भारत की निम्न महिला श्रमबल भागीदारी दर (LFPR) : बढ़ाने हेतु उठाए गए कदम

प्रश्न: भारत की निम्न महिला श्रमबल भागीदारी दर (LFPR) के पीछे उत्तरदायी कारणों को स्पष्ट करते हुए, इसे बढ़ाने हेतु उठाए गए कदमों को सूचीबद्ध कीजिए। साथ ही, बताइए कि इस दिशा में और क्या किए जाने की आवश्यकता है?

दृष्टिकोण

  • भारत की निम्न महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) के पीछे उत्तरदायी कारणों को स्पष्ट कीजिए।
  • LEPR को बढ़ाने हेतु उठाए गए कदमों को सूचीबद्ध कीजिए और इससे निपटने हेतु सुझाव दीजिए।

उत्तर

भारत, उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं और विकासशील देशों में सबसे निम्न महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) वाला देश है। अभी तक अप्रकाशित नेशनल सैंपल सर्वे के आंकड़ों की रिपोर्ट के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में 25-54 वर्ष की महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर लगभग 26-28% पर स्थिर हो गई है तथा वर्ष 1987 से 2011 के मध्य ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 57% से कम होकर 44% हो गई है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की LFPR वर्ष 1994 के 35.8% से कम होकर वर्ष 2012 में केवल 20.2% रह गई है।

महिलाओं में निम्न LEPR के कारण

आर्थिक

  • विशेषीकृत एवं कुशल रोजगारों की बढ़ती आवश्यकता के कारण संरचनात्मक बेरोजगारी का सामना कर रही महिलाएं श्रम बल से बाहर हो सकती हैं।
  • नौकरियों का अभाव कार्य करने हेतु स्व-रोजगार को एक व्यवहार्य विकल्प बनाता है। हालांकि, ऋण प्राप्ति में विद्यमान कठिनाई उद्यमिता के अवसरों को सीमित करती है।
  • मशीनीकरण के कारण कृषि क्षेत्र में महिला श्रमिकों की माँग कम हुई है।
  • विभिन्न कारकों, जैसे- शहरी प्रवासी श्रमिकों से प्रेषित धन, मनरेगा आदि के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू आय और मजदूरी में हुई वृद्धि ने कामकाजी महिलाओं के पूरक आय की आवश्यकता को कम किया है।

सामाजिक-सांस्कृतिक

  • शिक्षा तक पहुंच में वृद्धि और इसके परिणामस्वरूप स्कूली शिक्षा में अधिक वर्ष व्यतीत होने के कारण महिलाओं का कार्यबल में प्रवेश निरंतर कम होता जा रहा है।
  • संगठनात्मक पदानुक्रम को इस तरह से व्यवस्थित किया जाता है कि महिलाओं के लिए आगे बढ़ाना लगभग असंभव हो जाता है (अप्रत्यक्ष अवरोध)। यह कामकाजी महिलाओं के लिए निवारक के रूप में कार्य करता है और वे कार्यबल से बाहर हो जाती हैं।
  • कार्य संबंधी परिस्थितियां यहां तक कि संगठित क्षेत्र भी महिलाओं के लिए अनुकूल नहीं हैं, जैसे कि मातृत्व लाभ कानून का पुरुषों के अनुरूप होना।
  • महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध भी एक निवारक के रूप में कार्य करते हैं।
  • पितृसत्तात्मक मानसिकता, जो महिलाओं को घरेलू कामकाज के लिए और पुरुषों को परिवार हेतु आय अर्जन के लिए ही उपयुक्त मानती है।

उठाए गए कदम

  • कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न की रोकथाम हेतु कानून का अधिनियमन, जिससे कार्य करने के लिए एक सुरक्षित परिवेश विकसित किया जा सका है।
  • स्टैंड-अप इंडिया मिशन के माध्यम से महिला उद्यमिता को सुविधा प्रदान करना।
  • कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में कौशल विकास योजनाओं का समन्वय किया जाता है, जो कौशल के अभाव अथवा अप्रचलित होने संबंधी समस्याओं का समाधान करता है।
  • नेशनल करियर सर्विस (NCS) योजना, रोजगार के इच्छुक एवं नियोक्ताओं के लिए एक राष्ट्रव्यापी ऑनलाइन मंच प्रदान करती है, जो सरलता से रोजगार संबंधी जानकारी उपलब्ध कराता है।
  • मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 मातृत्व अवकाश में वृद्धि के साथ 50 या अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में अनिवार्य क्रेच सुविधा के लिए प्रावधान करता है।
  • राज्यों को कारखाना अधिनियम, 1948 के अंतर्गत नाइट शिफ्ट में कार्य करने वाली महिला कर्मियों के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपायों को अपनाए जाने संबंधी दिशा-निर्देश जारी करना।
  • महिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों, राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों और क्षेत्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों के नेटवर्क के माध्यम से महिला श्रमिकों को प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • महिला श्रमिकों के लिए कार्यस्थल पर अनुकूल परिवेश सृजित करने के लिए विभिन्न श्रम कानूनों में सुरक्षात्मक प्रावधानों को लागू करना।
  • समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 और न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के माध्यम से मजदूरी में भेदभाव को समाप्त करना।

आगे की राह 

  • ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा एवं कौशल आधारित आजीविका के अवसरों का सृजन करना।
  • कार्यस्थल को लैंगिक रूप से अनुकूल बनाने संबंधी नीतियां, जैसे कि पुरुषों को मातृत्व लाभ के समान अवकाश के लिए पात्र बनना, कार्य परिस्थितियों में लचीलापन, जैसे कि बच्चों की देखभाल, आदि।
  • कौशल विकास पहलों को स्वयं सहायता समूहों (SHGs) और महिला सहकारी समितियों के माध्यम से महिला उद्यमिता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • MUDRA योजना के तहत विशेष विंडो, जैसे- वित्त की सुगम उपलब्धता।
  • सामान्य रूप से महिलाओं और विशेष रूप से कार्यरत महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में निहित समस्या की पहचान और उनका त्वरित रूप से समाधान करना।

जेंडर, भारत के भावी विकास (संवृद्धि) में बड़ी और अत्यधिक रणनीतिक भूमिका का निर्वहन करेगा। संरचनात्मक सुधारों के माध्यम से सहायता प्रदान कर अधिक महिलाओं को श्रम बल में शामिल करना। इससे अधिक रोजगार के अवसरों का सृजन करने में सहायता प्राप्त हो सकती हैं, जो भारत के भावी विकास का एक स्रोत होगा।

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