आर्थिक संवृद्धि और विकास में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का महत्व

प्रश्न: आर्थिक विकास की द्रुत गति को हासिल करने में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की भूमिका को बखूबी मान्यता प्राप्त है। भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के क्या लाभ हैं? विश्व व्यापार में अपनी भागीदारी बढ़ाने में भारत द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण

  • आर्थिक संवृद्धि और विकास में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  • भारत पर ध्यान केंद्रित करते हुए विकासशील देशों के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभों का आकलन कीजिए।
  • वैश्विक व्यापार में अपनी भागीदारी को बेहतर करने में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
  • उत्तर के अंत में इस सम्बन्ध में सुझाव दीजिए।

उत्तर

2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट के तहत अंतरराष्ट्रीय व्यापार को समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ाने एवं निर्धनता में कमी हेतु एक प्रमुख कारक के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। भारत की विदेश व्यापार नीति में 2019-20 तक देश की वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात को 900 बिलियन डॉलर करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। भारत का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार इसकी कुल GDP का लगभग 20% है

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभ 

  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विकासशील देशों को उनकी आगतों की लागत में कमी करने तथा निवेश के माध्यम से वित्त प्राप्त करने में सहायता प्रदान करके उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाता है।
  • यह विकासशील देशों को नए बाजारों और नई सामग्रियों तक पहुँच की अनुमति प्रदान कर निर्यात विविधीकरण को सुगम बनाता है जो नई उत्पादन संभावनाओं हेतु मार्ग प्रशस्त करता है।
  • यह अनुसंधान एवं विकास में निवेश (FDI के माध्यम से भी), प्रौद्योगिकी और व्यावहारिक ज्ञान के विनिमय में सहायता प्रदान कर नवाचार को प्रोत्साहित करता है।
  • व्यापार में खुलापन; नए बाजारों की स्थापना, अनावश्यक बाधाओं की समाप्ति और निर्यात के सरलीकरण द्वारा स्थानीय कंपनियों के लिए व्यापारिक अवसरों का विस्तार करता है।
  • व्यापार आर्थिक क्षेत्रकों को बढ़ावा देकर रोजगार के अवसरों का सृजन करता है। इससे नौकरियों में स्थायित्व तथा अधिकतम आय प्राप्त होती है जिसके परिमाणस्वरूप जीवन स्तर में वृद्धि होती है।
  • व्यापार शांतिपूर्ण एवं परस्पर लाभकारी विनिमय के माध्यम से लोगों को एक साथ लाकर राष्ट्रों के मध्य परस्पर संबंधों को सुदृढ़ता प्रदान करते हुए शांति व स्थिरता में योगदान देता है।

विकास अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का एक अत्यधिक महत्वपूर्ण पहलू है। केवल आंतरिक उपभोग द्वारा संचालित विकास सीमित होता है जो शीघ्र ही अपनी अधिकतम सीमा तक पहुँच कर संतृप्त हो जाता है। किसी भी देश के लिए विकास के क्रम में अपनी सीमाओं के बाहर के आर्थिक अभिकर्ताओं के साथ व्यापार करना आवश्यक है। इससे दोनों व्यापारिक साझेदार लाभान्वित होते हैं (यद्यपि अल्पावधि के लिए असमान रूप से)। इसलिए कम प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था अधिक लाभ प्रदान करती है।

चुनौतियाँ

  • विदेश व्यापार नीति 2015-20 के अंतर्गत यह स्वीकार किया गया है कि भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता के समक्ष सबसे बड़ी बाधाएँ घरेलू स्तर पर विद्यमान हैं, जिनमें शामिल हैं:
  • अवसंरचना संबंधी बाधाएँ,
  • लेन-देन की उच्च लागत,
  • जटिल प्रक्रियाएँ जैसे – अनेक व्यापार बाधाएँ, कोटा आदि।
  • व्यापार सूचना प्रणाली की अपर्याप्तता एवं संस्थागत जड़ता।
  •  विकासशील देश सामान्यतः प्राथमिक उत्पादों जैसे कृषिगत वस्तुओं (जिनके मूल्य एवं मांग में लोचशीलता नहीं रहती है) का निर्यात करते हैं।
  • पश्चिम में संरक्षणवाद के उद्भव के परिणामस्वरूप टैरिफ तथा नॉन-टैरिफ अवरोधों में वृद्धि हुई है।
  • विकसित देशों द्वारा प्रदान की जाने वाली निर्यात सब्सिडी, प्राप्तकर्ताओं को अनुचित रूप से प्रतिस्पर्धी लाभ प्रदान करती है।
  • क्षेत्रीय, बहुपक्षीय और द्विपक्षीय समूहों में देशों के मध्य सहयोग की कमी से विकासशील देशों की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार भागीदारी प्रभावित होती है।
  • WTO जैसे मंचों पर विकसित देशों द्वारा की जाने वाली लॉबिंग ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (विशेष रूप से खाद्य सुरक्षा विनियमों से सम्बंधित) को बाधित किया है, जिसके कारण विकासशील देशों के साथ चल रही वार्ता प्रभावित हुई है।

अनुशंसाएँ :

  • टैरिफ संरचना को तर्कसंगत बनाने के साथ तकनीकी, स्वच्छता और फाइटोसेनेटरी मानकों के अनुपालन में वृद्धि करने वाली एक प्रगतिशील व्यापार नीति की आवश्यकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नीति को अपने व्यापार प्रोत्साहन लाभों को पुनर्संरचित करना चाहिए और इन्हें वित्तीय छूट प्रदान करने के स्थान पर निर्यातकों को प्रतिस्पर्धी बनाने में सहायक होना चाहिए।
  • विशिष्ट क्षेत्र आधारित फोकस, जैसे- ‘राष्ट्रीय कृषि निर्यात नीति’ लाने का प्रयास जिसका प्रस्तावित लक्ष्य वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के साथ कृषि निर्यात की वर्तमान भागीदारी को 30 अरब अमेरिकी डॉलर से 60 अरब अमेरिकी डॉलर करना है।
  • WTO के ट्रेड फैसिलिटेशन एग्रीमेंट (TFA) का त्वरित कार्यान्वयन किया जाना चाहिए।

इसके अतिरिक्त, एकीकृत विश्व (ग्लोबलाइज़्ड वर्ल्ड) द्वारा प्रदत्त अवसरों का पूर्ण लाभ उठाने के लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के खंडित संस्करण के विपरीत बहुपक्षीय संस्करण का सक्रिय रूप से समर्थन करना चाहिए। यह दीर्घावधिक समावेशी आर्थिक विकास में योगदान करने में सहायक होगा।

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