पितृसत्तात्मकता की अवधारणा : आर्थिक निर्भरता नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक आदतों को भी संचालित करती है

प्रश्न: पितृसत्तात्मकता केवल आर्थिक निर्भरता नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक आदतों को भी संचालित करती है तथा पुरुषों एवं महिलाओं की मानसिकता पर समान रूप से हावी रहती है। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • पितृसत्तात्मकता की अवधारणा और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसके अर्थ की संक्षिप्त चर्चा कीजिए। 
  • उदाहरण प्रस्तुत करते हुए समाज के दैनिक जीवन में पितृसत्तात्मकता के स्वरुप का वर्णन कीजिए। 
  • वर्णन कीजिए कि किस प्रकार यह आर्थिक प्रभुत्व का उल्लंघन करती है और सांस्कृतिक आदतों को भी संचालित करती है।
  • चर्चा कीजिए कि यह किस प्रकार यह पुरुषों एवं महिलाओं की मानसिकता पर समान रूप से हावी रहती है।
  • निष्कर्ष में, पितृसत्तात्मकता के दुष्प्रभावों को समाप्त करने के लिए कुछ परिवर्तनों को सुझाव दीजिए।

उत्तर

पितृसत्तात्मकता का अर्थ एक परिवार के अंतर्गत महिलाओं एवं बच्चों पर पुरुष प्रभुत्व की अभिव्यक्ति और संस्थागतकरण से है, इसके अतिरिक्त इसे सामान्यतः समाज में महिलाओं पर पुरुष प्रभुत्व के विस्तार के रूप में संदर्भित किया जाता है। समाज में ऐसी पूर्वावधारणा व्याप्त रही है कि महिलाओं पर पुरुषों की प्राकृतिक श्रेष्ठता विद्यमान है, और जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं को पुरुषों के अधीन माना जाता है।

इसके परिणामस्वरूप, पितृसत्तात्मकता महिलाओं की अनिवार्य घरेलू प्रवृति, उनकी भूमिकाओं का लिंग आधारित पृथक्करण तथा पुरुषों पर उनकी निर्भरता को बढ़ावा देती है।

यह निम्नलिखित रूप से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में प्रकट होता है:

  • विषम लिंग अनुपात 
  • कन्या शिशु हत्या का व्यापक प्रचलन
  • घरेलू हिंसा अथवा लैंगिक उत्पीड़न द्वारा महिलाओं के प्रति हिंसा
  • महिलाओं का निम्न राजनैतिक प्रतिनिधित्व
  • महिलाओं द्वारा कार्यबल में निम्न भागीदारी
  • महिला श्रमिकों का ‘पिंक कॉलर’ नौकरियों जैसे नर्सिंग, प्राथमिक विद्यालय के शिक्षिका इत्यादि में अधिक केन्द्रित होना।

पितृसत्तात्मकता महिलाओं की कम क्रियाशीलता एवं शोषक स्थिति के संबंध में पुरुषों एवं महिलाओं के मध्य विद्यमान जैविक विभेदों को बढ़ावा देती है। इस स्थिति को परिवार एवं परिजनों में अंतर्निहित सांस्कृतिक और संस्थागत प्रथाओं की एक संपूर्ण श्रृंखला के माध्यम से प्रचारित किया जाता है। उदाहरणार्थ:

