विनिमय दर और विभिन्न देशों के आर्थिक प्रदर्शन के मध्य संबंध : भारत में बढ़ते व्यापार घाटे के लिए उत्तरदायी कारक
प्रश्न: क्या मुद्रा विनिमय दर देशों के सापेक्ष आर्थिक प्रदर्शन की एक उपयुक्त माप है? मैक्रो इकनॉमिक फंडामेंटल्स (समष्टि-आर्थिक आधारों) में सुधार के बावजूद, भारत में व्यापार घाटा निरंतर बढ़ा है। इस स्थिति के लिए उत्तरदायी कारकों को प्रस्तुत कीजिए।
दृष्टिकोण
- विनिमय दर और विभिन्न देशों के आर्थिक प्रदर्शन के मध्य संबंध स्थापित कीजिए और यह निर्णय लीजिए कि क्या यह एक उपयुक्त उपाय है या नहीं।
- मैक्रो-इकोनॉमिक्स (समष्टि अर्थशास्त्र) में हुए सुधार को रेखांकित कीजिए, तत्पश्चात भारत में मौजूदा व्यापार घाटे की स्थिति का वर्णन कीजिए।
- बढ़ते व्यापार घाटे के लिए उत्तरदायी कारकों का वर्णन कीजिए तथा व्यापार को बढ़ावा देने के लिए भारत द्वारा किये जा सकने वाले उपायों सहित संक्षिप्त निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
विनिमय दर, अर्थव्यवस्था की संवृद्धि दर से स्वतंत्र रूप से निर्धारित होती है। इसमें कई चर सम्मिलित होते हैं। इन दोनों के मध्य किसी भी प्रकार का प्रत्यक्ष संबंध नहीं है। हालांकि, दोनों एक-दूसरे को प्रभावित कर सकते हैं। अल्पावधि के लिए, एक मजबूत विनिमय दर समग्र आर्थिक स्थिति के लिए भ्रामक हो सकती है क्योंकि यह दीर्घकालिक आर्थिक सुधारों के विपरीत अनुमानों (speculation) के आधार पर संचालित हो सकती है। वास्तव में, मजबूत विनिमय दर आर्थिक संवृद्धि को कम कर सकती है, क्योंकि यह निर्यातों को महंगा और आयातों को सस्ता बना देती है। इस प्रकार घरेलू रूप से उत्पादित वस्तुओं की मांग में कमी हो जाती है। इसके अतिरिक्त, घरेलू रूप से उत्पादित वस्तुओं के घरेलू उपभोग के कारण विनिमय दर द्वारा आर्थिक प्रदर्शन को प्रतिबिंबित नहीं किया जाता है।
फिर भी, दीर्घकाल के लिए मजबूत विनिमय दर को देशों के सापेक्ष आर्थिक प्रदर्शन के लिए उपयुक्त माप माना जा सकता है क्योंकि यह सामान्यतः निम्न मुद्रास्फीति स्तर, उच्च प्रतिस्पर्धात्मकता, उत्पादों के लिए उच्च वैश्विक मांग आदि को दर्शाती है।
इस प्रकार, यह विनिमय दर में स्थिरता या अस्थिरता है जो केवल दर के मूल्य की अपेक्षा आर्थिक प्रदर्शन को सूक्ष्मता से निर्धारित करता है। एक स्थिर मुद्रा अर्थव्यवस्था में विश्वास उत्पन्न करती है वहीँ अस्थिर मुद्रा अनुमानों के लिए जोखिम और सुभेद्यता को दर्शाती है।
हालांकि, 2014-15 और 2016-17 के मध्य 7.5% की औसत सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर्ज करने जैसे समष्टि आर्थिक संकेतकों में सुधार प्रदर्शित करने के बावजूद भारत, विश्व में सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। मध्यम मुद्रास्फीति दर और प्राथमिक रूप से उच्च व्यापार घाटे के कारण चालू खाता घाटे में वृद्धि की प्रवृत्ति को दर्शाता है। 2017-18 में, भारत के व्यापार घाटे में 2016-17 में 112.4 अरब अमेरिकी डॉलर से 160 अरब अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई थी। इस स्थिति के लिए कई कारक उत्तरदायी हैं:
- कमज़ोर विदेशी मांग: वैश्विक अर्थव्यवस्था में अभी भी सुधार हो रहा है तथा चालू वर्ष में वृद्धि अपेक्षित है। हालांकि, वर्तमान वैश्विक व्यवस्था संरक्षणवाद और ट्रेड वॉर की ओर बढ़ रही है, जो विश्व व्यापार के लिए अच्छे संकेत नहीं है।
- GST का प्रभाव – GST में परिचालन संबंधी मुद्दों जैसे कि निर्यातकों के इनपुट टैक्स क्रेडिट और एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) रिफंड में देरी, जो कार्यशील पूंजी के अधिधारण को बढ़ावा देता है। इसके अतिरिक्त, असंगठित क्षेत्र भी अत्यधिक अनुपालन से बचना चाहता है।
- वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि: विगत वर्ष की तुलना में तेल के आयात मूल्य में 50% से अधिक की वृद्धि हुई है। तेल, सोने जैसे प्रमुख आयात वस्तुओं में वृद्धि व्यापार घाटे में वृद्धि को समाप्त करती है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स ‘न्यू आयल’ के रूप में: शुद्ध इलेक्ट्रॉनिक्स आयात व्यापार घाटे के 25% के लिए उत्तरदायी है। यदि, सरकार शीघ्रता से इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन के आकार में वृद्धि नहीं कर लेती है, तो यह भारत के लिए ‘न्यू आयल’ के रूप में उभर सकता है।
- निर्यात मूल्यों में अनुरूप वृद्धि न होना: निर्यात, आयात में हो रही वृद्धि के साथ संतुलित होने में विफल रहा है, यह स्थिति पुनः रत्नों एवं आभूषणों के आयातों में वृद्धि कर रही है। इसके अतिरिक्त, भारत की अन्य देशों में वस्त्र और कृषि निर्यात जैसी प्रमुख श्रेणियों में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त को भी हानि हो रही है।
- उच्च ब्याज दरें और बांड आय: इससे कॉर्पोरेट की ऋण लागत में वृद्धि हुई है परिणामस्वरूप कॉर्पोरेट ऋण प्राप्त करना कठिन हो गया है और जो अत्यधिक लाभकारी कॉरपोरेट बैलेंस शीट्स के समक्ष समस्या उत्पन्न कर देता है।
भारत को व्यापार सुविधा और प्रतिस्पर्धी उत्पादों के माध्यम से सिंक्रनाइज़ ग्लोबल रिकवरी से लाभ प्राप्त करने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, इसे मजबूत साख संवृद्धि सुनिश्चित करने, सुविधाजनक बनाने हेतु उचित आधारभूत संरचना की स्थापना, नए निर्यात बाजारों की पहचान करने और घरेलू संवृद्धि को बढ़ावा देने हेतु निवेशकों के विश्वास को सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है।
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