‘बहुउद्देश्यीय परियोजना’ क्या है? उत्तर प्रदेश की प्रमुख बहुउद्देशीय परियोजनाओं का वर्णन करें।

उत्तर की संरचनाः

भूमिका

  • संक्षेप में बहुउद्देशीय परियोजना के महत्व एवं विकास को बताएँ।

मुख्य भाग

  • बहुउद्देशीय परियोजना को उदाहरण सहित स्पष्ट करें। 
  • उत्तर प्रदेश की प्रमुख बहुउद्देशीय परियोजनाओं का वर्णन करें।

निष्कर्ष

  • सिंचाई की आवश्यकता और प्रादेशिक विकास के संदर्भ में निष्कर्ष दें।

उत्तर

भूमिकाः

बहुउद्देशीय परियोजना, देश में उपलब्ध जल संसाधनों के वैज्ञानिक प्रबंधन और इष्टतम दोहन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसी कारण स्वतंत्रता के पश्चात् ही 1948 में देश के प्रथम बहुउद्देशीय परियोजना “दामोदर घाटी परियोजना” की आधारशिला रखी गयी। पं. जवाहर लाल नेहरू ने इसे आधुनिक भारत का मंदिर कहा।

मुख्य भागः

कई उद्देश्यों को ध्यान में रखकर प्रारंभ की गयी नदी घाटी परियोजना को “बहुउद्देशीय परियोजना” कहा जाता है। परियोजना के माध्यम से सिंचाई, जल-विद्युत, बाढ़-नियंत्रण, पेयजल आपूर्ति, मृदा संरक्षण इत्यादि अनेक उद्देश्यों की सम्मिलित प्राप्ति का प्रयास किया जाता है। उदाहरण के लिए “कोसी परियोजना” के माध्यम से “बिहार का शोक” मानी जाने वाली कोसी नदी के बाढ़ पर नियंत्रण करने का प्रयास किया गया, साथ ही सिंचाई और विद्युत उत्पादन की संभव हुआ।

उत्तर प्रदेश की प्रमुख बहुउद्देशीय परियोजना निम्नांकित हैं

  1. रिहन्द बाँध परियोजनाः यह उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी बहुउद्देशीय परियोजना है। इसके अन्तर्गत सोन की सहायक रिहन्द नदी पर पिपरी गाँव (सोनभद्र) में बाँध बनाया गया है। बाँध के पीछे निर्मित कृत्रिम झील “गोविन्द वल्लभ पंत सागर”, भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। इस परियोजना से 300 मेगावाट (50 MWx6) विद्युत का उत्पादन होता है। जिससे उत्तर प्रदेश के लगभग 20 जिलों तथा रेनुकूट स्थित हिन्डाल्को संयंत्र को विद्युत आपूर्ति होती है।
  2. ओबरा जल विद्युत केन्द्रः यह रिहन्द नदी पर निर्मित दूसरी बहुउद्देशीय परियोजना है। परियोजना के अन्तर्गत 300 मेगावाट क्षमता की छह विद्युत उत्पादक ईकाईयाँ स्थापित हैं।
  3. माताटीला जल विद्युत परियोजना: यह परियोजना झांसी जिले के निकट बेतवा नदी पर निर्मित है। यह मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की संयुक्त परियोजना है। परियोजना से 30,000 किलोवाट (10,000 x 3) विद्युत का उत्पादन होता
  4. गंगा विद्युत क्रमः हरिद्वार से अलीगढ़ तक “ऊपरी गंगा नहर” पर निर्मित कई लघु-जल विद्युत परियोजनाओं के क्रम को “गंगा विद्युत क्रम” कहा जाता है। इसमें निम्नलिखित परियोजनाएँ शामिल हैं-(i) पथरी (सहारनपुर) – 20,4000 किलोवाट (ii) मुहम्मदपुर (सहारनपुर) – 9,300 किलोवाट (iii)चितौरा (मुजफ्फर नगर) – 3000 किलोवाट (iv) सलखा (मुजफ्फर नगर) – 4000 किलोवाट (v) धोला (मेरठ) – 27000 किलोवाट (vi) पालरा (बुलन्दशहर) – 6000 किलोवाट (vii) सुमेरा (अलीगढ़)- 2000 किलोवाट
  5. शारदा जल विद्युत परियोजना: यह परियोजना शारदा नहर पर स्थित है। 41 400 किलोवाट क्षमता का जल विद्युत गृह पीलीभीत जिले के बनवासा के निकट स्थापित है। इसे “गंगा विद्युत क्रम” से जोड़ दिया गया है। परियोजना के द्वारा पीलीभीत, बरेली, शहजहाँपुर, हरदोई, खीरी इत्यादि जिलों को विद्युत उपलब्ध करायी जाती है।
  6. बाण सागर नहर परियोजना: यह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार की संयुक्त परियोजना है। परियोजना के तहत शहडोल (मध्य प्रदेश) जिले के दिओलाण्द (Deolond) गाँव के निकट बाँध का निर्माण किया गया है। बाँध से कल 171 किमी. लम्बी नहर बनायी गयी है जिससे उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर और प्रयागराज (इलाहाबाद) जिले में सिंचाई हेतु जल उपलब्धता सुनिश्चित होगी।

निष्कर्षः

इस प्रकार उत्तर में मानसून की अनिश्चतता से उत्पन्न सिंचाई की समस्या का समाधान बुन्देलखण्ड क्षेत्र में पेयजल आपूर्ति तथा ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति की दृष्टि से बहुउद्देशीय परियोजनाएँ आर्थिक विकास में सहायक सिद्ध हो रही हैं।

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