भारत की “पड़ोस पहले’ की नीति : भारत की “पड़ोस पहले” की नीति का आमूलचूल निरीक्षण

प्रश्न: यह तर्क दिया जाता है कि मालदीव के हालिया घटनाक्रम ने भारत की “पड़ोस पहले’ की नीति को कसौटी पर कसा है। इस संदर्भ में, क्या आप मानते हैं कि इस प्रकार के घटनाक्रमों से निपटने के लिए भारत की पड़ोस नीति का आमूलचूल निरीक्षण करके उसे दुरुस्त करने की आवश्यकता है?

दृष्टिकोण

  • मालदीव में घटित हालिया घटनाक्रम पर प्रकाश डालते हुए उल्लिखित कीजिए कि इन घटनाक्रमों ने भारत की “पड़ोस पहले” की नीति को कसौटी पर कैसे कसा है।
  • भारत की “पड़ोस पहले” की नीति का आमूलचूल निरीक्षण करते हुए उसे दुरुस्त करने की आवश्यकता पर विचार कीजिए।

उत्तर

स्वतंत्रता के पश्चात्, भारत की प्रत्येक उत्तरवर्ती सरकारों ने विदेश नीति में पड़ोस के महत्व को स्वीकार किया है। ‘पड़ोस पहले’ की नीति की दिशा में किया गया हालिया प्रयास, 2014 में नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के अवसर पर पड़ोसी देशों के नेताओं को दिए गए निमंत्रण से परिलक्षित होता है। हालाँकि, सामान्य रूप से पड़ोसी देशों में घटित हालिया घटनाक्रम और विशेष रूप से मालदीव के सन्दर्भ में, भारत की ‘पड़ोस पहले’ की नीति के संबंध में प्रश्न उठाए गए हैं।

मालदीव में घटित प्रमुख घटनाक्रम

  • लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित प्रथम राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद के निष्कासन के बाद से मालदीव में घरेलू अशांति व्याप्त रही। यह अशांति हालिया घटनाक्रमों में वर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के विरुद्ध न्यायपालिका द्वारा प्रतिकूल निर्णय की प्रतिक्रिया में आपातकाल लगाए जाने से भी स्पष्ट होती है।
  • इस अवधि में दिसंबर 2017 में संपन्न FTA सहित मालदीव में चीन की भागीदारी में भी वृद्धि देखी गई है।
  • मालदीव ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में अपनी भागीदारी की पुष्टि की है।
  • हाल ही में उत्पन्न संकट में मालदीव द्वारा चीन के साथ-साथ पाकिस्तान और सऊदी अरब को भी सहायता हेतु आमंत्रित किया गया।

मालदीव के साथ-साथ नेपाल जैसे देशों के साथ संबंधों को भी कसौटी पर कसा जा रहा है। भारत की पड़ोस नीति का परीक्षण इन घटनाक्रमों के आलोक में किया गया है। हालाँकि, यह नीति समानता, संप्रभुता और अहस्तक्षेप के प्रबल सिद्धांतों पर आधारित है और इसमें कोई बड़ा अमूलचूल परिवर्तन करने की बजाय कुछ सुधारात्मक उपाय करने की आवश्यकता है जैसे:

  • पड़ोसियों के साथ व्यवहार में पैरा-डिप्लोमेसी जैसे तमिलनाडु की श्रीलंका, पश्चिम बंगाल की बांग्लादेश आदि के साथ वार्ता, को अपनाना।
  • पड़ोसियों के साथ प्रमुख मुद्दों का फ़ास्ट ट्रैक समाधान जैसे बांग्लादेश के साथ तीस्ता जल विवाद, श्रीलंका के साथ मछुआरों का मुद्दा आदि।
  • पड़ोसियों के साथ द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि क्योंकि चीन स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स में अधिक मोती (पर्ल्स) अर्थात क्षेत्रों को जोड़ने के लिए अपनी आर्थिक शक्ति का प्रयोग कर रहा है।
  • भारतीय विदेश नीति के ‘सॉफ्ट पावर’ के आयाम को संस्थागत बनाना। हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करने की तत्काल आवश्यकता है।
  • सार्क और बिम्सटेक जैसी क्षेत्रीय पहलों की सफल कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करना।
  • भारत को अपने पड़ोसियों की भावनाओं का सम्मान करने और उनके विकास में एक सक्षम सहभागी की भूमिका निभाने की आवश्यकता है।
  • मालदीव के संदर्भ में, भारत को अन्य लोकतांत्रिक देशों और संयुक्त राष्ट्र की सहायता से विधि के शासन का सम्मान करने एवं उसे बनाए रखने के लिए मौजूदा शासन पर दबाव बनाने की आवश्यकता है। भारत को मालदीव में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने हेतु कार्य करना चाहिए।

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