान्यतः लोग अपने उदार या रूढ़िवादी होने की समझ के आधार पर दूसरों पर उदार या रूढ़िवादी होने का लेबल लगाते हैं। मूल्य निर्णयन की यह प्रक्रिया विसंगतियों से युक्त है। व्यक्ति की रूढ़िबद्धिता (स्टीरियोटाइपिंग) करने के अतिरिक्त, यह लेबलिंग इस तथ्य की उपेक्षा करती है कि व्यक्ति का विचार एक मुद्दे पर ‘उदार’ और दूसरे पर ‘रूढ़िवादी’ हो सकता है।
व्युत्पत्ति-विषयक अंतर और इन शब्दों के अर्थों के विकास की प्रक्रिया, लेबलिंग में व्याप्त असंगति की व्याख्या करने में सहायता करती है। एक ‘रूढ़िवादी’ व्यक्ति वह है जो परिवर्तन विरोधी है और यथास्थिति को बनाए रखना चाहता है। एक ‘उदार’ व्यक्ति वह है जो प्रायः तीव्र गति से परिवर्तन का पक्षधर होता है। उदाहरण के लिए, 17 वीं-18 वीं शताब्दी में, जब यह विभेद सामने आया तो ऐसे लोग जो विद्यमान व्यवस्था और पदानुक्रम को बनाए रखना चाहते थे, उन्हें रूढ़िवादी कहा गया; उदारवादी इस व्यवस्था और विशेष रूप से अर्थव्यवस्था पर राजा के नियंत्रण को समाप्त करना चाहते थे। उन्होंने मुक्त बाजार वाले दर्शन (अहस्तक्षेप की नीति: aissez-faire), न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप तथा अधिक समानता युक्त एवं शोषण मुक्त समाज का समर्थन किया।
आधुनिक समय में, परिभाषा तो वही बनी हुई है किन्तु यथास्थिति परिवर्तित हो गई है। सामान्यतः, जो लोग व्यवस्था से लाभान्वित होते हैं, वे उसे उसी तरह बनाए रखना चाहते हैं। मुक्त बाजार प्रणाली उन लोगों की बेहतर पसंद होगी जो इससे लाभान्वित हुए हैं जबकि एक उदारवादी इसे परिवर्तित करना चाहेगा। यह परिवर्तन राज्य आधारित अर्थव्यवस्था (समाजवादी/साम्यवादी), अधिक विनियमन के साथ राज्य के कम हस्तक्षेप, संकल्प-स्वातंत्र्य का उपयोग करने हेतु लोगों की क्षमता का निर्माण करने के लिए राज्य के हस्तक्षेप आदि के रूप में हो सकता है। ये सभी उदारवाद के विभिन्न प्रतिरूप हैं।
किसी व्यक्ति की अभिवृत्ति एक वस्तु/पक्ष के प्रति उदार तथा दूसरे के प्रति रूढ़िवादी हो सकती है। उदाहरण के लिए, समृद्ध लोगों पर कर वृद्धि का समर्थन करने वाला व्यक्ति वर्तमान स्थिति का विरोध करता है और इस प्रकार उसे उदार अभिवृत्ति वाला कहा जा सकता है। वही व्यक्ति मृत्युदंड का समर्थन भी कर सकता है और ऐसे में उस पर रूढ़िवादी होने का लेबल लगा दिया जाएगा।
अतः किसी व्यक्ति पर ‘उदार’ या ‘रूढ़िवादी’ होने का लेबल लगाना अशिष्ट स्टीरियोटाइपिंग और जटिल मानव व्यक्तित्व का सरलीकरण करना है। किसी व्यक्ति के धार्मिक दृष्टिकोण के मामले में भी ऐसा ही देखा जा सकता है। साधारणतया, एक धार्मिक रूप से रूढ़िवादी व्यक्ति परिवर्तन विरोधी होगा तथा एक उदारवादी इसे पूर्णतया परिवर्तित करना चाहेगा। तथापि, कोई व्यक्ति सुदृढ़ धार्मिक मान्यताएं रखते हुए भी ऐसे विचारों वाला हो सकता है जिससे अन्य उसे पारंपरिक रूप से उदारवादी मानें। उदाहरण के लिए, एक धर्मनिष्ठ मुस्लिम भी पूर्ण विश्वास के साथ यह विचार रख सकता है कि हिजाब उत्पीड़न का प्रतीक है और एक ड्रेस कोड के रूप में उसकी अनिवार्यता का विरोध कर सकता है।
उसी प्रकार, एक गैर-मुस्लिम भी हिजाब का विरोध कर सकता है, परंतु समान स्वतंत्रता के लिए अन्य महिलाओं के प्रति असहिष्णु बना रह सकता है। साथ ही, एक व्यक्ति जो धार्मिक मामलों में उदार हो, हिजाब के प्रति रूढ़िवादी अभिवृत्ति भी रख सकता है। संभव है कि वह खुले तौर पर इसका समर्थन न करे किन्तु जो लोग इसे अनिवार्य बनाना चाहते हैं उनका समर्थन करे। इसके अतिरिक्त, संभव है कि कोई ‘उदार’ दिखने वाला देश हिजाब के प्रयोग को राष्ट्रीय सुरक्षा के बहाने प्रतिबंधित करे, जबकि इसके पीछे किसी विदेशी संस्कृति के लोगों के लिए यह छिपा संदेश हो कि उस देश में उनके लिए कोई जगह नहीं है।
यहां तक कि विभिन्न अध्ययनों ने भी लोगों में विरोधाभासी अभिवृत्ति के अस्तित्व की पहचान की है। अमेरिका में, जो लोग स्वयं को रूढ़िवादी कहते हैं, वे गर्भपात, मृत्यु दंड जैसे मुद्दों पर दृढ़तापूर्वक उदार मत रखते हैं। इसी प्रकार, भारत में युवाओं के मध्य सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पता चला है कि ऐसे युवा जिनकी आमतौर पर एक उदार पहचान होती है, व्यक्तिगत पसंद के रूप में गोमांस के सेवन और समलैंगिकता जैसे मुद्दों को सहजता से स्वीकार नहीं करते।
अधिकांश लोग आधुनिकता एवं परंपरा के दोहरे विचारों का उपयोग करते हैं। लोग कुछ पक्षों के संबंध में उदार तथा अन्य के परिप्रेक्ष्य में रूढ़िवादी हो सकते हैं। सार्वजनिक जीवन का एक अच्छा उदाहरण महात्मा गांधी हैं। एक तरफ उनके पास आर्थिक, राजनीतिक इत्यादि सभी क्षेत्रों में समान रूप से महिलाओं और पुरुषों को शामिल करने की उदार अभिवृत्ति थी, जबकि दूसरी तरफ वे वर्ण व्यवस्था के प्रबल समर्थक थे।
यह अनेकांतवाद के सिद्धांत के अनुरूप है, जिसमें कहा गया है कि अंतिम सत्य और वास्तविकता जटिल होती है और इसके कई पहलू हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, उदारवादी और रूढ़िवादी होने के मानदंड भी समय के साथ परिवर्तित हो सकते हैं। सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियाँ स्वयं भी विभिन्न कारकों, जैसे-सामाजीकरण, सूचना का प्रसार, सोशल मीडिया आदि के द्वारा परिवर्तित हो जाती हैं। इस प्रकार, किसी व्यक्ति की लेबलिंग करना असंभव है। अधिक से अधिक किसी विशेष मुद्दे के प्रति किसी व्यक्ति की अभिवृत्ति की लेबलिंग की जा सकती है।
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