  • महिलाओं द्वारा उत्तराधिकार अथवा संपत्ति के अधिकार के संदर्भ में भेदभाव का सामना किया जाता है।
  • महिलाओं के पास प्रजनन या गर्भधारण संबंधी अधिकारों के संदर्भ में कोई नियंत्रण नहीं होता है। परिवार नियोजन के तरीकों पर अधिकांशतः पति द्वारा निर्णय लिए जाते हैं।
  • वैवाहिक बलात्कार (Marital rape) को अवधारणा के रूप में न तो देश के कानून द्वारा स्वीकार किया जाता है और न ही इस पर व्यापक रूप से विचार-विमर्श किया जाता है।
  • महिलाओं को अनुष्ठानों एवं धार्मिक क्रियाकलापों में द्वितीयक भूमिकाएं प्रदान की जाती हैं और यहां तक कि उनका पूजा स्थलों में प्रवेश करने पर भी प्रतिबंध है।
  • ऐसा माना जाता है कि महिला के संसाधनों को विनियमन एवं नियंत्रण की आवश्यकता है।
  • पितृसत्तात्मकता मातृत्व, विश्वसनीयता, महिलाओं की शुचिता एवं पुरुष प्रभुत्व को प्रदर्शित करती है।
  • पितृसत्तात्मकता कुछ प्रथाओं के माध्यम से प्रबलित होती है यथा महिलाओं के द्वारा अपने नाम के आगे पति के उपनाम को अपनाना तथा बच्चों द्वारा अपने नाम के आगे पिता का उपनाम लगाना।
  • महिला की लैंगिक अभिव्यक्तियों को पुरुषों की तुलना में कठोरता से नियंत्रित किया जाता है। 
  • विभिन्न मीडिया माध्यमों में महिलाओं को वस्तु के रूप में (Objectification) प्रदर्शित करना। 
  • महिला के आवागमन तथा बाह्रय विश्व में उसके द्वारा बनाए गए संपर्कों बनाने पर प्रतिबंध आरोपित करना।

इन सांस्कृतिक और संस्थागत विभेदों के कारण वर्षों से शिक्षण एवं प्रशिक्षण के दौरान महिलाओं को हीनता की स्थिति उत्पन्न होती है। अंततः वे पुरुषों एवं महिलाओं दोनों से संबंधित विश्वासों में गहनता से अंतर्निहित हो जाती हैं। इस प्रकार के चेतन या अवचेतन रूप से उत्पन्न पक्षपात, प्रत्यक्ष रूप से समाज उनकी स्थिति को प्रभावित करते हैं। उदाहरणार्थ

  • अपवर्जन संबंधी पक्षपात: एक महिला एक अच्छी माँ/पत्नी नहीं हो सकती है, यदि वह अपने करियर पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है।
  • सुपरवूमन सिंड्रोम: एक महिला को प्रत्येक स्तर (घरेलू एवं कार्यालय) पर बेहतर प्रदर्शन करते हुए उत्कृष्टता प्राप्त करनी चाहिए।
  • पितृसत्तात्मक पूर्वाग्रह: ऐसी पूर्वधारणा है कि लैंगिक भूमिकाओं को पितृसत्तात्मकता द्वारा निर्धारित किया जाता है, यथा पुरुष करियर के क्षेत्र में महिलाओं की तुलना में बेहतर होते हैं और समाज में यह अटल सत्य माना जाता है कि परिवार के भरण-पोषण के उत्तरदायित्व का निर्वहन केवल पुरुषों द्वारा किया जाता है।
  • लैंगिक हीनता संबंधी पूर्वाग्रह: ऐसा माना जाता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में बिक्री या वितरण जैसे कार्यों से संबंधित करियर में कुशल नहीं होती हैं।
  • पहचान अपनाने संबंधी पूर्वाग्रह: यदि महिलाओं को पुरुष प्रधान कार्य-जगत में सफलता प्राप्त करनी है, तो उन्हें पुरुष संबंधी व्यवहार को भी अपनाने की आवश्यकता होती है।

परिणामतः, ऐसा देखा जाता है कि भारत में पितृसत्तात्मक संबंध प्रायः महिलाओं द्वारा स्वयं में न्यूनता, उत्तेजना एवं दोषारोपण को बढ़ावा दिया जाता हैं। महिलाओं की स्थिति में सुधार करने के लिए, महिलाओं को पितृसत्तात्मक अधीनता से संरक्षण प्रदान करने की आवश्यकता है। भारत में नारीवादी आंदोलन ने महिलाओं के अधिकारों के संबंध में जागरूकता उत्पन्न की है। वर्तमान में भारतीय महिलाएं सामाजिक विकास के सभी सूचकांकों में सुधार की ओर अग्रसर हो रही हैं।

हालांकि, अभी भी मूलभूत सुधारों को करने की आवश्यकता है। समाज में लैंगिक समानता दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है, विभिन्न भूमिकाओं के प्रति रूढ़िवादिता को समाप्त करना होगा तथा पुरुषों एवं महिलाओं दोनों के लिए पहचान-विशिष्ट कर्तव्यों तथा मानदंडों को निर्धारित करना होगा।

Read More

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.