वन अधिकार अधिनियम (FRA) ,2006 : भारतीय वन अधिनियम (IFA) 1927, अंतर-राज्य असमानता

प्रश्न: वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अंतर्गत मान्यता प्राप्त विभिन्न अधिकार क्या हैं? वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत प्रदान किए गए सामुदायिक वन अधिकारों और सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों के कार्यान्वयन में अंतरालों पर प्रकाश डालिए। साथ ही, वर्तमान परिदृश्य को संबोधित करने के उपाय भी सुझाइए।

दृष्टिकोण

  • वन अधिकार अधिनियम (FRA) के उद्देश्य का परिचय दीजिए।
  • FRA द्वारा प्रदत्त विभिन्न अधिकारों एवं इसके अन्य प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
  • भारतीय वन अधिनियम (IFA) 1927, अंतर-राज्य असमानता आदि के साथ टकराव के उदाहरणों का उल्लेख करते हुए FRA के कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों की चर्चा कीजिए। अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उपायों को सुझाइए।

उत्तर

वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 द्वारा वनों की पारिस्थितिक स्थिरता बनाए रखते हुए खाद्य और आजीविका सुरक्षा को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से वनों के स्थानीय शासन की नींव रखी गयी। यह अधिनियम निम्नलिखित को मान्यता प्रदान करता है:

1. सामुदायिक अधिकार

(a) गौण वन उत्पाद और चराई-भूमि जैसे साझा संसाधनों पर।

(b) वन भूमि को सामुदायिक वन संसाधन (CFR) के रूप में मान्यता दी गयी जोकि समुदायों द्वारा नियंत्रित तथा प्रबंधित वनों की एक अन्य श्रेणी होगी।

2. व्यक्तिगत भूमि अधिकार:  ये अधिकार उन वनवासियों को प्रदान किए जाएंगे, जो 13 दिसंबर 2005 से पहले से निवास कर रहे हैं या कृषि में संलग्न हैं।

3. ग्राम सभा की भूमिका:  वनभूमि के अन्य उद्देश्यों हेतु व्यपवर्तन को स्वीकृति, संरक्षण हेतु सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन समितियों (CFRMC) का गठन इत्यादि।

कम्युनिटी फ़ॉरेस्ट राइट्स-लर्निंग एंड एडवोकेसी ग्रुप की एक रिपोर्ट में की गई गणना के अनुसार CFRs, कुल संभावित क्षेत्र के 3% से भी कम भाग पर पाए गए हैं

कारण:

  • आवास को सिद्ध करने के लिए जटिल दस्तावेजों की आवश्यकता तथा भूमि पर दावों का बार-बार अस्वीकृत होना।
  • विवादित कानून तथा आदेश –
  • IFA,1927 में लकड़ी और गैर-लकड़ी के वन उत्पाद (NTFP) का उपयोग प्रतिबंधित है, जबकि FRA में NTFP की कटाई की अनुमति भी दी गयी है।
  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने 2017 में आदेश जारी करते हुए बाघ आवासों में वन अधिकारों को निषिद्ध कर दिया था।
  • वन विभाग के साथ संघर्ष- इस अधिनियम के अंतर्गत वन विभाग को कोई भूमिका प्रदान नहीं की गई है और यह समुदाय की वनों को वैज्ञानिक तथा संधारणीय रूप से विकसित करने की क्षमता पर प्रश्न उठाता है।
  • ग्राम सभा की उचित सहमति के बिना वन भूमि का अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग/व्यपवर्तन
  • अंतरराज्यीय असमानता- पीपल्स फ़ॉरेस्ट रिपोर्ट के अनुसार, केवल 7 राज्यों ने ही औपचारिक रूप से वन समुदायों के अधिकारों को मान्यता प्रदान की है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे विशाल वन-आश्रित जनसंख्या वाले दो राज्यों ने अभी तक उचित CFR दस्तावेज जारी नहीं किए हैं।
  • ग्राम सभाएं निष्क्रिय और अप्रभावी हो सकती हैं। कुछ राज्यों में, वन अधिकार समिति का ग्राम पंचायत स्तर या राजस्व ग्राम स्तर पर गठन किया जा सकता है। इसलिए, यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता कि ये अधिकार समुदाय के वास्तविक सदस्यों को ही मिलेंगे।
  • सहायक साक्ष्य के अभाव के कारण बड़ी मात्रा में दावे लंबित है।
  • अधिनियम की त्रुटिपूर्ण व्याख्या के कारण अधिकांश राज्यों में अन्य पारंपरिक वन निवासियों द्वारा किए गए दावों को मान्यता प्राप्त नहीं है।

विज्ञान और पर्यावरण केंद्र द्वारा निम्नलिखित अनुशंसाएं की गयी हैं:

  • FRA के साथ IFA को संरेखित करना: FRA के तहत अनुमन्य गतिविधियों जैसे कि मवेशियों के लिए चरागाहों को IFA के तहत ‘प्रतिबंधित गतिविधियों’ की सूची से हटा दिया जाना चाहिए। इसी प्रकार, NTFP व्यापार पर राज्य कानूनों को सुसंगत बनाने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र ने तेंदु पत्तों के व्यापार को नियंत्रण मुक्त किया है।
  • संसाधनों के अभिसरण को सुनिश्चित करना: जनजातीय मामलों के मंत्रालय को ग्राम सभा की भूमिका को कम किए बिना सरकारी विभागों की सुविधाजनक भूमिका और जिला अभिसरण समितियों के गठन लिए दिशा-निर्देश विकसित करने चाहिए।
  • NTFP आधारित उद्यमों को सुदृढ़ करना: कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित कर तथा भंडारण, मूल्यवर्द्धन और विपणन सहायता प्रदान कर।
  • व्यापक वेब-आधारित निगरानी: स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर FRA के आवधिक मूल्यांकन में विभिन्न पारिस्थितिक, आर्थिक और सामाजिक संकेतकों को परिभाषित और शामिल किया जाना चाहिए।

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