विश्व आर्थिक मंच (WEF) : समावेशी विकास सूचकांक में भारत की रैंकिंग

प्रश्न: विश्व आर्थिक मंच (WEF) के समावेशी विकास सूचकांक में, भारत अत्यंत निचले पायदान पर है। भारत में जीवन स्तर, पर्यावरणीय संधारणीयता एवं भावी पीढ़ियों को और अधिक ऋणग्रस्तता से संरक्षित करने से संबंधित मुद्दों, जिनके आधार पर यह रैंकिंग की जाती है, की संक्षेप में चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • विश्व आर्थिक मंच (WEF) के समावेशी विकास सूचकांक में भारत की रैंकिंग के बारे में संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  • उन मापदंडों को बताइए जिन पर यह रैंकिंग आधारित है तथा उन मापदंडों पर आधारित मुद्दों का विस्तार से वर्णन कीजिए जिनका भारत को सामना करना पड़ता है।
  • भविष्य में इस सूचकांक में भारत की रैंकिंग में सुधार लाने हेतु उपायों को सुझाइए।

उत्तर

WEF के द्वारा प्रकाशित समावेशी विकास सूचकांक में 74 उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भारत 62 वें स्थान पर है, जो चीन के 26वें और पाकिस्तान के 47वे स्थान से काफी नीचे है। सूचकांक “जीवन स्तर, पर्यावरणीय संधारणीयता एवं भावी पीढ़ियों के और अधिक ऋणग्रस्तता से संरक्षण” जैसे मुद्दों पर आधारित है। यह सूचकांक GDP के एक विकल्प के रूप में राष्ट्रीय आर्थिक निष्पादन के एक नवीन मापक के रूप में विकसित किया गया है। इस प्रकार यह देशों को समावेशी संवृद्धि एवं विकास के एक नवीन मॉडल की ओर अग्रसारित होने के लिए प्रेरित करता है।

इन मापदंडों से संबंधित मुद्दे एवं भारत की निम्न रैंकिंग के निम्नलिखित कारण हैं:

  • जीवन स्तर: यद्यपि विगत पाँच वर्षों में भारत में निर्धनता में कमी आयी है, किन्तु अभी भी 10 में से 6 भारतीय 3.20 डॉलर प्रति दिन से कम व्यय पर जीवन निर्वहन कर रहे हैं। जीवन स्तर में निम्न रैंकिंग के कारणों में, उच्च ऋण-GDP अनुपात के कारण सरकार द्वारा कम व्यय किया जाना शामिल है। इसके परिणामस्वरूप आर्थिक सुधारों की गति मंद हो जाती है और सामाजिक असमानता में वृद्धि हो जाती है। शैक्षणिक नामांकन दरें भी सभी स्तरों पर अपेक्षाकृत निम्न हैं, जिस कारण विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमियों से आने वाले छात्रों के मध्य प्रदर्शन और जीवन स्तर में उल्लेखनीय भिन्नताएं देखने को मिलती हैं। इसके अतिरिक्त वृहद् अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के साथ संलग्न निम्न श्रम बल भागीदारी श्रमिकों की सामाजिक गतिशीलता को प्रतिबंधित करती है, इस प्रकार उन्हें असुरक्षित रोजगार परिस्थितियों में छोड़ दिया जाता है, जो अंततः उनके जीवन स्तर में गिरावट लाती है।
  • पर्यावरणीय संधारणीयता: वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने हेतु अपनी पहलों के बावजूद भारत पर्यावरणीय संधारणीयता से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहा है। इन समस्याओं में सम्मिलित हैं- वायु एवं जल प्रदूषण में वृद्धि (विशेष रूप से महानगरों और औद्योगिक नगरों में), वनों और कृषि भूमियों का निम्नीकरण, जैव-विविधता का ह्रास, पारिस्थितिकी तंत्र की लोचशीलता में कमी, औद्योगिकीकरण के कारण संसाधनों में तीव्र गति से कमी आना इत्यादि।
  • भावी पीढ़ियों का और अधिक ऋणग्रस्तता से संरक्षण: भारत ने अंतरपीढ़ीगत समानता तथा संधारणीयता के मामलों में अपेक्षाकृत बेहतर (44वां स्थान) प्रदर्शन किया है। इसका कारण निम्न निर्भरता अनुपात है जिसके भविष्य में और भी कम होने की संभावना है, क्योंकि अर्थव्यवस्था एक अत्यंत युवा जनसंख्या का लाभांश प्राप्त करने की स्थिति में है (2017 में 28% भारतीय जनसंख्या 14 वर्ष से कम आयु वर्ग में थी)। यद्यपि उच्च ऋण-GDP अनुपात, आय असमानता, बाह्य ऋण में वृद्धि, विद्यमान भ्रष्टाचार, कर-अपवंचन आदि जैसे मुद्दे भावी पीढ़ियों के लिए ऋणग्रस्तता में वृद्धि तथा आर्थिक समस्याओं का कारण बन सकते हैं।

आगे की राह:

कुल स्कोर के कम होने के बावजूद, भारत उन दस उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सम्मिलित है जो श्रम उत्पादकता तथा प्रति व्यक्ति GDP दोनों में मजबूत संवृद्धि दरों को बनाए हुए हैं। आय और सम्पत्ति दोनों मामलों की असमानता के प्रसार को देखते हुए, भारत के लिए इस संबंध में और अधिक सुधार करने के लिए पर्याप्त अवसर विद्यमान हैं।

उपर्युक्त मापदंडों में सुधारों पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए, क्योंकि इन मापदंडों पर धीमी प्रगति राजनीतिक ध्रुवीकरण तथा सामाजिक एकजुटता के क्षरण को बढ़ाएगी। इसलिए स्वास्थ्य देखभाल, बुनियादी सेवाओं, शिक्षा तथा भ्रष्टाचार को कम करने हेतु व्यय बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए और व्यावसायिक विस्तार के लिए एक अनुकूल परिवेश का सृजन किया जाना चाहिए। प्रदूषण कम करने, वनाच्छादन बढ़ाने, जल निकायों की स्थितियों में सुधार करने तथा संधारणीय पर्यावरणीय कार्यप्रणाली को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार के सभी स्तरों के द्वारा और अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।

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