ग्रीन हाउस गैसों (GHG) : पारितंत्रों के संरक्षण तथा पुनरुद्धार के लिए उपायों
प्रश्न: ग्रीन हाउस गैसों (GHG) के उत्सर्जन में वृद्धि, तटीय एवं समुद्री पारितंत्र को कैसे प्रभावित करती है? ऐसे सुभेद्य पारितंत्रों के संरक्षण तथा पुनरुद्धार के लिए अपनाए जा सकने वाले विभिन्न उपायों पर प्रकाश डालिए।
दृष्टिकोण
- ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन के कारणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- तटीय और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके प्रभावों की चर्चा कीजिए।
- इन पारिस्थितिक तंत्रों को क्षतिग्रस्त होने से बचाने हेतु आवश्यक विभिन्न उपायों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
पृथ्वी के वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) के स्तर में वृद्धि, मुख्यतः मानवजनित गतिविधियों जैसे कि जीवाश्म ईंधनों का दहन, औद्योगिक उत्सर्जन, वनोन्मूलन, पशु पालन आदि के कारण हो रही है। यह पृथ्वी के जलवायु में परिवर्तन के लिए उत्तरदायी है। चूंकि वैश्विक तापन अब 1000 मीटर की गहराई तक भी प्रेक्षित किया जा रहा है अतः ऐसी स्थिति में आर्द्रभूमि, ज्वारनदमुख (estury) और प्रवाल भित्तियों जैसे महत्वपूर्ण तटीय पारिस्थितिकी तंत्र वैश्विक तापन एवं जलवायु परिवर्तन के प्रति विशेष रूप से सुभेद्य हैं।
CO2 और मीथेन जैसी GHGs का उत्सर्जन वैश्विक तापन में योगदान देता है तथा निम्नलिखित प्रकार से तटीय और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है:
- महासागरीय जल के भौतिक और रासायनिक गुण: GHGs, वैश्विक तापन को प्रेरित करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप समुद्री सतह के तापमान, महासागरों के अम्लीकरण और वि-ऑक्सीजनीकरण में वृद्धि होती है। इसके फलस्वरूप महासागरीय परिसंचरण और रासायनिक संरचना में परिवर्तन, समुद्री जल स्तर में वृद्धि और तूफान की तीव्रता बढ़ जाती है।
- समुद्री जीवन: महासागरीय जल के भौतिक और रासायनिक गुणों में होने वाले परिवर्तन का समुद्री प्रजातियों की विविधता और बहुलता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। महासागरों के अम्लीकरण से प्रवाल, पादप प्लवकों और शेल्फिश (सीपदार मछली) की कवच (शेल्स) व अस्थि-पंजर संबंधी (स्केलटल) संरचनाओं के निर्माण की क्षमता में कमी आती है।
- मानव बस्तियां: समुद्र के स्तर में वृद्धि से तटीय अपरदन, लवणीय जल का प्रवेश, आवास विखंडन और तटीय मानव बस्तियों की क्षति होती है।
- सुरक्षा: वैश्विक तापन के प्रभावों से विश्व की आबादी के लगभग 40% तटीय समुदायों की भौतिक, आर्थिक और खाद्य सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो सकता है।
- द्वीपीय राष्ट्रों के लिए खतरा: लघु द्वीपीय विकासशील राज्यों (Small Island Developing States), जैसे- तुवालु, मॉरीशस, मालदीव आदि के जलमग्न होने का खतरा है।
तटीय और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र द्वारा कार्बन भंडारण, ऑक्सीजन उत्पादन, भोजन और आय सृजन जैसी महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान की जाती हैं। समस्या की गंभीरता को देखते हुए, समुद्री और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के भावी क्षरण को रोकने हेतु संरक्षण तथा पुनरुद्धार के लिए अपनाए जा सकने वाले विभिन्न उपायों की तत्काल आवश्यकता है।
आवश्यक उपाय:
- समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (Marine Protected Areas) की स्थापना: IUCN वर्ल्ड कांग्रेस कंज़र्वेशन में, IUCN के सदस्यों ने 2030 तक पृथ्वी के 30% महासागरों के संरक्षण हेतु एक संकल्प को स्वीकृति प्रदान की थी। यह पारिस्थितिक और जैविक रूप से महत्वपूर्ण समुद्री आवासों का संरक्षण करने में सहायक होगा। साथ ही, पर्यावरणीय क्षरण को रोकने के लिए मानवीय गतिविधियों को विनियमित किया जा सकता है।
- इन पारिस्थितिक तंत्रों का अन्य भूमि उपयोगों हेतु परिवर्तन या रूपांतरण को रोकने के लिए नीतियां बनाई जानी चाहिए। उदाहरण के लिए, भारत ने इस संबंध में तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) दिशा-निर्देशों को अधिसूचित किया है।
- महासागरों और तटों को प्रभावित करने वाले सभी उद्योगों में (जिसमें मत्स्य पालन और पर्यटन उद्योग शामिल हैं) संधारणीय पद्धतियों को लागू करने के लिए देशों के मध्य अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। उदाहरण के लिए, मैंग्रोव्स फॉर द फ्यूचर एक बहु-राष्ट्रीय साझेदारी है जो संधारणीय विकास के लिए तटीय पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण में निवेश को बढ़ावा देती है।
- उपयुक्त शमन और अनुकूलन रणनीतियों को अपनाने हेतु वैज्ञानिक अनुसंधान किए जाने चाहिए। इस संदर्भ में IUCN और IPCC की सहयोगात्मक संलग्नता महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर सकती है।
स्थायी प्रबंधन, संरक्षण तथा तटीय और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र का पुनरुद्धार वस्तुतः पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं (जिस पर लोग निर्भर हैं) के निरंतर प्रबंधन को समर्थन प्रदान करने हेतु महत्वपूर्ण है। इन सुभेद्य पारिस्थितिकी प्रणालियों के स्वास्थ्य को संरक्षित करने हेतु एक निम्न कार्बन उत्सर्जन युक्त संवृद्धि मार्ग अपरिहार्य है।
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