‘संसाधन अभिशाप’ की परिघटना: विश्व एवं भारत
प्रश्न: विश्व एवं भारत से यथोचित उदाहरण प्रस्तुत करते हुए ‘संसाधन अभिशाप’ की परिघटना का विश्लेषण कीजिए।
दृष्टिकोण
- ‘संसाधन अभिशाप’ का अर्थ समझाते हुए उत्तर आरम्भ कीजिए।
- इसके प्रभाव की संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- जहाँ आवश्यक हो वहां उपयुक्त उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- आगे की राह प्रस्तुत करते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।
उत्तर
‘संसाधन अभिशाप’ एक विरोधाभासी स्थिति है जिसमें गैर-नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता वाले देशों द्वारा गतिहीन आर्थिक विकास या आर्थिक संकुचन का भी अनुभव किया जाता हैं। इसे “पैराडॉक्स ऑफ़ प्लेंटी” (प्रचुरता का विरोधाभास) के रूप में भी जाना जाता है। यह स्थिति विशेष रूप से वेनेजुएला जैसे तेल उत्पादक देशों के मामले में देखी जा सकती है। इसका कारण संसाधन आय के व्यय करने के तरीके, सरकार की प्रणाली, संस्थागत गुणवत्ता, शीघ्र बनाम विलंबित औद्योगिकीकरण आदि हैं।
‘संसाधन अभिशाप’ का प्रभाव:
- डच रोग (Dutch disease): किसी विशिष्ट क्षेत्रक (उदाहरणार्थ – प्राकृतिक संसाधन) के आर्थिक विकास में वृद्धि और अन्य क्षेत्रकों में गिरावट की स्थिति।
- राजस्व अस्थिरता: यह स्थिति इसलिए उत्पन्न होती है क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों की कीमतों में व्यापक उतार-चढ़ाव होता रहता हैं।
- एन्क्लेव प्रभाव (Enclave effects): किसी विशिष्ट क्षेत्र से अस्थायी रूप से अत्यधिक लाभ प्राप्ति के क्रम में प्राधिकरणों द्वारा आर्थिक विविधीकरण को विलंबित या उपेक्षित किया जा सकता है।
- मानव पूंजी की उपेक्षा (Crowding out of human capital): प्राकृतिक संसाधन क्षेत्र से प्राप्त होने वाले अल्पावधि लाभ के कारण शिक्षा की उपेक्षा की जा सकती हैं क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि इसकी तत्काल कोई आवश्यकता नहीं है।
- हिंसा और संघर्ष: शासन की गुणवत्ता और आर्थिक प्रदर्शन की उपेक्षा करने से संघर्षों की संभावना बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए – ईरान और कुवैत पर इराक का आक्रमण; चाड पर लीबिया द्वारा बार-बार किया जाने वाला आक्रमण आदि।
भारत से उदाहरण:
ओडिसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य उत्पादक खनिजों में समृद्ध हैं। इन तीन राज्यों में समग्र रूप से भारत के कोयला भंडार का 70 प्रतिशत, उच्च श्रेणी के लौह अयस्क का 80 प्रतिशत, बॉक्साइट का 60 प्रतिशत और लगभग संपूर्ण क्रोमाइट्स भंडार विद्यमान है। ये राज्य वनावरण में भी समृद्ध हैं।
खनन पर अत्यधिक निर्भरता के परिणामस्वरूप इन राज्यों में कृषि और अन्य क्षेत्रों का विकास बाधित हुआ है। साथ ही यहाँ संसाधन निष्कर्षण का लाभ समाज के सभी वर्गों तक नहीं पहुंच पाया है, भ्रष्टाचार और अवैध नियमों को बढ़ावा मिला है। इसके अतिरिक्त, ये क्षेत्र वामपंथी उग्रवाद से भी अत्यधिक प्रभावित हैं।
हालांकि, इन क्षेत्रों में भावी विकास की अत्यधिक संभावनाएं विद्यमान हैं। सकारात्मक संस्थागत परिवर्तन, क्षमता निर्माण, भ्रष्टाचार पर प्रतिबंध लगाने हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, आर्थिक विविधीकरण, सामाजिक सामंजस्य को प्रोत्साहित करने की दिशा में प्रयास के माध्यम से इन क्षेत्रों में सकारात्मक परिवर्तन को बढ़ावा दिया जा सकता है।
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