हिन्द-प्रशांत क्षेत्र तथा इसके बढ़ते महत्व का संक्षिप्त परिचय

प्रश्न: हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में भारत की संलग्नता अन्य देशों के समर्थन के स्थान पर भारत के विस्तृत होते हितों पर आधारित होनी चाहिए। विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • हिन्द-प्रशांत क्षेत्र तथा इसके बढ़ते महत्व का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • इस क्षेत्र में भारत की संलग्नता का वर्तमान आधार अन्य देशों द्वारा प्रदत्त समर्थन है, चर्चा कीजिए।
  • इस क्षेत्र में भारत की संलग्नता को इसके विस्तृत होते हितों के अनुरूप परिवर्तित करने की आवश्यकता है, चर्चा कीजिए।
  • एक संक्षिप्त निष्कर्ष प्रदान कीजिए।

उत्तर

हिन्द-प्रशांत, पृथ्वी का एक जैव-भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें हिन्द महासागर, पश्चिमी एवं मध्य प्रशांत महासागर का उष्णकटिबंधीय जलीय भाग तथा दोनों को जोड़ने वाले समुद्र शामिल हैं। हाल के वर्षों में ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में कूटनीतिक तथा सुरक्षा सम्बन्धी गतिविधियों में इस क्षेत्र के प्रयोग में वृद्धि हई है। यह निरंतर अधिक महत्व प्राप्त कर रहा है क्योंकि कई प्रमुख देश इस क्षेत्र को अपने कूटनीतिक कार्य क्षेत्र के एक भाग के रूप में देख रहे हैं। ऐसे परिदृश्य में वे देश इस क्षेत्र में भारत की भूमिका के महत्व पर बल दे रहे हैं। उदाहरण के लिए:

  • सभी आसियान देश चाहते है कि भारत इस क्षेत्र में एक अधिक सशक्त भूमिका निभाए। दक्षिण-चीन सागर पर बढ़ते विवादों के परिणामस्वरूप यह अत्यधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी अपनी “फ्री एंड ओपन इंडो-पेसिफिक स्ट्रैटिजी” को जारी करते हुए इस क्षेत्र में भारत द्वारा अत्यंत प्रभावशाली’ भूमिका निभाये जाने की आवश्यकता पर बल दिया है।
  • भारत और जापान का संयुक्त वक्तव्य भी इस क्षेत्र में ‘नियम-आधारित व्यवस्था (rules-based order)’ हेतु संयुक्त प्रयासों पर बल देता है।

हालाँकि, भारत को इस क्षेत्र में अपनी संलग्नता का आधार अन्य देशों के समर्थन के स्थान पर अपने विस्तृत होते हितों को बनाना चाहिए। भारत को संलग्नता तथा स्वायत्तता के मध्य संतुलन बनाए रखना चाहिए। हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में भारत के हितों में निम्नलिखित शामिल हैं

  • इस क्षेत्र में उभरती सुरक्षा संरचना: वैश्विक राजनीति में चीन के अत्यंत तीव्र उदय और उसके विस्तारित को रहे क्षेत्रीय प्रभाव ने भारत सहित क्षेत्र के मुख्य अभिकर्ताओं में अनिश्चितताओं का संचार किया है। इस प्रकार भारत को अपनी सामरिक स्थिति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
  • क्षेत्र में प्रमुख देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध: इस क्षेत्र के देशों के मध्य सामूहिक सहयोग द्विपक्षीय संलग्नता को भी सुदृढ़ करेगा जो कि भारत के पक्ष में है।
  • क्षेत्र की बढ़ती अर्थव्यवस्था एवं व्यापार: इस क्षेत्र में विश्व की आधी जनसंख्या निवास करती है तथा इस क्षेत्र का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद लगभग 20 ट्रिलियन डॉलर है, जो भारत के लिए अवसरों में वृद्धि करता है।
  • व्यापार और ऊर्जा सुरक्षा: इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग भारत के व्यापार और वाणिज्यिक बाह्यताओं की जीवनरेखा हैं। भारत के ऊर्जा और वस्तु व्यापार का अधिकांश भाग इसी क्षेत्र के माध्यम से होता है।
  • भारत आर्थिक सहयोग, सम्पर्क, संस्कृति तथा पीपल-टू-पीपल एक्सचेंज में वृद्धि कर दक्षिण-पूर्वी एशिया के साथ अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र के एकीकरण और उसके विकास पर भी ध्यान केन्द्रित कर रहा है।
  • भारत-प्रशांत द्वीप समूह सहयोग मंच (FIPIC) पहल भारत द्वारा प्रशांत क्षेत्र में अपनी संलग्नता का विस्तार करने के प्रयास को इंगित करती है।
  • हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और भारत की एक्ट ईस्ट नीति के मध्य हितों के अनेक अभिसरण विद्यमान हैं।

इस प्रकार, भारत को अपने विदेश नीति सम्बन्धी हितों तथा क्षेत्र के बढ़ते भू-सामरिक महत्व को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र से सम्बंधित एक व्यापक और दीर्घावधिक रणनीति तैयार करने की आवश्यकता है। यह क्षेत्र नई उभरती वैश्विक व्यवस्था का केंद्र बिंदु भी हो सकता है। हालाँकि, भारत को इस क्षेत्र में संलग्नता में वृद्धि के फलस्वरूप आने वाली कई चुनौतियों पर विचार करने की आवश्यकता है, जैसे कि- विभिन्न मंचों, सुरक्षा अभ्यासों तथा आर्थिक भागीदारी के माध्यम से भारत के बढ़ते प्रभाव को लेकर चीन का संदेह।

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