युद्ध के संदर्भ में नैतिक दुविधाओं का वर्णन : इस पूर्वधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन

प्रश्न: कई लोग तर्क देते हैं कि कई बार ऐसा होता है, जब युद्ध नैतिक रूप से अनुमत और यहाँ तक कि अनिवार्य भी होता है। आलोचनात्मक चर्चा कीजिये।

दृष्टिकोण

  • युद्ध के संदर्भ में नैतिक दुविधाओं का वर्णन करते हुए उत्तर का प्रारंभ कीजिये।
  • तत्पश्चात उल्लेख कीजिए कि कैसे कोई युद्ध न्यायोचित तथा नैतिक रूप से अनुमत हो सकता है।
  • इस पूर्वधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करते हुए निष्कर्ष दीजिए कि कोई युद्ध कैसे अनिवार्य और नैतिक होता है।

उत्तर

अपने मूल रूप में युद्ध केवल व्यापक पैमाने पर एक द्वन्द्व है। यह अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु विरोधी को विवश करने के लिए किया गया एक हिंसात्मक कार्य है। क्लाजविट्ज़ युद्ध को केवल अन्य साधनों के द्वारा नीति के विस्तार के रूप में परिभाषित करते हैं। इस प्रकार युद्ध किसी के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु एक राजनीतिक उपकरण होता है। इस उपकरण का उपयोग समान राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अन्य सभी उपकरणों के विफल होने की परिस्थिति में किया जाता है।

चूँकि ‘सभी उपकरणों का विफल होना’ अपनी प्रकृति में वस्तुनिष्ठ है अतः कई बार बिना सभी उपायों को अपनाये ही युद्ध का सहारा ले लिया जाता है। इस प्रकार युद्ध के सन्दर्भ में तीन नैतिक स्थितियां उत्पन्न होती हैं। शांतिवादी परिप्रेक्ष्य युद्ध की नैतिकता को पूर्णतया अस्वीकार करता है तथा यथार्थवादी परिप्रेक्ष्य में युद्ध एक नैतिक कार्य नहीं है किन्तु न्यायोचित युद्ध का एक मध्यमार्गी दृष्टिकोण भी मौजूद है। इसके अनुसार कुछ परिस्थितियों में युद्ध नैतिक रूप से अनुमत तथा अनिवार्य भी हो सकता है। सेंट ऑगस्टाइन (5वीं सदी) की “जस्ट वार थ्योरी” (न्यायोचित युद्ध सिद्धांत) किसी युद्ध के नैतिक मूल्यांकन में सहायता करती है।

इस सिद्धांत के अनुसार कोई युद्ध तब न्यायोचित होता है जब युद्ध का कारण, युद्ध का संचालन तथा युद्ध के पश्चात् समाधान सही हो। अर्थात एक युद्ध न्यायोचित और नैतिक है यदि:

  • इसे वैधानिक प्राधिकार द्वारा लागू किया गया हो (उदाहण के लिए संयुक्त राष्ट्र की स्वीकृति के पश्चात्)।
  • इसका कारण न्यायसंगत हो (अर्थात् एक ऐसे राज्य के विरुद्ध जो मानवाधिकार के उल्लंघन में संलिप्त हो)।
  • वह सही प्रयोजन के साथ संचालित हो।
  • अंतिम उपाय हो।
  • संतुलित हो (अर्थात् पारम्परिक हथियारों के विरुद्ध नाभिकीय हथियारों का प्रयोग न हो)।
  • हमले का वास्तविक लक्ष्य केवल अन्यायी प्रतिद्वंदी हो।
  • इसी प्रकार, महाभारत भी एक न्यायोचित युद्ध के संचालन के सिद्धांतों तथा उसके दौरान व्यवहार के ढाँचे को रेखांकित करता है। इस समय कुछ नियम प्रचलित थे जैसे कि सेना को शवों को एकत्रित करने की अनुमति प्रदान की गई थी, सैनिक समझौते हेतु बैठक कर सकते थे इत्यादि।
  • शासन कला में युद्ध तब अनिवार्य तथा नैतिक होता है जब राज्य प्रतिरक्षक हो न कि आक्रमणकारी। उदाहरणार्थ भारत स्वतंत्रता के बाद से चार युद्ध लड़ चुका है, परन्तु यह कभी भी आक्रमणकारी नहीं रहा। इसकी कार्यवाही अपने नागरिकों, क्षेत्र, संसाधनों तथा संप्रभुता की रक्षा करने पर लक्षित थी।
  • यह भी संभव है कि कोई युद्ध तो नैतिक हो, परन्तु उसके संचालन के साधन शायद ही सैद्धांतिक हों, विशेष रूप से आधुनिक युद्ध में जिसमें लैंडमाइंस, यातनाओं, रासायनिक एवं जैविक हथियारों तथा ड्रोंस के माध्यम से गैर-लक्षित बमबारी का अविवेकपूर्ण तरीके से प्रयोग किया जाता है। जो युद्ध ‘न्यायोचित’ होता है वह साथ ही संदेहास्पद भी होता है, उदाहरण के लिए यद्यपि 2003 के इराक युद्ध का तथाकथित उद्देश्य इराक को उदारवादी बनाना, लोकतंत्र को स्थापित करना तथा जैविक हथियारों का उन्मूलन करना था, परन्तु इनमें से कोई भी लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका तथा इराकियों का उत्पीड़न आज भी जारी है। वस्तुतः इस युद्ध से पूर्व इसके लिए संयुक्त राष्ट्र की स्वीकृति भी नहीं ली गई थी।
  • मानवतावादी हस्तक्षेपों के आधार भी समान और यथोचित नहीं हैं। 1999 में पूर्ववर्ती नाटो ने कोसोवो में किए गए अभियान को “मानवतावादी युद्ध” के रूप में न्यायोचित ठहराते हुए हस्तक्षेप किया था, परन्तु 1994 के रवांडा जनसंहार को किसी ने भी संज्ञान में नहीं लिया था।

अत: आधुनिक समय में युद्ध भू-राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु अपनाए जाने वाले साधनों में से एक है; कभी-कभी यह नैतिकता और मानवाधिकारों के मुखौटे के नीचे भी गढ़ा जाता है।  वर्तमान स्थितियों में हस्तक्षेप को न्यायसंगत ठहरा पाना बहुत ही कठिन हो गया है और युद्ध के बाद के विनाशकारी प्रभाव के कारण एक सामान्य प्रवृत्ति किसी भी कीमत पर युद्ध से बचने की दिशा में प्रयास करने की होती है। इसीलिए युद्ध का चरित्र तेजी से बदल रहा है तथा नैतिकता को इस बदलाव के साथ साम्यता बनाए रखने की आवश्यकता है। अन्यथा कोई युद्ध स्वभावत: अनैतिक ही बना रहता है।

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