मुद्रास्फीति की संक्षिप्त परिभाषा

प्रश्न: भारत में मांग-प्रेरित और लागत-जनित मुद्रास्फीति के कारकों को स्पष्ट कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • मुद्रास्फीति की संक्षिप्त परिभाषा के साथ उत्तर आरंभ कीजिए।
  • भारत में मांग-प्रेरित और लागत-जनित मुद्रास्फीति के कारकों पर चर्चा कीजिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष दीजिए।

उत्तरः

मुद्रास्फीति, वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में सामान्य वृद्धि को दर्शाती है। मुद्रा की समान इकाई द्वारा पूर्व की तुलना में वस्तुओं और सेवाओं की अल्प मात्रा क्रय की जाती है, जिससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा की क्रय शक्ति कम हो जाती है। मुद्रास्फीति उत्पन्न करने वाले दो कारक होते हैं यथा:

मुद्रास्फीति के मांग-प्रेरित कारक:

जब किसी अर्थव्यवस्था की समग्र मांग उसकी समग्र आपूर्ति से अधिक हो जाती है अर्थात् अर्थव्यवस्था में होने वाला उत्पादन बढ़ती हुई मांग की पूर्ति करने में असक्षम होता है, इससे वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हो जाती है। इसे मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति कहा जाता है।

मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  • वर्द्धित संवृद्धि: जब सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि होती है, तो इस कारण प्रति व्यक्ति आय बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप सामान्य रूप से वस्तुओं और सेवाओं की मांग में भी बढ़ोतरी हो जाती है। जब उपभोक्ता आर्थिक विकास के विषय में आश्वस्त अनुभव करते हैं तो भी मांग में वृद्धि होगी।
  • राजकोषीय प्रोत्साहन से उच्च मांग: जब करों की दर कम होती है, तो उपभोक्ताओं के पास उपलब्ध प्रयोज्य आय में वृद्धि हो जाती है, जिसके कारण मांग बढ़ जाती है। उच्च सरकारी व्यय और उधार में वृद्धि भी अर्थव्यवस्था में मांग में बढ़ोतरी का कारण बनती है।
  • उदार मौद्रिक नीति: जब मौद्रिक नीति का अर्थव्यवस्था में व्ययों के अनुरूप अभिकल्पन किया जाता है, उदाहरणार्थ ब्याज दरों में कमी करना, तो इससे उच्च मांग की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • वर्द्धित विदेशी निवेश: इससे अर्थव्यवस्था में धन का अंतर्वाह होता है, जो अंततः मांग में वृद्धि का कारण बनता है।
  • घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन: इससे आयातों की कीमत बढ़ जाती है और उस देश के निर्यातों की कीमत कम हो जाती है। निर्यात निरंतर बढ़ने और आयात में कमी होने से समग्र मांग में भी वृद्धि होती है, जिसके कारण कीमतों में बढ़ोतरी (मूल्य वृद्धि) हो जाती है।

मुद्रास्फीति के लागत जनित कारक:

यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब उत्पादन लागत में वृद्धि के कारण वस्तुओं और सेवाओं की समग्र आपूर्ति कम हो जाती है। सामान्य रूप से, लागत-जनित मुद्रास्फीति लोचहीन मांग की स्थिति में उत्पन्न होती है (जहां मांग में, बढ़ती कीमतों के अनुरूप परिवर्तन नही होता)। लागत-जनित मुद्रास्फीति के प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:

  • घटकों की लागत: कच्चे माल, मशीनरी के मूल्यों में बढ़ोतरी, बढ़ता किराया और अन्य घटकों की कीमतों में वृद्धि, उत्पादन की लागत में वृद्धि का कारण बनती है।
  • वर्द्धित मजदूरी: मजदूरी में बढ़ोतरी से उत्पादन लागत में भी वृद्धि होती है।
  • आपूर्ति आघात: आपूर्ति आघात की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब कच्चे तेल जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि होती है। इसके परिणामस्वरूप परिवहन लागत उच्च हो जाती है और सभी कंपनियों की लागत में वृद्धि परिलक्षित होती है। प्राकृतिक आपदाएं या प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास जैसे अन्य आपूर्ति आघात भी लागत जनित मुद्रास्फीति उत्पन्न कर सकते हैं।
  • अवमूल्यन: अवमूल्यन से आयात की घरेलू कीमत बढ़ जाती है। इसलिए, अवमूल्यन के पश्चात् आयात की वर्द्धित लागत के कारण प्रायः मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।
  • विविध कारक: जैसे सरकार द्वारा उच्च कराधान, एकाधिकार, विनिमय दरों में गिरावट, आदि जिससे उत्पादन की लागत में वृद्धि हो सकती है।

भारत में, भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति रणनीति का उपयोग करके मूल्य स्तर को एक निश्चित स्तर पर या एक सीमा के भीतर बनाए रखता है। ज्ञातव्य है कि इस रणनीति को मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के रूप में जाना जाता है।

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