भारत में डेयरी क्षेत्र के महत्व और उपलब्धियों पर चर्चा : डेयरी क्षेत्र के समक्ष आने वाली समस्याओं का विश्लेषण

प्रश्न: भारत में डेयरी क्षेत्र के महत्व की व्याख्या करते हुए, इसकी उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए। परीक्षण कीजिए कि क्या अति उत्पादन डेयरी उद्योग द्वारा सामना की जा रही समस्याओं का कारण है। इन समस्याओं को दूर करने के लिए कुछ उपाय सुझाइए। (250 शब्द)

दृष्टिकोण

  • भारत में डेयरी क्षेत्र के महत्व और उपलब्धियों पर चर्चा कीजिए। डेयरी क्षेत्र के समक्ष आने वाली समस्याओं का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए तथा परीक्षण कीजिए कि क्या अति-उत्पादन इन समस्याओं का कारण है।
  • इन समस्याओं के समाधान हेतु उपाय सुझाइए।

उत्तर

डेयरी फार्मिंग, आजीविका का एक परंपरागत स्रोत रहा है तथा इसका भारत की कृषि अर्थव्यवस्था के साथ घनिष्ठ संबंध है। देश में विशेषत: ऑपरेशन फ्लड तथा दुग्ध सहकारी संस्थाओं के विकास के पश्चात् दुग्ध उत्पादक देशों में भारत एक नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरा है।

भारत में डेयरी क्षेत्र का महत्व और उपलब्धियाँ

  • भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध-उत्पादक देश है। यह भारत का सर्वाधिक मात्रा में उत्पादित होने वाला कृषि-उत्पाद भी है (2016-17 में 165.4MMT)।
  • भारत गायों तथा भैंसों की सर्वाधिक संख्या (विश्व की कुल गायों का 20% तथा कुल भैंसों के 50% से अधिक) वाले प्रमुख देशों में से एक है।
  • दुग्ध उत्पादन से आजीविका अर्जित करने वाले लोगों में से 70 प्रतिशत महिलाएं हैं।
  • वर्ष 2014-17 में दुग्ध उत्पादन में 16.9% तक की वृद्धि हुई तथा वर्ष 2011-14 के दौरान दूध का दाम 29 रूपए प्रति लीटर की तुलना में 33 रूपए प्रति लीटर तक पहुँचने से किसानों की आय में 13.79% की वृद्धि हुई।
  • यह कृषिगत सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में एक बड़े भाग का योगदान करता है।
  • यह पोषण संबंधी कमियों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • डेयरी उद्योग नियमित आय का स्रोत उपलब्ध करवाता है जबकि कृषि से होने वाली आय अनियमित (मौसमी) होती है। इस प्रकार यह आय के जोखिम को कम करता है। कुछ संकेतों से ज्ञात होता है कि जिन क्षेत्रों में डेयरी उद्योग बेहतर विकसित हो चुका है वहां किसान आत्महत्या की घटनाएँ सबसे कम देखी गई हैं। पशुधन एक सुरक्षित परिसम्पत्ति होते हैं जिनका संकट के समय विक्रय किया जा सकता है।
  • डेयरी उद्योग लघु तथा सीमांत किसानों को भी नियमित आय के संसाधन प्रदान करता है।

हालांकि, वर्तमान में डेयरी क्षेत्र द्वारा विभिन्न संकटों का सामना किया रहा है। निम्नलिखित कारकों के कारण पश्चिमी तथा पूर्वोत्तर भारत में विभिन्न दुग्ध-अधिशेष उत्पादक राज्यों में दुग्ध खरीद मूल्यों में गिरावट दर्ज की गई है:

  •  विशाल डेयरियों के उदय से लघु डेयरी फार्मों के प्रभावहीन हो जाने के कारण अति-उत्पादन एक समस्या बन गया है।
  • जहाँ डेयरी किसान निम्न खरीद मूल्य की समस्या से पीड़ित हैं, वहीं उपभोक्ता दुग्ध हेतु उच्च मूल्यों का भुगतान कर रहे हैं।
  • अवसंरचनात्मक मुद्दे तथा नीतिगत दोष असंगठित क्षेत्र के आधिपत्य के साथ संयोजित हो गए हैं।
  • भारत का स्किम्ड मिल्क पाउडर (SMP) निर्यात वैश्विक SMP मूल्यों में गिरावट के कारण तेजी से कम हो रहा है। इसके लिए चीन और रूस द्वारा SMP आयातों पर प्रतिबंध तथा वर्ष 2015 में यूरोपीय संघ द्वारा अपने दुग्ध संबंधी कोटे (जो दग्ध उत्पादन को विनियमित करता था) में कमी करने जैसे कारकों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

विशाल डेयरियों के उदय तथा लघु डेयरी फार्मों के निष्प्रभावी होने के कारण अति-उत्पादन एक विश्वव्यापी समस्या के रूप में सामने आया है। अति-उत्पादन एक प्रमुख मुद्दा होने के साथ ही विभिन्न अवसंरचनात्मक तथा नीतिगत दोषों से संयोजित है अतः इसका समाधान किए जाने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त डेयरी क्षेत्र का केवल 20% ही संगठित है, जबकि संगठित क्षेत्र के पास घाटे को सहन करने की अत्यधिक क्षमता होती है। दुग्ध मूल्यों में हालिया गिरावट ने मुख्यतः असंगठित क्षेत्र को प्रभावित किया है। इस प्रकार सहकारी संस्थाओं तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के साथ लिंकेज के अभाव से डेयरी क्षेत्र की समस्याओं में वृद्धि हुई है।

मांग-आपूर्ति असंगतियों का समाधान करने हेतु सुझावों में शामिल हैं:

  • बाजार प्रवृत्तियों में सुधार तथा मूल्य क्रम में वृद्धि हेतु SMP के बफर स्टॉक के सृजन के द्वारा मांग में वृद्धि की जानी चाहिए।
  • मिड-डे-मील योजनाओं में डेयरी उत्पादों को भी स्थान दिया जा सकता है। इसके लिए कर्नाटक सरकार की “क्षीर भाग्य योजना” (जिसमें सरकारी विद्यालयों में नि:शुल्क दुग्ध प्रदान किया जाता है) जैसी योजनाओं को अपनाया जा सकता है। इस हेतु कुपोषण से संघर्ष हेतु नीति आयोग द्वारा पहचाने गए 115 आकांक्षी जिलों को लक्ष्यित करने से दुग्ध-मांगों में सुधार होगा, जिससे उत्पादक और उपभोक्ता दोनों को लाभ होगा।
  • वायदा बाजार प्लेटफार्म (futures market platform) पर SMP को प्रस्तुत करना।
  • उद्योग में बड़े निजी अभिकर्ताओं को प्रोत्साहित करने हेतु मक्खन और घी जैसे SMP को वस्तु निर्यात प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत लाना।
  • मूल्य वर्धित उत्पादों में निवेश को प्रोत्साहित करना।
  • अनौपचारिक डेयरी क्षेत्र का आधुनिकीकरण।
  • दूध देने वाले पशुओं की उत्पादकता में वृद्धि के माध्यम से डेयरी क्षेत्र को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाना।
  • सम्पूर्ण विश्व में निवेश, विलयों तथा भागीदारी के माध्यम से वैश्विक बाजार को अधिकृत करने वाली रणनीतियों के स्थान पर अन्य रणनीतियों को अपनाना।

उपरोक्त उपायों को अपनाने के साथ, भारत में डेयरी क्षेत्र को धारणीय बनाने हेतु चुनौतियों को अवसरों में परिवर्तित किया जा सकता है।

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