सूखा : मौसम विज्ञान संबंधी सूखा, जलीय सूखा, कृषि संबंधी सूखा, सामाजिक-आर्थिक सूखा

प्रश्न: व्याख्या कीजिए कि सूखा क्या है तथा इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए। सूखे के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों पर चर्चा करते हुए, इनकी गंभीरता को बढ़ाने वाले कारकों को सूचीबद्ध कीजिए।

दृष्टिकोण

  • सूखा को परिभाषित कीजिए और इसके विभिन्न प्रकारों अर्थात, मौसम विज्ञान संबंधी सूखा, जलीय सूखा, कृषि संबंधी सूखा, सामाजिक-आर्थिक सूखा की चर्चा कीजिए।
  • पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों पर अलग-अलग चर्चा कीजिए।
  • इन प्रभावों की गंभीरता को बढ़ाने वाले कारकों की संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  • संक्षिप्त निष्कर्ष लिखिए।

उत्तर

एक लम्बी अवधि के दौरान, सामान्यतः एक ऋतु या इससे अधिक की अवधि के दौरान वर्षा की मात्रा में प्राकृतिक कमी के परिणामस्वरुप सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है। सूखा प्राय: उच्च तापमान, तीव्र पवनों और निम्न सापेक्षिक आर्द्रता जैसे अन्य जलवायविक कारकों से संबंधित होता है और ये कारक सूखे की गंभीरता को बढ़ा सकते हैं। सूखा न केवल वर्षा की कमी और उच्च तापमान के कारण बल्कि अतिदोहन और अधिक जनसंख्या के कारण भी होता है। वस्तुतः सभी प्रकार की जलवायु में सूखा पड़ता है।

सूखे के विभिन्न प्रकार: सामान्यतः सूखे की शुरुआत, समाप्ति और उसकी गंभीरता के आधार पर सूखे का वर्गीकरण किया जाता है। यह वर्गीकरण मुख्य रूप से निश्चित समयावधि के दौरान हुई वर्तमान वर्षा की तुलना ऐतिहासिक औसत से करके किया जाता है।

  • मौसम विज्ञान संबंधी सूखा: इसे ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है जब क्षेत्र में होने वाली मौसमी वर्षा उसके दीर्घकालिक औसत मान के 75% से कम होती है।
  • जलीय सूखा: इसे ऐसी अवधि के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिस दौरान नदियों का प्रवाह निश्चित जल प्रबंधन प्रणाली के अंतर्गत आवश्यक जल की आपूर्ति के लिए अपर्याप्त होता है।
  • कृषि संबंधी सूखा: यह तब घटित होता है जब मृदा में उपलब्ध नमी फसलों के पूर्ण विकास हेतु अपर्याप्त होती है। इसके कारण पौधों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है और वे मुरझा जाते हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक सूखा: सूखे की सामाजिक आर्थिक परिभाषाएं, आर्थिक वस्तुओं की मांग और आपूर्ति को मौसम विज्ञान संबंधी सूखा, जलीय सूखा और कृषि संबंधी सूखा के तत्वों के साथ जोड़ती हैं। जल की असामान्य कमी उस क्षेत्र की विद्यमान अर्थव्यवस्था के सभी पहलुओं को प्रभावित करती है। यह बदले में समाज में बेरोजगारी, प्रवासन, असंतोष और विभिन्न अन्य समस्याओं को उत्पन्न कर सामाजिक व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
  • पारिस्थितिक सूखा: इसके अंतर्गत प्राकृतिक और नियंत्रित जल विज्ञान में परिवर्तनों सहित प्राकृतिक रूप से उपलब्ध जल की आपूर्ति में दीर्घकालीन और व्यापक कमी हो जाती है, यह पारिस्थितिकी तंत्रों पर विभिन्न प्रकार के तनाव उत्पन्न करता

सूखे के पर्यावरणीय प्रभाव: सूखे का पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। इनमें सम्मिलित हैं:

  • नमी की कमी 
  • पेयजल की कमी
  • प्राकृतिक वनस्पति और विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों को क्षति
  • संकटग्रस्त (endangered) प्रजातियों पर दबाव या उनकी विलुप्ति
  • वायु और जल प्रदूषण में वृद्धि
  • मृदा अपरदन और मृदा की गुणवत्ता को होस

सूखे के सामाजिक प्रभाव: पर्यावरणीय प्रभाव के अतिरिक्त, सूखे के गंभीर सामाजिक प्रभाव भी हो सकते हैं। इनमें सम्मिलित

  • कुपोषण
  • स्वच्छता का निम्न स्तर
  • खराब स्वास्थ्य 
  • आय में कमी
  • प्रवासन
  • तनाव में वृद्धि और रूग्णता
  • सामाजिक संघर्ष
  • मनोरंजन गतिविधियों में कमी

सूखे की गंभीरता को बढ़ाने वाले कारक:

  • क्षेत्र की शुष्कता और मृदा में नमी की मात्रा में कमी
  • पशुधन हेतु चारे सहित अन्य कृषि आगतों की कमी
  • उचित शर्तों पर ऋण सहित अन्य संसाधनों की कमी
  • वैकल्पिक बीजों की अनुपलब्धता
  • भू-जल पंपसेटों हेतु विद्युत एवं डीजल की आपूर्ति में कमी
  • जरूरतमंदों हेतु निम्न स्तरीय या अनुपलब्ध चिकित्सीय सहायता
  • अनुपयुक्त फसल पैटर्न
  • असंधारणीय सिंचाई विधियाँ
  • फसल और पशुधन बीमा जैसे वित्तीय साधनों की कमी

सूखे के दौरान आजीविका के साधनों की पुनर्स्थापना अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इसके तहत खाद्य सुरक्षा निगरानी और पोषण संबंधी निरीक्षण के साथ-साथ भोजन, सुरक्षित जल, मूलभूत स्वच्छता तथा बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं जैसी मूलभूत आवश्यकताओं पर विशेष ध्यान देना महत्वपूर्ण है। यदि मानवीय क्रियाओं के कारण सूखे की गंभीरता में वृद्धि होती है तो उचित हस्तक्षेप इस विपदा को कम करने में भी मदद कर सकता है।

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